बिहार में सूूखे जैसे हालात, पलायन की तैयारी कर रहे किसान

बिहार में मॉनसून 2023 के दो माह के दौरान सामान्य से 48 प्रतिशत कम बारिश हुई है, कई जिलों में हालात बहुत खराब हैं
बिहार के सहरसा जिले में अपने खेतों में लगी धान को टटोलता किसान। फोटो: बिपुल कुमार
बिहार के सहरसा जिले में अपने खेतों में लगी धान को टटोलता किसान। फोटो: बिपुल कुमार
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बिहार का शिवहर जिला स्थित पिपराढी प्रखंड के कमरौली गांव के किसानों के मुताबिक गांव में अभी तक सिर्फ 30-40 प्रतिशत धान की रोपनी हुई है। शिवहर जिला में भूजल स्तर कम होने की वजह से सरकार ने बोरिंग पंपसेट पर पाबंदी लगा दी है। इस वजह से धान की रोपनी करने वाले किसान बारिश का इंतजार कर रहे है।

कमरौली गांव के संजय मंडल (50 वर्ष) के पास दो बीघा खेत है। वो बताते हैं कि, "गांव के कुछ किसान छिप कर निजी पंपसेट के माध्यम से रोपनी कर रहे हैं। पंपसेट मालिक 1 घंटे का 250 से 300 रुपए ले रहे हैं। ऐसे में किसान 2 बीघा रोपनी के लिए कम से कम 6000 रुपए खर्च कर रहे हैं। खेती पर ही पूरा घर आश्रित है। बेटा दिल्ली में मजदूरी करता हैं तो थोड़ा भेज देता है। स्थिति ऐसी ही रही तो इस उम्र में भी मजदूरी के लिए जाना पड़ेगा।"

कमरौली गांव के सीमांत किसान संजय मंडल जैसी स्थिति बिहार के लाखों किसानों की है। बिहार में कुल 104.32 लाख किसानों के पास कृषि भूमि है, जिनमें से 84.46 लाख यानी 82.9 प्रतिशत सीमांत किसान हैं। सीमांत किसान यानी लगभग 4 बीघा (एक बीघा में 20 कट्ठा जमीन) से कम कृषि भूमि में खेती करने वाला किसान।

बिहार के सुपौल जिला स्थित वीणा पंचायत के सुरेंद्र मंडल के पास खेती के लिए लगभग डेढ़ बीघा जमीन है और 2 बीघा खेत बटाई पर ली है। वो बताते हैं कि, मेरे गांव में लगभग 50 प्रतिशत खेतों तक बिजली पहुंच चुकी है। लेकिन बड़े किसानों ने ही बोरिंग कराई है। जिनकी संख्या बहुत कम है। गांव में 5000 किसानों में 50 किसान भी ऐसे नहीं है, जिसके पास 3-4 बीघा खेत होंगे।

गांव में जिस खेत में बिजली पहुंची है, वहां बोरिंग मालिक 70-75 रुपया प्रति घंटा और निजी पंपसेट मालिक 150 रुपए प्रति घंटा भाड़ा लेता है। जुलाई के पहले सप्ताह में बारिश हुई तो रोपनी हो गई, लेकिन अब धान सूख रहा है। पिछले साल भी कुछ ऐसे ही हालात थे, ना धान हो पाई थी ना ही कोई मुआवजा मिला था। सरकारी राशन और खेती की बदौलत हमारा घर चलता है। ऐसी स्थिति रही तो हमें कोई और रोजगार ढूंढ़ना पड़ेगा।"

मौसम विभाग के अनुसार चालू मॉनसून सीजन में बिहार में दो माह के दौरान सामान्य से 48 प्रतिशत बारिश कम हुई है। 1 जून से लेकर 31 जुलाई 2023 के दौरान बिहार में 263 .2 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि सामान्य तौर पर यहां 503.8 मिलीमीटर बारिश होती है। सबसे बुरे हालात सीताडढी  जिले के हैं, जहां सामान्य से 82 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इसके अलावा सिहौर में 74 प्रतिशत, सारण में 62 प्रतिशत, पूरबा चम्पारण में 70 प्रतिशत,  सहरसा में 68 प्रतिशत, बेगुरसराय में 62 प्रतिशत कम बारिश हुई है। राज्य के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत के मुताबिक अभी तक राज्य में सिर्फ 50% धान की रोपनी हुई है।

पीने के लिए पानी नहीं मिल रहा
पिपराढ़ी प्रखंड के ही महूआवा गांव के वार्ड नंबर 3 के यूवा छोटू कुमार बताते हैं कि, 'गांव में चापाकल से पानी नही निकल रहा है। हैंडिल काफी भारी हो गया है। गांव के एक पराने बोरिंग से लाइन में लगाकर पानी निकाल रहे हैं। गांव में कुछ खेतों में रोपनी हुई है, जो धीरे-धीरे सूख रही है।' बिहार के सीतामढ़ी और उसके पड़ोसी जिला शिवहर के कई इलाकों में चापाकल सूख चुके हैं। बिहार में सीतामढ़ी और शिवहर जिले में सबसे कम यानी सामान्य से क्रमश 83% और 75% कम बारिश हुई है।

शिवहर के किसान मोर्चा से जुड़े बसंत सिंह बताते हैं कि, "एक तरफ जल संसाधन विभाग नहर के पानी को खेतों तक पहुंचाने की बात करता है वहीं इलाके की झीम, लखनदेई, बांके, सिंगयाही, व मरहा जैसी छोटी नदी सूख चुकी हैं। सरकार बोरिंग पंपसेट को बंद करने का आदेश दे चुकी है। सरकारी कार्यालय से डीजल अनुदान लेने में छोटे किसानों की स्थिति खराब हो जाती है। बारिश नहीं हुई तो बिहार के अधिकांश इलाकों में धान नहीं होगा। लेकिन सरकार पिछले वर्ष की भांति कुछ क्षेत्रों को सुखाड़ घोषित कर मुआवजा देकर भाग जाएगी"

सरकारी मुआवजा की स्थिति
बिहार कृषि विभाग के मुताबिक 2022 में बिहार के 11 जिले की 96 प्रखंड के 937 पंचायत के 7841 राजस्व गांव को सूखाग्रस्त घोषित किया गया था। बिहार कृषि विभाग में काम कर चुके सुपौल के अरुण कुमार झा बताते हैं कि, "सीमांचल कोसी और मिथिलांचल इलाके के लाखों किसानों, जिन्होंने सिंचाई के लिए दूसरे माध्यमों का सहारा नहीं लिया, उन्हें पिछले साल सुखाड़ ने प्रभावित किया था। बहुत कम किसानों के पास सिंचाई के दूसरे साधनों की सुविधा हैं लेकिन इन्हें सूखाग्रस्त की श्रेणी में नहीं रखा गया। सरकार आंकड़ों के जरिए किसानों का मजाक उड़ाता हैं।" पिछले साल सरकार के इन आंकड़ों पर पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह और कई विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाए थें।

पिछले साल जिन 11 जिलों को सूखाड़ क्षेत्र में शामिल किया गया था, उसमें भागलपुर जिला भी शामिल था। भागलपुर जिला स्थित भ्रमरपुर गांव के पर्व शिक्षक और किसान ललन बाबू (75 वर्ष) बताते हैं कि, " सरकार के द्वारा लगभग गांव के सभी परिवारों को 3500 रुपए की राशि दी गई थी। कुछ परिवारों को सरकारी कागज उपलब्ध नहीं होने की वजह से नहीं मिली। वहीं सरकार ने वैकल्पिक कृषि कार्य की व्यवस्था और दूसरे सहायक कार्यों की व्यवस्था की भी घोषणा की थी। जिसका लाभ मेरे गांव में किसी को भी नहीं मिल रहा है।"

ललन बाबू के मुताबिक गांव के अधिकांश किसान बटाईदार हैं। उन्हें मुआवजा नहीं मिला। सूचना जनसंपर्क बिहार सरकार के मुताबिक इस साल भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अल्प वर्षापात से उत्पन्न स्थिति की समीक्षा की है और किसानों को हर संभव सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।

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