उत्तराखंड में एक बार फिर तबाही, ग्लेशियर लेक टूटने या एवलांच का अंदेशा

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने कहा कि घटना के कारणों का पता लगाने जाएगी उनकी टीम
उत्तराखंड के तपोवन क्षेत्र में बचाव कार्य करते कर्मचारी। Photo- twitter/Chamoli police
उत्तराखंड के तपोवन क्षेत्र में बचाव कार्य करते कर्मचारी। Photo- twitter/Chamoli police
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उत्तराखंड के चमोली जिले के सुदूर ऋषिगंगा क्षेत्र में 7 फरवरी की सुबह अचानक भारी मात्रा में पानी आने से निचले क्षेत्रों के लिए खतरा पैदा हो गया है। चमोली जिले के लाता और ऋषिगंगा क्षेत्र में भारी तबाही की सूचना है। देहरादून में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान का कहना है कि अभी साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है, यह घटना किन कारणों से हुई?

चमोली जिले की ऋषिगंगा नदी भी भारी मात्रा में पानी आ जाने से भारी तबाही मचने की सूचना मिली। घटना में कई लोगों के लापता होने की खबरें मिल रही हैं। लाता और तपोबन में भारी तबाही के बाद पानी तेजी से निचले क्षेत्रों की तरफ बह रहा है। अलकनन्दा नदी के किनारे के सभी शहरों और बस्तियों को अलर्ट कर दिया गया है। राज्य सरकार ने आपदा विभाग के अधिकारियों जरूरी निर्देश दिये हैं और राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ( एसडीआरएफ) की टीमों को मौके पर रवाना कर दिया है। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद यह दूसरी बड़ी तबाही बताई जा रही है।

देहरादून में वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने इस घटना की पुष्टि की है। संस्थान के ग्लेशियर विशेषज्ञ मनीष मेहता का कहना है कि फिलहाल यह पता लगाया जा रहा है कि यह घटना किसी ग्लेशियर लेक के फटने से हुई है या एवलांच के कारण। फिलहाल संभावना यह जताई जा रही है कि इस घटना का कारण नंदादेवी बायोस्फेयर क्षेत्र में ऋषिगंगा के जलागम क्षेत्र में एवलांच अथवा ग्लेशियर लेक फटना है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में एनटीपीसी का प्रोजेक्ट भी चल रहा है। यह भी संभावना है कि इस दौरान कोई अवरोध पैदा हुआ हो और इस अवरोध के हटने के कारण यह घटना हुई हो। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की टीम सोमवार को घटना के कारणों का पता लगाने के लिए रवाना हो रही है।

वरिष्ठ भूवैज्ञानिक और हिमालयी मामलों के जानकार डाॅ. नवीन जुयाल का कहना है कि अभी निश्चित तौर पर यह नहीं बताया जा सकता है कि इस घटना का कारण क्या है एवलांच या फिर ग्लेशियर लेकर का फटना। उनका कहना है कि यह निश्चित है कि ऊपरी क्षेत्र में यह ग्लेशियर फटने या एवलांच जैसी कोई घटना रही होगी। लेकिन जब पानी नीचे की तरफ बहा तो पहले रैणी के पास लाता में बने प्रोजेक्ट और फिर तपोवन में अवरोध पैदा हुआ। इसके बाद से इस की मारक क्षमता बढ़ गई। उन्होंने कहा कि वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान को जल्दी से जल्दी इस घटना के कारणों का पता लगाना चाहिए।

अब तक मिली खबरों के अनुसार इस घटना से लाता में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से तबाह हो गया है। यह एक चालू प्रोजेक्ट था, इसलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि यहां जनधन का काफी नुकसान हुआ है। तपोवन में निर्माणाधीन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को भी नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि कुल कितना नुकसान हुआ है, इस बारे में अभी जानकारी नहीं है। आपदा प्रबंधन और एसडीआरएफ की टीमें प्रभावित क्षेत्रों में रवाना हो गई हैं। देहरादून स्थिति राज्य आपदा प्रबंधन केंद्र से लगातार स्थिति पर नजर रखी जा रही है।

जोशीमठ में मौजूद पूर्व ब्लाॅक प्रमुख प्रकाश रावत ने फोन पर डाउन टू अर्थ को बताया कि तपोवन क्षेत्र में तबाही का मंजर है और जोशीमठ के ठीक नीचे विष्णु प्रयाग में अलकनन्दा का पानी पुल का छू रहा है। इस बीच चमोली, नन्दप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और श्रीनगर में अलर्ट करके नदी के किनारे रहने वाले लोगों को सतर्क कर दिया गया है। राज्य के मुख्यमंत्री प्रभावित क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण करने के लिए रवाना हो गये है।

क्या है एवलांच
एवलांच हिमालयी ग्लेशियर को बड़े आकार का एक टुकड़ा होता है, जो किसी कारण ग्लेशियर से टूटकर नीचे की ओर लुढकने लगाता है। ग्लेशियर का यह टुकड़ा अपने रास्ते काफी तबाही मचाता है। नीचे उतरने के साथ एवलांच पिघलने लगता है और इसका पानी अपने साथ मिट्टी, गाद आदि को समेट लेता है। निचले क्षेत्रों में पहुंचने तक एक तीव्रता बढ़ जाती है और यह काफी मारक हो जाता है।

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