मध्यप्रदेश में 55 लाख किसानों की फसल बर्बाद, क्या मिलेगा मुआवजा

बहुत ज्यादा बारिश होने के कारण मध्य प्रदेश के किसानों की फसल बर्बाद हो गई है, लेकिन न तो अब मुआवजा मिला है और न फसल बीमा का क्लेम, किसानों के पास अगली फसल लगाने तक के लिए पैसे नहीं हैं
मध्य प्रदेश में अधिक बारिश होने के कारण सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई है। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
मध्य प्रदेश में अधिक बारिश होने के कारण सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई है। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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मध्यप्रदेश में इस मानसून सामान्य से 46 फीसदी अधिक बारिश हुई है जिस वजह से धान को छोड़कर हर फसल पर अतिवर्षा का असर हुआ है। किसान मुआवजा और बीमा राशि मिलने में हो रही देरी की वजह से किसानों के पास अगली फसल लगाने तक के लिए पैसे नहीं है।

मध्यप्रदेश में अतिवर्षा और इस वजह से होने वाले जलजमाव और बाढ़ ने किसानों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। आधी से अधिक खरीफ की फसल चौपट होने के बाद प्रदेश के किसान अब बीमा कंपनी और सरकार की तरफ से मिलने वाले मुआवजे की राह देख रहे हैं। अगस्त महीने में खेतों में जल जमाव के बाद सोयाबीन और मक्के की फसल खराब होने की सूचना आने लगी थी, जिसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने फसलों के सर्वे के आदेश दिए थे। मध्यप्रदेश सरकार के आधिकारिक आंकड़ों की माने तो प्रदेश में खरीफ की 149.35 लाख हेक्टेयर फसल में से 60.52 लाख हेक्टेयर फसल को नुकसान हुआ है। इससे लगभग 55.36 लाख किसान प्रभावित हुए हैं।

हरदा के किसान सेठी पटेल कहते हैं कि उनकी सोयाबीन, मूंग, उड़द, अरहर और मक्के की फसल पूरी तरह से चौपट हो गई। धान की फसल से कुछ उम्मीद है। पटेल ने बताया कि सोयाबीन की फसल काटने के बाद उससे आमदनी होती थी जिससे वे गेंहू और चने की फसल लगाते थे, लेकिन इस बार खराब सोयाबीन की फसल हटाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। कई किसानों के पास पैसे न होने की वजह से सोयाबीन की खराब फसल खेतों में अभी भी लगी हुई है और कुछ किसान खेत साफ करने के लिए कर्ज ले रहे हैं। मंडियों में इस समय सोयाबीन की आवक हो जाती थी और ट्रक के ट्रक सोयाबीन मंडियों में खड़े रहते थे, लेकिन इस साल स्थिति बदली हुई है।

कितना कारगर है फसल बीमा

रीवा जिले के किसान रविदत्त सिंह कहते हैं कि फसल बीमा योजना अपने आप में ही एक घोटाला है। इसे समझाते हुए उन्होंने कहा कि बीमा के लिए क्लेम करते समय किसान को फसल लगाने और उसके खराब होने का प्रमाण देना होता है जो कि ग्राम सेवक या पटवारी से प्राप्त करना होता है। रविदत्त बताते हैं कि कई गावों में ग्राम सेवक हैं ही नहीं और पटवारी किसानों की सुनते नहीं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश शासन ने जो सर्वे कराया है, उसमें भी पटवारी ने कई स्थानों पर अपने मन से फसलों की स्थिति भेजी है और वे खेतों तक पहुंचे भी नहीं। रविदत्त राष्ट्रीय किसान महासंघ नामक किसानों के संगठन से प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर जुड़े हुए हैं और उन्होंने कहा कि उनका संगठन फसल बीमा में गड़बड़ियों के खिलाफ जल्दी आंदोलन करने वाला है।

हालांकि कृषि मंत्री सचिन यादव ने कहा है कि सर्वे का काम अंतिम चरण में है और बीमा कंपनी के अधिकारियों के साथ बैठक भी चल रही है। मंत्री ने दावा किया कि जल्दी किसानों को बीमा का क्लेम मिल जाएगा।  

केंद्र के भरोसे मध्यप्रदेश सरकार

मध्यप्रदेश सरकार के मुताबिक मध्य प्रदेश में बारिश से फसल समेत प्रदेश के इंफ्रास्ट्रक्चर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। सरकार के मुताबिक प्रदेश की करीब 60 लाख हेक्टेयर फसल तबाह हो चुकी है। बाढ़ और अतिवृष्टि से हुए नुकसान के लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से 6621 करोड़ रुपए की राहत राशि मांगी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर उन्हें बताया कि राज्य के 52 जिलों में से 20 जिलों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई है। उन्होंने बताया कि मालवा क्षेत्र के मंदसौर, नीमच और आगर-मालवा अत्याधिक वर्षा के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। धान को छोड़कर सभी फसलें प्रभावित हुई हैं।

सोयाबीन की पैदावार 18 फीसदी तक घटने की आशंका

इस वर्ष देश भर में लगभग 113.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हुई है। इसमें से अकेले मध्यप्रदेश में 55.160 (48 फीसदी) लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हुई है। इसके बाद महाराष्ट्र में 39.550 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हुई है। राजस्थान में भी 10 लाख हेक्टेयर से अधिक सोयाबीन लगाया गया है। यानी कि केवल इन तीनों राज्यों में देश के लगभग 90 फीसदी सोयाबीन की बुआई की गई है। इन तीनों राज्यों में सामान्य से अधिक बारिश होने की वजह से सोयाबीन प्रोसेसर्स एशोसिएशन ने देश में सोयाबीन का उत्पादन 18 फीसदी तक कम होने की आशंका जताई है। हालांकि यह कमी आगे और भी घट सकती है।   

मध्यप्रदेश में इन फसलों पर बारिश है असर

फसल- बुआई का रकवा

सोयाबीन- 55.160 लाख हेक्टेयर

कॉटन- 6.090 लाख हेक्टेयर

मक्का- 15.42 लाख हेक्टेयर

उड़द- 16.500 लाख हेक्टर

अरहर- 5.060 लाख हेक्टेयर

मूंग- 1.820 लाख हेक्टेयर

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