चमोली त्रासदी : 'तपोवन बैराज के गेट बंद थे और गेटवॉल पर मौजूद 60 मजदूर मलबे में बह गए'

चमोली में 7 फरवरी, 2021 को तपोवन स्थित एनटीपीसी परियोजना पर आखिर क्या हुआ था और वहां के मजदूरों ने कैसे अपनों को त्रासदी का निवाला बनते हुए देखा, जानिए उन्हीं की जुबानी :
चमोली त्रासदी : 'तपोवन बैराज के गेट बंद थे और गेटवॉल पर मौजूद 60 मजदूर मलबे में बह गए'
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किसी भी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के बीच पलायन की इच्छा यूं ही नहीं पैदा होती। एक के बाद एक आपदाओं के पहाड़ टूटते हैं और फिर उस इलाके के लोग टूट जाते हैं। चमोली के रैणी और आस-पास के गांव भी इसी मनोदशा से गुजर रहे हैं। चमोली त्रासदी में परियोजनाओं के अंबार लगे हैं और गांव वालों का अफसोस यह है कि उन्होंने आखिर अपनी जमीनें इन्हें क्यों दीं? 7 फरवरी, 2021 को चमोली त्रासदी को कई लोगों ने भोगा जो बच गए वो क्या कहते हैं। 

27 वर्षीय हीरालाल राण इस आपदा के भुक्तभोगी रहे। उन्होंने डाउन टू अर्थ से इसका आंखो देखा हाल बताया और आपदा के बाद कई ऐसे सवाल उनके मन में हैं जिनका उत्तर उन्हें अभी नहीं मिल पाया है।  वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में रनियापुर गांव के रहने वाले हैं। काम की तलाश में उत्तराखंड की ही बड़ी परियोजाएं उनका ठिकाना रही हैं। वह दूसरी बार उत्तराखंड आए थे और इस बार उन्हें टिहरी के एक ठेेकेदार ने ऋत्विक प्रोजेक्टस प्राइवेट लिमिटेड से जोड़ा था। यह कंपनी तपोवन में एनटीपीसी की जलविद्युत परियोजना के लिए काम कर रही थी। 

हीरालाल बताते हैं कि हम रोज की तरह धौलीगंगा नदी पर स्थित तपोवन एनटीपीसी परियोजना के बैराज पर काम करने पहुंचे। घुसने से पहले हमें साइट के प्रवेश द्वार पर एक गेट पास दिखाना होता है, फिर हमें काम के लिए अंदर जाने की इजाजत मिलती थी। उस रोज मौसम साफ था और हम बैराज पर काम करने लगे, इस बैराज से एक हेड रेस टनल जुड़ी थी जो डाउनस्ट्रीम की तरफ जाती थी। करीब 60 से 70 लोग बैराज की दीवार पर थे। नीचे तीन गेट बंद थे और एक गेट पर फ्लो था। जहां गेट बंद थे वहां भी कुछ लोग काम कर रहे थे। मेरा मझोला भाई भी था। अचानक हीरालाल ने देखा कि अपस्ट्रीम से 10 से 12 फीट ऊंचा मलबा कुछ सेकेंड्स में तपोवन में बैराज की तरफ आया वे और उनके तीन साथी सुरक्षित स्थान की तरफ भागे। लेकिन जो बैराज के गेटवॉल पर थे और नीचे थे वह हेडरेस टनेल की तरफ भागे। सब मलबे में विलीन हो गए।  

हीरालाल ने कहा कि यदि गेट न बंद होते तो शायद मलबा सुरक्षित तरीके से डाउनस्ट्रीम की तरफ बह जाता।  

हेडरेस टनेल बैराज से टर्बाइन तक पानी पहुंचाने के लिए सुरंग होती है जो पांच जगह से मुड़ी है। इसी सुरंग की सफाई चल रही है और 200 मीटर के आस-पास सुरंग की सफाई हो रही है। कई लाशें इस सुरंग के मलबे में भी मिली हैं।  

हीरालाल की बात को माटू जनसंगठन ने भी पुष्टि की है। जनसंगठन के विमल भाई और दिनेश पंवार ने 16 फरवरी, 2021 को रैणी गांव और तपोवन गांव का दौरा किया। माटू जनसंगठन ने अपनी खोजबीन और रिपोर्ट में दावा किया है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में घटना वाले दिन (7 फरवरी, 2021) को तपोवन गांव स्थित बैराज के गेट बंद थे। इस कारण तेजी से बहता पानी गेट से टकराकर बांयी ओर स्थित एनटीपीसी की निर्माणाधीन पनबिजली परियोजना के हेडरेस्ट टनल में घुस गया जिसमें सैकड़ों मजदूरों की जानें चली गईं।"

जनसंगठन की ओर से विमल भाई ने डाउन टू अर्थ से बताया कि यह दुर्घटना पूरी तरह सुरक्षा प्रबंधों की अवहेलना और आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। हमने तपोवन गांव व रैणी गांव का दौरा किया, जहां पर ऋषि गंगा परियोजना का पावर हाउस है।  उस दौरे में रैणी गांव के लोगों ने कहा उन्हें किसी तरह के राहत सामग्री की जरूरत नहीं है। इसके उलट गांव वालों ने ही यहां पर आने वाले लोगों को अपने घरों में ठहराया है। सुरक्षाबलों और अन्यों को जलाने के लिए लकड़िया दी हैं। हमें बस यह बांध नहीं चाहिए। अब इस बांध को बंद होना चाहिए।

रेणी से रुद्रप्रयाग तक जारी रेस्क्यू ऑपरेशन में अब तक 72 से ज्यादा शव निकाले जा चुके हैं। 

चमोली त्रासदी के पीड़ितों की भोगी हुई आपबीती के बीच हिमालय की प्राकृतिक बनावट के साथ छेड़छाड़ और वैज्ञानिक पड़तालें भी आपदाओं की कलई खोलती हैं। खासतौर से नंदा देवी राष्ट्रीय अभ्यारण्य से नीचे की ओर गंगा की सहायक नदियों ऋषिगंगा और धौलीगंगा में परियोजनाओं की तबाही और लोगों की जिंदगियों के अपूर्णीय नुकसान ने फिर से उन बिंदुओं पर सोचने को मजबूर किया है जिसे 2013 की त्रासदी के बाद भुलाया जा रहा था।    

अगली कड़ी में पढ़िए वैज्ञानिक एवं भौगौलिक वजह ः जानिए चमोली त्रासदी के बाद क्यों जरूरी है हिमालय की चेतावनी का पाठ पढ़ना

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