चमोली आपदा : संभव है कि यह 2013 उत्तराखंड त्रासदी से काफी अलग एक रॉक एवलांच है

उत्तराखंड की 2013 में हुई त्रासदी और 2021 में चमोली की घटना एक जैसी नहीं है। न ही भूकंप और अत्यधिक वर्षा इस भूस्खलन का कारण हो सकती है।
बचाव कार्य में जुटे जवान। फोटो: चमोली पुलिस
बचाव कार्य में जुटे जवान। फोटो: चमोली पुलिस
Published on

उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी को भयंकर बाढ़ हादसे के संभावित कारणों को लेकर कई कयास और अवधारणाएं घूम रही हैं। इस हादसे में 15 लोग अब तक मरे हैं और 150 लोग अब भी लापता हैं। ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (ग्लॉफ), कम बर्फबारी, हिमस्खलन या भूस्खलन ऐसे ही कुछ कयास हैं। वहीं, शोध करने वालों की नजर से अभी यह मामला भूस्खलन की ओर संकेत कर रहा है, जिसकी वजह से भयंकर बाढ़ और तबाही की स्थिति बनी। 

वैज्ञानिकों ने डाउन टू अर्थ से कहा है कि वे ग्राउंड जीरो पहुंचकर घटना के पूर्व स्थिति को जानने की कोशिश कर रहे हैं। आकलन के बाद ही बेहतर विवरण मिल पाएगी कि आखिर यह सब कुछ कैसे हुआ होगा। 

चरम वर्षा वाली घटनाओं और भूकंप के कारण अक्सर भूस्खलन होता है। लेकिन पड़ताल बताती है कि यह दोनों वजह भूस्खलन का कारण नहीं बनी हैं।

चरम वर्षा वाली घटना की यदि पड़ताल करें तो भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक चमोली जिले में 1 जनवरी से 7 फरवरी, 2021 के बीच सामान्य से 26 फीसदी कम वर्षा हुई है। वहीं, केंद्रीय पृथ्वी मंत्रालय के अधीन नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी ने भी संबंधित इलाके में किसी तरह के भूकंप की बात नहीं कही है। 

भूस्खलन होने की तीसरी वजह यह संभव है कि वहां के भूगोल में कोई बदलाव अचानक हुआ हो या फिर धीरे-धीरे हुआ हो, जिसकी पुष्टि अभी नहीं की जा सकती। हालांकि इस तीसरे कारण की पड़ताल करने पर पता चलता है कि संबंधित क्षेत्र में ग्लेशियर्स के बर्फ के गलने और दोबारा जमने वाले बदलावों के कारण चट्टानों और मिट्टी के गुणों में बदलाव हो सकता है। 

इंस्टीट्यूट ऑफ ज्योग्राफिक साइंसेज और नैचुरल रिसोर्सेज रिसर्च, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिकों ने 1998-2000 की अवधि में हिमनद (ग्लेशिर्यस) के भूस्खलन को लेकर अध्ययन किया है। इस अध्ययन को नेचर जर्नल में 15 जनवरी, 2021 को प्रकाशित किया गया। नेचर में प्रकाशित इस जर्नल के मुताबिक बीते एक दशक में एशिया के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियर से संबंधित भूस्खलन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि, इस जर्नल के डाटासेट में वैज्ञानिकों ने भूकंप के कारण हो सकने वाले लैंडस्लाइड से हटा दिया है। 

7 फरवरी, 2021 को चमोली के संबंधित इलाके में ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से भयंकर बाढ़ और तबाही फैली? डाउन टू अर्थ ने कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगेरी में एनवॉयरमेंट साइंस प्रोग्राम के निदेशक व जियोलॉजिस्ट डैनियल शुगर से इस बारे में बातचीत की : 

डैनियल शुगर ने प्लनैट्स लैब से सेटेलाइट इमेजरी का अध्ययन किया, यह संयुक्त राज्य की सेटेलाइट मैपिंग कंपनी है जो चमोली की घटना पर अपनी अवधारणा के तहत बताती है कि बाढ़ की यह घटना एक भूस्खलन के कारण हुई है। डैनियल पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भूस्खलन के तहत इस घटना पर सेटेलाइट इमेजरी के सबूत दिए हैं। संपादित अंश यहां पढ़िए :

अक्षित संगोमला :  आप निश्चित तरीके से कैसे कह सकते हैं कि चमोली आपदा की वजह भूस्खलन है?

डैनियल शुगर : हम 100 फीसदी निश्चित तरीके से यह नहीं कह सकते हैं कि दूसरे कारण नहीं हैं। लेकिन सेटेलाइट इमेजरी के तहत लैंडस्लाइड के जो निशान मिले हैं साथ ही सेटेलाइट इमेज में दिखाई देने वाला धूल-गुबार एक ठोस तरीके से यकीन पैदा करने वाला तर्क (मेरे दिमाग में) पैदा करता है कि एक बड़ा भूस्खलन हुआ है। जो वीडियो मैंने देखा उसमें निचले क्षेत्र में बाढ़ के साथ धूल और नमी के बड़े बादल थे। सिर्फ एक सवाल मेरे दिमाग में अब भी शेष है कि इतना पानी कहां से आया ? इसकी कई तरह की संभावनाएं हैं। 

लैंडस्लाइड चट्टान और ग्लेशियर बर्फ का मिश्रण है। बड़े पैमाने पर इस तरह के लैंडस्लाइड में हीट पैदा होती है जिसके कारण ठीक-ठाक स्तर की बर्फ पिघली होगी। जब बड़ा टुकड़ा जमीन से टकराया होगा, संभव है कि पूर्व में बड़े ग्लेशियर (नाम नहीं मालूम) के सामने कोई पिघला हुआ बर्फ गिरा हो। लेकिन वीडियो में दिखने वाले पानी की मात्रा काफी अधिक है, इसलिए यहां मैं पानी के किसी अन्य स्रोत के बारे में अंदाजा लगा रहा हूं।   

यह संभव है कि ऋषिगंगा या धौलीगंगा के पास लैंडस्लाइड अस्थायी तौर पर ब्लॉक हो गया हो, एक झील बन गई हो और बाद में फट गई हो। यह अभी मेरे द्वारा लगाया गया कयास है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस बारे में और अधिक जान पाएंगे जब आज वैज्ञानिक साइट पर पहुंचेगे। 

अक्षित संगोमला :  लैंडस्लाइड (भूस्खलन) की क्या वजह हो सकती है?

डैनियल शुगर - अभी हम लैंडस्लाइड की वजह नहीं जान सकते हैं। सेटेलाइट इमेजरी यह सुझाती है कि कुछ दिन पहले कुछ बर्फ पिघली थी और जिसके कारण पानी जमा हुआ। ( मैं सोचता हूं कि इस एल्टीट्यूड पर फरवरी में यह होना अजीब है। )

यदि यह हुआ है तो जमा हुए पानी ने चट्टानों को अस्थिर किया और उन्हें लुगदी और अधिक फिसलने वाला बना दिया। मुझे ऐसा लगता है कि इसकी वजह से भी हो सकता है कि भूस्खलन हुआ हो। 

अक्षित संगोमला : यह उत्तराखंड 2013 की त्रासदी जिसे हिमालय की सुनामी कहा जाता है, उससे कैसे अलग है?  

डैनियल शुगर :  जहां तक मैं समझता हूं  कि 2013 में बाढ़ मानसून की अवधि में हुई थी। भारी वर्षा के कारण फ्लैश फ्लड और लैंडस्लाइड हुई थी। 2015 में पेपर में कई फोटो यह दर्शाते हैं कि सतह पर मिट्टी और वनस्पतियां टिक नहीं पाई थीं। वह दूसरी तरह की मास वास्टिंग है।  लैंडस्लाइड मास वास्टिंग का एक प्रकार है, लेकिन साधारण लोगों के जरिए यह इस्तेमाल किया जाता है या समझा जाता है जैसा ( 7 फरवरी, 2021) बीते कल की घटना को भी ऐसा ही देखा जा रहा है।  

मैं, 2013 की घटना के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता हूं लेकिन कल जो हुआ उसे रॉक एवालांच कहना चाहूंगा। दूसरे शब्दों में कहें कि जिसमें सिर्फ शीर्ष पर मिट्टी ही नहीं बल्कि बेडरॉक ( (तलवर्ती चट्टान का स्खलन)) भी शामिल होगा। यह बहुत बड़ा होगा और ठीक-ठाक ग्लेशियल बर्फ भी इसमें शामिल रहा होगा। इसलिए पानी की एक बड़ी भूमिका है लेकिन 2013 में वर्षा और 2021 में बर्फ का पिघलना, दोनों में काफी फर्क है। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in