मध्य भारत में भी आ सकते हैं भूकंप के तेज झटके, नहीं है सुरक्षित: रिपोर्ट

वर्तमान अध्ययन विकृत संरचनाओं के प्रकार विंध्य पर्वत की भौगोलिक संरचना इस बात की पुष्टि करती है कि उस समय भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर पांच से अधिक रही होगी
फोटो साभार: जर्नल ऑफ पेलियोगोग्राफी
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वैज्ञानिकों ने मध्य भारत के चित्रकूट-सतना के इलाकों में 140 करोड़ साल पहले आए एक शक्तिशाली भूकंप के सबूतों के बारे में पता लगाया है। जिसे लंबे समय तक भूकंपीय रूप से सुरक्षित क्षेत्र माना जाता था। अध्ययन से पता चलता है कि मध्य भारतीय क्षेत्र भूकंप को लेकर बहुत सुरक्षित नहीं है। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि भारत के इस हिस्से में तेज झटके नहीं आ सकते हैं।

हिमालय के टकराव क्षेत्र की तरह, मध्य भारत के ये इलाके भी तीव्र भूकंपीय गतिविधि से प्रभावित हो सकते हैं, जैसा कि सबूतों से पता चलता है। यह अध्ययन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग के प्रोफेसर जेके पति की अगुवाई में अनुज कुमार सिंह द्वारा किया गया है। प्रोफेसर पति, एक प्रख्यात भूविज्ञानी हैं, जो अन्य क्षेत्रों के अलावा, 1992 से बुन्देलखण्ड के विभिन्न भू-वैज्ञानिक पहलुओं और क्षेत्रों पर काम कर रहे हैं।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि चित्रकूट धाम से लगभग 3.5 किमी दूर हनुमान धारा पर्वत जिसे विंध्य पर्वत भी कहते हैं, पर पाई गई कई विकृत संरचनाएं उस समय के जमीन के नीचे होने वाले बदलावों को दर्शाती हैं।

उन्होंने कहा, नरम तलछट विरूपण संरचनाओं (एसएसडीएस) का निर्माण गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता, द्रवीकरण और भूकंपीय झटकों से उत्पन्न होने वाली कई अन्य प्रक्रियाओं से मिलकर बना है। वर्तमान अध्ययन विकृत संरचनाओं के प्रकार और उनकी जटिलता, जियोडायनामिक के फैलाव, विंध्य पर्वत की भौगोलिक संरचना इस बात की पुष्टि करती है कि उस समय भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर पांच से अधिक रही होगी।

प्रोफेसर पति ने कहा कि मध्य भारत को भूकंप की दृष्टिकोण से लंबे समय तक स्थिर माना जाता रहा है।

हालांकि, प्राचीन विंध्य बेसिन में विभिन्न प्रकार की विकृत संरचनाएं (जैसे एसएसडीएस) और उनकी संरचनात्मक विशेषताएं भूकंपीयता की लगातार घटनाओं को उजागर करती हैं।

हाल के दिनों में इस क्षेत्र में छोटे-छोटे भूकंप आए हैं, जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में जमीन के भीतर कुछ ऐसी खामियां हैं, जो भविष्य में बड़े भूकंप का कारण बन सकती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन विंध्य बेसिन के निरंतर विकास के दौरान सक्रिय टेक्टोनिक्स या भूकंपीय गतिविधियों की और इशारा करता है, जो पहले के पूर्वानुमानों के विपरीत है।

भूकंप आने से वैज्ञानिकों को पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने में मदद मिलती है, हालांकि जब तीव्रता अधिक होती है तो इससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने कहा, हालांकि हम भूकंप को रोक नहीं सकते हैं, लेकिन सरकार, विशेषकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशा निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करके उनके खतरनाक प्रभाव को नियंत्रित या कम किया जा सकता है। उनकी खोज और निष्कर्ष प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय एल्सेवियर जर्नल-जर्नल ऑफ पेलियोगोग्राफी में प्रकाशित किए गए हैं।

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