एक साल में पांचवी बार बाढ़ का सामना कर रहा है बिहार

19 अक्टूबर से उत्तर बिहार में भारी बारिश के कारण फसलें बर्बाद हो गई हैं
उत्तर बिहार के शिवहर इलाके में बारिश से धान की फसल बर्बाद हो गई। फोटो: पुष्यमित्र
उत्तर बिहार के शिवहर इलाके में बारिश से धान की फसल बर्बाद हो गई। फोटो: पुष्यमित्र
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मुजफ्फरपुर के पियर गांव के किसान ब्रह्मानंद ठाकुर ने इस साल चार एकड़ जमीन पर धान की खेती की थी। इनमें से सात-आठ कट्ठे की धान की फसल जो ऊंची जमीन पर लगी थी, वे किसी तरह काट कर ले आये थे। शेष साढ़े तीन एकड़ धान की फसल पिछले दो दिन में हुई बारिश की वजह से तबाह हो गयी। वे कहते हैं, धान की बालियां नीचे पसरी हैं और चितरा नक्षत्र में बरसा पानी ऊपर बह रहा है। अब ऐसे में एक भी दाना घर आ जाये, इसकी कोई उम्मीद नहीं। जबकि सिर्फ दस रोज पहले वे अपनी धान की फसल को लेकर प्रफुल्लित थे कि एक पौधे में 12 से 13 बालियां हैं, अब अगले साल से वे साल में तीन बार धान की खेती करेंगे। 

यही हाल पूर्णिया के किसान लेखक गिरीन्द्रनाथ झा का है। उनके खेतों में भी धान की बालियां गिरी हैं और बारिश का पानी ऊपर से बह रहा है। एक खेत में तो कटे हुए धान के पौधे समेट कर घर लाने के लिए रखे हैं, मगर बारिश के पानी ने उस फसल को कहीं का नहीं छोड़ा। यह मंजर किसी एक इलाके का नहीं है, पश्चिम चंपारण से लेकर किशनगंज तक पसरे पूरे उत्तर बिहार में हर खेत का यही है। शिवहर के लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता राकेश कुमार राइडर ने भी ऐसी ही तसवीर फेसबुक पर पोस्ट की है।

उत्तर बिहार में यह धान कटनी का मौसम है, मगर ऐन इसी वक्त मंगलवार, 19 अक्टूबर, 2021 को हुई तेज बारिश ने किसानों के चेहरे से मुस्कुराहट छीन ली। सिर्फ धान ही नहीं, आलू और दूसरी सब्जियां जो भी खेत में थीं, तबाह हो गयीं। ज्यादातर किसानों के लिए खरीफ का एक दाना घर आने की उम्मीद नहीं है, जिन थोड़े से किसानों की धान की फसल घर आ भी गयी है, वे भी नमी की वजह से बिकने लायक नहीं रहेंगी।

पिछले 24 घंटे में उत्तर बिहार के कम से कम तेरह जगहों पर सौ मिमी से अधिक बारिश हुई। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इनमें से ग्यारह इलाके कोसी और सीमांचल के अररिया, सुपौल, किशनगंज और पूर्णिया जिले में स्थित हैं। फारबिसगंज और निर्मली में 250 मिमी के करीब बारिश हुई है। बिहार के अमूमन सभी जिले में बारिश हुई।

इस बेमौसम बारिश की वजह से उत्तर बिहार में रबी की बुआई पर भी संकट मंडरा रहा है। ब्रह्मानंद ठाकुर कहते हैं कि रबी के लिए खेत तैयार करने का यही समय है। अगर अभी खेतों में पानी रहेगा तो खेत बुआई के लिए कैसे तैयार होंगे। बारिश का संकट अभी टला नहीं है। मौसम विभाग ने राज्य के कई जिलों में लगातार अगले 48 घंटे तक बारिश की चेतावनी जारी की है। इसके बाद स्थिति और भयावह होने वाली है।

गिरींद्रनाथ झा कहते हैं, हमारे इलाके में अब तक अमूमन मक्के की कटाई के वक्त ऐसी तबाही होती थी, इस बार धान की फसल भी तबाह हो गयी है। हालांकि यह कोई नयी बात नहीं है, पांच साल पहले भी ऐसा ही हुआ था। मगर यह तो सच है कि पिछले कुछ वर्षों में मौसम किसानों का साथ नहीं दे रहा।

हम लोग दूसरी फसल को अपनाने के बारे में सोचने लगे हैं। धान की खेती करना मजबूरी है। वह तो साल भर के खाने का इंतजाम भी है। गिरींद्र बिहार के सीमांचल के इलाके में रहते हैं। पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर खेती करने अपने गांव चनका आये हैं।

मंगलवार की रात ही अररिया जिले के जोगबनी समेत कई इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया है। यह बची खुची खेती को भी तबाह कर रहा है। यह बाढ़ भी सामान्य नहीं है, इन इलाकों में दशहरे के बाद अमूमन बाढ़ नहीं आती थी।

सरकारी आंकड़े भी कहते हैं कि जलवायु संकट की वजह से बिहार में बाढ़ के मामले काफी बढ़े हैं। दो दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साल 2021 में बाढ़ के बारे में सूचना जारी करते हुए बताया कि इस साल राज्य में चार चरणों में बाढ़ आयी और 31 जिले के 294 प्रखंड इससे प्रभावित हुए। इन जिलों में 6.64 लाख हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद हुई। जाहिर है, इन आंकड़ों में वे आंकड़े शामिल नहीं हैं, जो 19 और 20 अक्टूबर की बारिश में तबाह हुए। यह आंकड़ा इससे बड़ा है। इस साल बाढ़ की आवृत्ति भी बढ़ी है और बाढ़ प्रभावित जिलों की संख्या भी। अगर सीमांचल की मौजूदा बाढ़ को जोड़ दिया जाये तो इस साल बिहार में पांच दफे बाढ़ की घटना हुई है।

बिहार में बाढ़ और सूखे का इतिहास लिख रहे नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं कि बिहार में बाढ़ का समय मई से नवंबर रहा है। मैंने कई ऐसे साल भी देखे हैं, जब नवंबर में भी बाढ़ आयी है। यह नयी बात नहीं है, हां, इससे किसानों का नुकसान होता है और रबी की फसल मारी जाती है।

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