बिहार में बढ़ रहा आकाशीय बिजली का कहर, गया व मधुबनी समेत तीन जगहों पर लगेंगे सेंसर

पिछले डेढ़ महीने में आकाशीय बिजली (ठनका) ने बिहार में 70 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है
Photo: Wikimedia commons
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उमेश कुमार राय

पिछले डेढ़ महीने में आकाशीय बिजली (ठनका) ने बिहार में 70 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है, लेकिन सोचनेवाली बात ये है कि बिहार सरकार अफसोस जताकर और मुआवजे का ऐलान कर अपने दायित्व से फारिग हो जा रही है।

आपदा की शक्ल ले चुकी आकाशीय बिजली से लोगों को बचाने के लिए राज्य सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं है, सिवाय कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति करने के। कार्रवाई के नाम पर किसी इलाके में कुछ लोगों को बुला कर जागरूकता अभियान चला दिया जाता है। इससे आगे बढ़कर कुछ ठोस कदम उठाने को लेकर सरकार कुछ सोच नहीं रही है।  

दिलचस्प ये है कि राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में ही प्राकृतिक आपदाओं से होनेवाले नुकसान को कम करने के लिए बिहार आपदा जोखिम न्यूनीकरण रोडमैप भी तैयार कर लिया था। इसमें वर्ष 2030 तक प्राकृतिक आपदा से मानव क्षति के आंकड़ों में 75 प्रतिशत की कमी लाने की बात कही गई थी। लेकिन जिस तरह कुछ अंतराल के बाद हो रही हर बारिश में आकाशीय बिजली गिरने से लोगों की जान जा रही है, उससे नहीं लगता है कि सरकार जरा भी गंभीर है।

इस संबंध में डाउन टू अर्थ ने जब राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री लक्ष्मणेश्वर रॉय से बात की, तो उनका कहा था कि ये प्राकृतिक आपदा है और इससे बचाव के लिए पिछले दिनों सरकारी अफसरों व कर्मचारियों ने जिलों में जागरूकता कार्यक्रम चलाया।

आकाशीय बिजली पर मौसम विज्ञानी की राय

पटना के मौसम विज्ञान केंद्र के मौसम विज्ञानी आनंद शंकर ने डाउन टू अर्थ से कहा, ‘मॉनसून सीजन में जब भी एक अतराल तक शुष्क मौसम रहने के बाद बारिश होती है, तो वो कन्वेक्टिव क्लाउड से जुड़ी हुई होती है। इस कनवेक्टिव क्लाउड के साथ ही क्लोमोनिम्बस क्लाउड भी होता है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए जब भी एक अंतराल तक शुष्क मौसम रहता है और उसके बाद बारिश होती है, तो आकाशीय बिजली गिरती है। नवादा इसका उदाहरण है। लंबे समय तक नवादा का मौसम शुष्क था। इसके बाद अचानक बारिश हुई, तो आकाशीय बिजली गिरी। इसी तरह उत्तरी बिहार में तो लगातार बारिश होती रही, लेकिन दक्षिणी बिहार में 23 जुलाई को अंतराल के बाद बारिश हुई, तो ठनका गिरा। 23 को भी बारिश जारी रही, तो इस दिन ठनका नहीं गिरा।’ उन्होंने कहा कि मॉनसून में मौसम का मिजाज ऐसा ही रहता है।

मौसम विज्ञान केंद्र के अधिकारियों ने कहा कि आकाशीय बिजली गिरने को लेकर राज्य सरकार को अलर्ट जारी किया जा चुका है और साथ ही साथ ठनका प्रवण जोन की शिनाख्त कर राज्य सरकार को सूचना भी दी जा चुकी है। आनंद शंकर मानते हैं कि जागरूकता की कमी के कारण आकाशीय बिजली ज्यादा लोगों की जान ले रहा है।

 मौसम विज्ञानी आनंद शंकर मानते हैं कि वैश्विक स्तर पर तापमान में जो इजाफा हुआ है, उसी के कारण इतनी आकाशीय बिजली गिर रही है। 

गया और मधुबनी में लगेंगे लाइटनिंग सेंसर

बिहार देश का छठवां राज्य है जहां सबसे ज्यादा आकाशीय बिजली गिरती है। हाल के वर्षों में बिहार में ठनका अधिक गिरने के कारण बिहार सरकार ने तीन वर्ष पहले ही लाइटनिंग डिटेक्टिंग सेंसर लगाने की योजना बनाई थी। सीएम नीतीश कुमार ने इसके लिए बकायदा सर्वेक्षण करने का भी आदेश दिया था। लेकिन उस साल मामला ठंडा पड़ गया। एक साल बाद यानी 2017 में आकाशीय बिजली ने 171 लोगों की जान ले ली थी, तो फिर सरकार नींद से जागी। सरकार ने घोषणा की कि ठनका से बचाव के लिए लाइटनिंग डिटेक्टिंग सेंसर मशीनें लगाई जाएंगी। लेकिन, अब दो साल बाद सेंसर लगने की उम्मीद जगी है। सूत्रों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि अगर सबकुछ ठीक रहा, तो अगले दो महीने के भीतर बिहार की तीन जगहों पर लाइटनिंग डिटेक्टिंग सेंसर लगा दिया जाएगा। ये मशीनें 150 से 200 किलोमीटर के दायरे में बननेवाली आकाशीय बिजली की जानकारी आधे घंटे पहले दे देती है। 

वित्तवर्ष 2017-2018 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी (पुणे) के अधिकारियों ने बिहार का दौरा किया गया था और तीन जगहों पर लाइटनिंग डिटेक्टिंग सेंसर लगाने की बात कही थी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी (पुणे) के साइंटिस्ट बी गोपालकृष्णन ने डाउन टू अर्थ को बताया, ‘लाइटनिंग-डिटेक्टिंग सेंसर की खरीद की जा चुकी है। बिहार में तीन जगहों पर ये मशीन लगाने की योजना है। इनमें से दो जगहों की शिनाख्त की जा चुका है। एक गया और दूसरा मधुबनी में लगाई जाएगी। तीसरी जगह की भी शिनाख्त जल्द कर ली जाएगी और अगले दो महीनों में ये मशीनें स्थापित कर दी जाएंगी।’

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