
दुनिया भर में भूस्खलन लोगों और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। अब, लिबनिज सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल लैंडस्केप रिसर्च (जेडएएलएफ) के शोधकर्ताओं ने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ मिलकर एक नया ढांचा विकसित किया है। यह ढांचा मशीन लर्निंग विधियों का उपयोग करके भूस्खलन का सटीक पूर्वानुमान लगा सकता है।
यह मॉडल आंकड़ों का विश्लेषण कर सकता है और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की पहचान कर उनका सटीक मानचित्र बना सकता है। यह भूस्खलन के खतरों का पूर्वानुमान लगाने में 95.6 फीसदी की सटीकता हासिल करता है।
मॉडल किस तरह काम करता है?
शोध के मुताबिक, भूस्खलन के खतरों का बेहतर पूर्वानुमान लगाने के लिए, मॉडल छह अलग-अलग मशीन लर्निंग विधियों का उपयोग करता है। इसे समझने का एक सरल तरीका मौसम के पूर्वानुमान से इसकी तुलना करना है।
यदि हम कल के मौसम का पूर्वानुमान लगाना चाहते हैं, तो हम पिछले मौसम के पैटर्न का विश्लेषण करते हैं और संकेतकों की तलाश करते हैं, जैसे कि काले बादल और तेज हवाएं जो अक्सर बारिश का इशारा करते हैं।
यह मॉडल कुछ ऐसा ही करता है, लेकिन भूस्खलन के लिए और बहुत बड़े पैमाने पर विश्लेषण करता है। यह पर्यावरण संबंधी आंकड़ों की भारी मात्रा को संसाधित करता है, जैसे:
बारिश का स्तर: सबसे अधिक बारिश कहां होती है, मिट्टी की संरचना: क्या मिट्टी स्थिर है या ढीली है, परिदृश्य ढलान: भूभाग कितना ढलानदार है, वनस्पति आवरण: क्या पेड़ जमीन को स्थिर रखते हैं या पेड़ों के काटे से खतरा बढ़ा है, मानवजनित गतिविधियां: क्या ऐसी सड़कें या इमारतें हैं जो क्षेत्र को अस्थिर बनाती हैं?
मॉडल इस जानकारी की तुलना पिछले भूस्खलन की घटनाओं से करता है तथा ऐसे पैटर्न को पहचानता है जो भारी खतरे वाले क्षेत्रों की ओर इशारा करते हैं।
इसके बाद मेटा-क्लासिफायर समग्र प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए उनके सबसे सटीक पूर्वानुमानों को मिलाकर कई एआई मॉडल की ताकत का फायदा उठाता है। यह तीन प्रमुख चरणों में काम करता है:
आधार मॉडल का प्रशिक्षण - कई मशीन लर्निंग मॉडल (जैसे, लॉजिस्टिक रिग्रेशन, सपोर्ट वेक्टर मशीन, बिखरे हुए जंगल, अत्यधिक बिखरे हुए पेड़, बढ़ती ढलान और अत्यधिक ढलान) को डेटासेट पर स्वतंत्र रूप से प्रशिक्षित किया जाता है।
मेटा-विशेषताएं उत्पन्न करना - इन बेस मॉडल से हासिल किए गए पूर्वानुमानों का उपयोग नए में डालकर उपयोग किया जाता है।
मेटा क्लासिफायर या वर्गीकरण करने वाले का प्रशिक्षण - अंतिम निर्णय लेने के लिए एक आखिरी पूर्वानुमान लगाने वाले (जैसे, लॉजिस्टिक रिग्रेशन) को इन एकत्रित पूर्वानुमानों पर प्रशिक्षित किया जाता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि नए पूर्वानुमान मॉडल के साथ, भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों की पहचान पहले की तुलना में अधिक सटीकता से कर सकते हैं। यह लोगों की बेहतर सुरक्षा और टिकाऊ भूमि उपयोग को सक्षम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह मॉडल इतना अहम क्यों है?
भूस्खलन अक्सर अचानक होता है और इससे काफी नुकसान हो सकता है। पारंपरिक खतरों की आकलन करने की विधियां अक्सर गलत होती हैं या उन्हें पूरा होने में लंबा समय लगता है। नया मॉडल बड़ी मात्रा में आंकड़ों का तेजी से विश्लेषण कर सकता है और भूस्खलन के खतरों की भविष्यवाणी करने में 95.6 फीसदी की प्रभावशाली सटीकता हासिल करता है।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने भारत के पश्चिम बंगाल के उप-हिमालयी क्षेत्र में मॉडल का परीक्षण किया, जो भूस्खलन से बहुत अधिक प्रभावित क्षेत्र है। विश्लेषण से पता चला कि भारी खतरे वाले क्षेत्र मुख्य रूप से भारी बारिश, अस्थिर भूवैज्ञानिक संरचनाओं और पेड़ों के काटे जाने और शहरीकरण जैसे तेजी से हो रहे भूमि उपयोग वाले क्षेत्रों में हैं।
इस नई तकनीक का उपयोग करके, अधिकारी और आपदा प्रबंधन संगठन संवेदनशील क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिए पहले से कार्रवाई कर सकते हैं और पहले से चेतावनी जारी कर सकते हैं।
इस पद्धति का उपयोग न केवल भूस्खलन के लिए किया जा सकता है, बल्कि बाढ़ या भूमि धंसने जैसे अन्य प्राकृतिक खतरों का पूर्वानुमान लगाने के लिए भी किया जा सकता है। भविष्य में मॉडल में और अधिक सुधार किया जा सकता है और दुनिया भर में उपयोग करने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।