भारतीय उपमहाद्वीप में सूखे की गंभीरता को बढ़ा सकते हैं ऐरोसॉल: स्टडी

भारत, अमेरिका और कनाडा के वायुमंडलीय वैज्ञानिकों की टीम ने पता लगाया है कि एल नीनो वाले वर्षों के दौरान ऐरोसॉल के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में सूखे की गंभीरता को 17 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है
Photo:DTE
Photo:DTE
Published on

अभय एस.डी. राजपूत

भारत, अमेरिका और कनाडा के वायुमंडलीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने पता लगाया है कि एल नीनो वाले वर्षों के दौरान वायुमंडल में उपस्थित ऐरोसॉल भारतीय उपमहाद्वीप में सूखे की गंभीरता को 17 प्रतिशत तक बढ़ा सकते हैं।

इस अध्ययन में पता चला है कि मानसून केदौरान एल नीनो पूर्वी एशियाई क्षेत्र के ऊपर कम ऊंचाई पर पाए जाने वाले ऐरोसॉल को दक्षिण एशियाई क्षेत्र के ऊपर अधिक ऊंचाई (12-18 किलोमीटर) की ओर ले जाकर वहां एशियाई ट्रोपोपॉज ऐरोसॉल लेयर नामक एक ऐरोसॉल परत बना देती है,जो वहीं पर स्थिर रहकर भारतीय मानसून को और कमजोर कर देती है।

इस ऐरोसॉल परत के अधिक घने और मोटे होने से पृथ्वी तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा में कमी आती है, जिससे मानसून का परिसंचरण कमजोर होने के कारण सूखे की स्थिति की गंभीरता बढ़ जाती है।भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान(आईआईटीएम), पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

प्रमुख शोधकर्ता डॉ. सुवर्णा एस. फडणवीस ने इंडिया साइंस वायर कोबताया कि "भारत में एल नीनो के कारण पहले ही कम वर्षा होती है और इस तरह ऐरोसॉल के समावेश होने से वर्षा की कमी को और बढ़ जाती है। हमें  पता चलता है कि एल नीनो और ऐरोसॉल के संयुक्त प्रभाव से, एल नीनो के एकल प्रभाव की तुलना में, भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाली वर्षा में कमी आती है, जिससे सूखे की स्थिति गंभीर हो जाती है।  सैटेलाइट ऑब्जरवेशनस और मॉडल सिमुलेशनस की मदद से हमने पाया कि एल नीनो वाले वर्षों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में सूखे की गंभीरता 17 प्रतिशत बढ़ जाती है।"

अल नीनो – एक ऐसी प्राकृतिक घटनाहै, जो प्रशांत महासागर के असामान्य रूप से गर्म होने के कारण होती है। इसको पहले से ही भारतीय मानसून के लिए एक निवारक के रूप में माना जाता है क्योंकि यह महासागरों से भारतीय भूभाग की ओर आने वाली नमी भरी हवाओं के प्रवाह को अवरुद्ध करती है।

हाल के दशकों में एल नीनो घटनाओं की आवृत्ति और भारत में सूखे की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। इसे देखते हुए, शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि पूर्व और दक्षिण एशिया से औद्योगिक उत्सर्जन में भविष्य में होने वाली वृद्धि से (ऐरोसॉल में होने वाली वृद्धि) ऊपरी क्षोभमंडल में ऐरोसॉल परत अधिक चौड़ी एवं मोटी हो सकती है, जिससे संभावित रूप से सूखे की स्थिति अधिक गंभीर हो सकती है।

फडणवीस ने कहा कि “भारत जल और मौसमी परिस्थितियों की मार के प्रति संवेदनशील है। ऐसे में, एल नीनो और ऐरोसॉल के संयुक्त प्रभाव से सूखे की गंभीर स्थिति जल संकट को बढ़ावा दे सकती है। इसका सीधा असर कृषि के साथ-साथ लोगों की आजीविका पर पड़ सकता है। ऐरोसॉल उत्सर्जन को कम करने के लिए हवा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ सूखे की स्थिति को कम करना जरूरी है।" (इंडिया साइंस वायर)

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in