हिमालयी राज्यों में इस वर्ष कुल 21 बार फटे बादल, 90 फीसदी हिमाचल-उत्तराखंड प्रभावित

प्राथमिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि महासागर शायद गर्म हो रहे हैं जिसकी वजह से नमी वाली हवाएं हिमालय पहुंच रही है और जो क्लाउड बर्स्ट का कारण बन रही हैं।
Photo: @MukhtarKhatana4 / Twitter
Photo: @MukhtarKhatana4 / Twitter
Published on

घातक कोरोना संक्रमण वाले वर्ष 2021 में (जनवरी-12 जुलाई तक) हिमालयी राज्यों में एक के बाद एक बादल फटने की घटनाओं ने न सिर्फ जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है बल्कि वैज्ञानिकों को भी यह असहज करने लगा है। स्थानीय स्रोतों के मुताबिक इस वर्ष अब तक 21 बादल फटने की घटनाएं हिमालयी राज्यों में ही दर्ज की गई हैं। 

खासतौर से मई और जुलाई महीना बादल फटने की घटनाओं के लिए काफी खतरनाक साबित हुआ। इनमें हिमाचल प्रदेश में चंबा जिला और उत्तराखंड में टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जिले में बादल फटने की घटनाएं बार-बार हुई हैं। 

हालांकि, अभी तक भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने एक भी क्लाउड बर्स्ट यानी बादल फटने के घटना की पुष्टि नहीं की है। इसकी एक बड़ी वजह है आईएमडी के क्लाउड बर्स्ट का पैमाना। इस पैमाने के चलते आईएमडी ने बताया है कि 1970-2016 के बीच कुल 30 क्लाउड बर्स्ट की घटनाएं दर्ज हुई हैं। 

इनमें 17 उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में दर्ज की गई हैं।

आईएमडी के मुताबिक जब तक एक घंटे में 100 मिलीमीटर वर्षा नहीं होती तब तक वह क्लाउड बर्स्ट नहीं माना जाएगा। लेकिन सवाल यही है कि स्थानीय लोगों के द्वारा महसूस की जाने वाली बादल फटने की घटना क्या कुछ और है?

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक एनआर देशपांडे और सहयोगियों ने मिलकर विभिन्न स्टेशनों के गर्मी मानसून के 126 वर्षों (1926-2015) के वर्षा आंकडों के आधार पर बताया कि न सिर्फ क्लाउड बर्स्ट बल्कि मिनी क्लाउड बर्स्ट घटनाओं में काफी बढ़ोत्तरी हो रही है। 

शोधपत्र में मिनी क्लाउड बर्स्ट को परिभाषित करते हुए बताया गया है कि यदि लगातार दो घंटे 50 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा हो तो उसे मिनी क्लाउड बर्स्ट (एमसीबी) की श्रेणी में रखा जाए।  

इस शोधपत्र में यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि जून महीने के दौरान पश्चिमी घाट में, जुलाई और अगस्त के दौरान मध्य भारत और हिमालय की ऊंची चोटी वाली घाटियों में एमसीबी अधिक हुआ है। साथ ही हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी तट पर ज्यादातर घटनाएं काफी सुबह महसूस की गईं।

तो क्या इस वर्ष हिमालयी राज्यों में स्थानीय स्तर पर आम लोगों के द्वारा महसूस की गई बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं मिनी क्लाउड बर्स्ट श्रेणी की हैं? वर्षा के अनुपात और तीव्रता के आधार पर प्राथमिक तौर पर यह संभावना ज्यादा बन रही है।  

हाल ही में धर्मशाला और कांगड़ा के साथ कश्मीर में हुई अत्यधिक वर्षा और भूस्खलन बादल फटने की घटना को भी आईएमडी ने क्लाउड बर्स्ट के दायरे से बाहर रखा है। 

डाउन टू अर्थ ने इस वर्ष के विभिन्न मीडिया स्रोतों से पता लगाया कि हिमालय राज्यों में बादल फटने की कुल 21 घटनाओं में सभी जगह अत्यधिक वर्षा और अचानक आने वाली बाढ़ के साथ जान-माल का नुकसान भी हुआ है। कोविड संक्रमण के कारण जब भी क्लाउड बर्स्ट हुआ उस वक्त ज्यादातर बाजार, दुकानें और लोग नहीं रहे, जिससे जान की क्षति कम हुई है लेकिन संपत्ति का नुकसान हर जगह हुआ है। 

कोई घटना क्लाउड बर्स्ट है या नहीं इससे भी जरूरी चीज इसके पूर्वानुमान को लेकर है। 

क्लाउड बर्स्ट एक बेहद ही स्थानीय घटना है। बहुत कम समय में अतिवृष्टि (एक्सट्रीम रेनफॉल) और ~10 एम/एस रफ्तार से  ~4 – 6  एमएम आकार वाली बूंदें  क्लाउड बर्स्ट की पहचान हैं। क्लाउड बर्स्ट की पुष्टि के लिए तीन चीजों की पड़ताल अहम हो जाती है। पहला समय, दूसरा उसका प्रभावित दायरा और तीसरा वर्षा की मात्रा। 

स्थानीय स्तर पर बादल फटने के वास्तविक समय और तीव्रता का पता रडार या सेटेलाइट इमेज के बिना पता करना नामुमकिन है। 2013 के उत्तराखंड त्रासदी के बाद से अभी तक भारतीय मौसम विभाग संवेदनशील जगहों पर डॉप्लर रडार की व्यवस्था नहीं कर पाया है। 

श्रीनगर एनआईटी के डॉक्टर मुनीर अहमद डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि लंबे वक्त के लिए किए जाने वाले पूर्वानुमान सही साबित हो रहे हैं। ऐसे में संवेदनशील जगहों पर तैयारी की जा सकती है।

ऐसे होता है क्लाउड बर्स्ट 

क्लाउडबर्स्ट तब होता है जब नमी से चलने वाली हवा एक पहाड़ी इलाके तक जाती है, जिससे बादलों के एक ऊर्ध्वाधर स्तंभ का निर्माण होता है जिसे क्यूमुलोनिम्बस के बादलों के रूप में जाना जाता है। इस तरह के बादल आमतौर पर बारिश, गड़गड़ाहट और बिजली गिरने का कारण बनते हैं। बादलों की इस ऊपर की ओर गति को 'ऑरोग्राफिक लिफ्ट' के रूप में भी जाना जाता है। इन अस्थिर बादलों के कारण एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश होती है और पहाड़ियों के बीच मौजूद दरारों और घाटियों में बंद हो जाते हैं।

बादल फटने के लिए आवश्यक ऊर्जा वायु की उर्ध्व गति से आती है। क्लाउडबर्स्ट ज्यादातर समुद्र तल से 1,000-2,500 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं। नमी आमतौर पर पूर्व से बहने वाली निम्न स्तर की हवाओं से जुड़े गंगा के मैदानों पर एक कम दबाव प्रणाली (आमतौर पर समुद्र में चक्रवाती तूफान से जुड़ी) द्वारा प्रदान की जाती है।

महासागरों के गर्म होने का अंदेशा

डॉ अहमद ने  बताया कि बादलों के फटने के पीछे एक प्राकृतिक व्यवस्था काम करती है। हिंद महासागर से आने वाली नमी हिमालयी राज्यों पर पहुंचती है। जितना ज्यादा नमी महासागरों से हिमालय पर आएगी उतना ज्यादा ्बादल फटने की घटनाएं हो सकती हैं। हिमालय क्षेत्र में तापमान का बढ़ना या घटना और उसका क्लाउड बर्स्ट से रिश्ता एक शोध का विषय है। हालांकि प्राथमिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि महासागर शायद गर्म हो रहे हैं जिसकी वजह से नमी वाली हवाएं हिमालय पहुंच रही है और जो क्लाउड बर्स्ट का कारण बन रही हैं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in