शिशिर सिन्हा
बिहार में इस सीजन में 19 दिनों के अंतराल में चार बार आकाशीय बिजली गिर चुकी है और 37 लोगों की जान जा चुकी है। साथ ही, झुलसने के कारण दर्जनों लोग अस्पतालों में भर्ती है। इनमें बच्चे भी हैं। यह सब भी तब हुआ, जब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान सेटअप के अलावा बिहार सरकार ने पिछले साल ही साउंड डिटेक्शन के आधार पर लाइटनिंग (बिजली) की भविष्यवाणी करने वाली अमेरिकी कंपनी अर्थ नेटवर्क से डाटा शेयरिंग के लिए करार किया हुआ है।
अर्थ नेटवर्क से करार के बाद बिहार सरकार ने पिछले साल मोबाइल एप ‘इंद्रवज्र’ लॉन्च की थी और कहा गया था कि लोग इसे इंस्टॉल करें, जिससे उन्हें समय रहते आकाशीय बिजली गिरने का अलर्ट मिल जाएगा।
इस साल सबसे 5 अप्रैल को आकाशीय बिजली गिरी। इसमें पटना सहित पूरे प्रदेश में 15 लोगों की मौत हुई। 19 अप्रैल को आकाशीय बिजली से राज्य में आठ और फिर 26 अप्रैल को 12 की मौत के बाद बिहार सरकार ने विज्ञापनों के जरिए अपने इस एप का प्रचार तेज किया, लेकिन अबतक इसे करीब 10 हजार यूजर्स ने ही इंस्टॉल किया है।
एक इवेंट कंपनी में कार्यरत ऋषिराज सिंह ने ऐसे ही विज्ञापन को देख इंद्रवज्र एप डाउनलोड कर इंस्टॉल किया। ऋषिराज कहते हैं- “बेमौसम बारिश और वज्रपात की आशंका के कारण इसे इंस्टॉल किया और 05 मई को जब मौसम खराब हुआ तो बार-बार देखता रहा। राजधानी पटना में एक भी अलर्ट नहीं आया, जबकि इस दिन पटना में बिजली गिरने से तीन लोगों की मौत हुई थी।
दरअसल, पटना समेत पूरे बिहार में अभी तक ऐसा एक भी उदाहरण सरकार के पास भी नहीं है, जब इस एप के कारण किसी जिले के किसी खास इलाके में एक भी जान बचाई जा सकी हो। आईटी एक्सपर्ट राजेश कुमार इसकी वजह भी बताते हैं कि “यह एप वस्तुत: यूजर फ्रेंडली नहीं है। तत्काल चालू नहीं होता है। जीपीएस को ठीक से लोकेट नहीं करता है। हद यह है कि एप डेवलपर कंपनी के बेंगलुरू में बैठे प्रतिनिधि इस पर आ रहे रिव्यूज़ को भी नहीं देख रहे हैं।”
मोबाइल ऐप कितना कामयाब है, इस बारे में बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व्यासजी से सवाल किया गया तो वह टाल गए। जबकि राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री लक्ष्मेश्वर राय ने कहा कि “सरकार तकनीकी विकास के जरिए लगातार बिजली से होने वाले नुकसान को कम करने का प्रयास कर रही है और इसी क्रम में इंद्रवज्र एप लाया गया है। जिसके मोबाइल में यह एप होगा, उसे 40-45 मिनट पहले पता चल जाएगा कि 20 किलोमीटर के दायरे में कहीं वज्रपात होने वाला है।” लेकिन इसके आगे उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
सवाल यह है कि बिहार के गांवों में जहां सबसे ज्यादा जानें जा रहीं, वहां कितने लोग एंड्रायड यूजर हैं और कितने लोगों के मोबाइल में यह एप इंस्टॉल है। इसके जवाब में विभागीय अधिकारी कहते हैं कि इन दिनों हम लगातार विज्ञापनों के जरिए लोगों से एप इंस्टॉल करने की ताकीद कर रहे हैं। अब तक लगभग 10 हजार लोगों ने ही यह ऐप इंस्टॉल किया है।
लेकिन हालत यह है कि भागलपुर के पीरपैंती में जिस दिन आठ साल की बच्ची झुलस कर मरी, उस दिन वहां से 7 किमी दूर रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता राजेश कुमार के मोबाइल में यह एप रहते हुए भी उन्हें कोई अलर्ट नहीं मिला। राजेश कहते हैं कि “ बिहार के गांवों में इंटरनेट का नेटवर्क पूरा समय नहीं रहता, इसलिए अगर लोगों तक एसएमएस भी पहुंच जाए तो शायद नुकसान कुछ कम हो।”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर आपदा प्रबंधन विभाग ने 10 मई 2010 घोषणा की कि अब आकाशीय बिजली (वज्रपात) को प्राकृतिक आपदा माना जाएगा और लोगो को मुआवजा दिया जाएगा। तब से हर वर्ष आपदा प्रबंधन विभाग में इसके लिए अलग से बजट रहता है और प्रत्येक मृतक पर परिजन को चार लाख रुपए अनुग्रह अनुदान दिया जा रहा है। फरवरी 2014 में सरकार ने यह व्यवस्था भी कर दी कि अगर जिलाधिकारी जांच में संतुष्ट हैं कि मौत वज्रपात से हुई है तो एफआईआर या पोस्टमार्टम की प्रक्रियाओं के बगैर भी राशि जारी की जा सकती है।
औसतन हर साल बिहार में वज्रपात से 300 लोगों की मौत हो जाती है। बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग की बैठकों में सलाह के लिए बुलाए जाने वाले वज्रपात सुरक्षित भारत अभियान के संयोजक कर्नल संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि हर साल बिहार में 10-12 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाता है, लेकिन लोग बच नहीं पा रहे हैं। बिहार सरकार ने इंद्रवज्र मोबाइन एप क्यों लॉन्च की, इस पर तो वह कुछ नहीं कहना चाहते, लेकिन बिहार में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का 400 करोड़ के सैटेलाइट, 32 करोड़ के रडार और 20 लाख के साउंड डिटेक्शन सिस्टम से पूर्वानुमान (भविष्यवाणी) तो मिल ही रहा है। ऐसे में, जरूरत लाइटनिंग एरेस्टर लगाने और पूर्वानुमान की सूचना आमजन तक पहुंचाने के लिए एप से भी सुलभ सिस्टम विकसित करने की है।
श्रीवास्तव के मुताबिक, लोगों को यह बताने की जरूरत है कि हर साल वज्रपात से मरने वाले 300 लोगों में से 200 तो पेड़ के नीचे रुकने के कारण मरते हैं। जितनी राशि सरकार दो साल में इस नाम पर अनुग्रह अनुदान में खर्च करती है, उतने पैसे में पूरे बिहार में हर तरफ लाइटनिंग एरेस्टर लग सकते हैं, कम से कम वज्रपात से ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में तो लग ही सकते हैं। लाइटनिंग अरेस्टर से आकाशीय बिजली को खींचकर अर्थिंग के जरिए जमीन में समाहित किया जाता है। झारखंड में वज्रमारा जैसे कुख्यात इलाकों में यह काम किया गया है।”