रेत और धूल भरे तूफानों के लिए 25 प्रतिशत मानवजनित गतिविधियां जिम्मेवार

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 जुलाई को रेत और धूल के तूफानों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया
रेत और धूल के तूफानों से सांस संबंधी रोग, हृदय संबंधी विकार, आंख और त्वचा में जलन पैदा हो सकती है तथा मेनिन्जाइटिस जैसी अन्य बीमारियां भी फैल सकती हैं।
रेत और धूल के तूफानों से सांस संबंधी रोग, हृदय संबंधी विकार, आंख और त्वचा में जलन पैदा हो सकती है तथा मेनिन्जाइटिस जैसी अन्य बीमारियां भी फैल सकती हैं।
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रेत और धूल के तूफानों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय चिंता को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 जुलाई को रेत और धूल भरे तूफानों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया।

प्रकृति में सबसे भयावह नजारे रेत और धूल भरे काले बादल हैं जो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को अपने में समा लेते हैं। रेत और धूल के तूफान (एसडीएस) के रूप में जानी जाने वाली यह घटना दिन को रात में बदल देती है और उत्तरी चीन से लेकर उप-सहारा अफ़्रीका तक हर जगह तबाही मचाती है। पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि, आजीविका और सामाजिक-आर्थिक कल्याण पर उनके भारी प्रभावों के कारण ये तूफान हाल के दशकों में एक गंभीर वैश्विक चिंता का विषय बन गए हैं।

रेत और धूल के तूफानों का असर दुनिया के सभी क्षेत्रों में महसूस किया जाता है, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों को प्रभावित करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर में धूल उत्सर्जन का कम से कम 25 प्रतिशत मानवजनित गतिविधियों से उत्पन्न होता है और कुछ क्षेत्रों में, 20वीं सदी में रेगिस्तान की धूल दोगुनी हो गई है।

इस घटना के प्रभाव को नियंत्रित करना मुश्किल है, क्योंकि दुनिया के एक हिस्से में मानवीय गतिविधि दूसरे क्षेत्र में रेत और धूल के तूफान का कारण बन सकती है। हालांकि जिस तरह रेत और धूल के तूफान मानवीय गतिविधियों के कारण होते हैं, उसी तरह इन तूफानों को मानवीय क्रियाओं के माध्यम से कम भी किया जा सकता है।

रेत और धूल के तूफान आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों में सतत विकास को हासिल करने के लिए एक विकट और व्यापक चुनौती पेश करते हैं। वे 17 सतत विकास लक्ष्यों में से 11 को हासिल करने के लिए गंभीर चुनौतियां पेश करते हैं।

रेत और धूल के तूफानों का महासागरों पर प्रभाव: नीति निर्माताओं के लिए एक वैज्ञानिक पर्यावरणीय आकलन नामक रिपोर्ट के अनुसार, धूल की वजह से सबसे छोटे तत्वों का भी पारिस्थितिकी तंत्र के कामकाज और बड़े पैमाने पर पृथ्वी प्रणाली पर भारी प्रभाव हो सकता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रबंधन समूह के मुताबिक, हर साल लगभग दो अरब टन धूल वायुमंडल में उठती है। रेत और धूल के तूफान (एसडीएस) ज्यादातर शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्रों में आते हैं, लेकिन यह लंबी दूरी तक फैलकर बहुत दूर के इलाकों तक भी पहुंच सकता है।

रेत और धूल के तूफानों के द्वारा फैलने वाले धूल के कण, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को पोषक तत्व प्रदान करते हैं, लेकिन प्रवाल मृत्यु और तूफान निर्माण में भी योगदान दे सकते हैं।

रेत और धूल के तूफानों से सांस संबंधी रोग, हृदय संबंधी बीमारियां, आंख और त्वचा में जलन पैदा हो सकती है तथा मेनिन्जाइटिस जैसी अन्य बीमारियां भी फैल सकती हैं।

रेत और धूल के तूफानों के कारण विमानन और जमीन पर यातायात बाधित हो सकता है। रेत और धूल के तूफानों की वजह से कृषि पद्धतियां और उत्पादकता प्रभावित हो सकती है, जो मरुस्थलीकरण प्रक्रियाओं में भी योगदान दे सकती है। सतत जल और भूमि प्रबंधन पद्धतियां रेत और धूल के तूफानों के प्रभावों को कम कर सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर कहा है कि रेत और धूल के तूफानों के संग्रह का उद्देश्य रेत और धूल के तूफानों से उत्पन्न खतरों का आकलन और समाधान करने तथा रेत और धूल के तूफानों से निपटने के लिए कार्य योजना बनाने के बारे में जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान करना है। संग्रह विभिन्न स्रोतों से यह जानकारी एकत्रित करता है।

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