उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अवैध तरीके से स्टोन क्रशिंग और खनन का काम जारी है। परियोजना प्रस्तावक लीज की अनुमति लेकर अवैध काम कर रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ऐसे सभी परियोजना प्रस्तावकों की पर्यावरण मंजूरी को निरस्त करने और अवैध गतिविधियों को रोकने का आदेश दिया है।
जिले में मैसर्स मैहर स्टोन, मैसर्स जय मां भंडारी स्टोन, मैसर्स ज्योति स्टोन, मैसर्स वैष्णव स्टोन, मैसर्स गुरु कृपा एसोसिएट्स ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन समिति (एसईआईएए) से नदी किनारे खनन की पर्यायवरण मंजूरी हासिल की थी। हालांकि, इसकी एक भी शर्तों का पालन नहीं किया।
एनजीटी के पूर्व आदेश से गठित जांच समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि इन परियोजना प्रस्तावकों को नदी किनारे खोखा, ब्रह्मोरी और हर्रा व खेबंधा में खनन की लीज स्वीकृत की गई थी लेकिन वहां खनन के दौरान न तो कोई सावधानी बरती गई और न ही पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखा गया। लीज लेने वालों ने शर्तों के अनुसार अपना व्यावसायिक सामाजिक दायित्व (सीएसआर) भी नहीं निभाया।
सभी परियोजना प्रस्तावकों ने राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन समिति (एसईआईएए) की पर्यावरण मंजूरी शर्तों का खुलकर उल्लंघन किया। खनन गतिविधि के दौरान न सिर्फ खोखा में स्थित सड़क को नुकसान पहुंचाया गया बल्कि भारी वाहनों से धूल प्रदूषण भी संबंधित क्षेत्रों में फैला। इसके बाद वन विभाग ने न सिर्फ अनुमति रद्द की बल्कि 50 हजार रुपये की बैंक गारंटी भी जब्त की है। इन सभी की लीज निरस्त की जानी चाहिए।
एनजीटी में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने याची चौधरी यशवंत सिंह के मामले में इन तथ्यों पर गौर करने के बाद आदेश दिया है कि सभी की पर्यावरण मंजूरी को रद्द किया जाए। साथ ही एक महीने के भीतर पर्यावरणीय क्षति का आकलन कर उसके पुनरुद्धार के लिए योजना बनाई जाए।
पीठ ने सीपीसीबी, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सोनभद्र के जिलाधिकारी की संयुक्त समिति गठित कर जुर्माना भी वसूलने का आदेश दिया है। पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को कहा है कि वे एक्शन प्लान तैयार करवाकर उसे दो महीने के भीतर लागू करें। मामले पर 19 दिसंबर को सुनवाई होगी।