दो साल में साढ़े 10 लाख से ज्यादा ट्रेनें विलंब हुईं : आरटीआई

2017-18 के दौरान 4,98,886 मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनें विलंब हुईं जबकि 2018-19 में विलंब होने वाली ट्रेनों की संख्या बढ़कर 5,57,190 हो गई
Credit: Amar Talwar
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मोदी सरकार ने रेलवे के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे लेकिन सरकार इन दावों पर कितनी खरी उतरी? सूचना के अधिकार से हासिल दस्तावेजों के आधार पर प्रकाशित किताब “वादा फरामोशी” में इन दावों की पड़ताल की गई है। आइए इसके मुख्य बिंदुओं पर नजर डालें-

रेल हादसों में कमी का गणित  

यह सच है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में रेल हादसों में कमी आई है। रेल मंत्रालय द्वारा सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेज बताते हैं कि 2014-15 में 135 रेल दुर्घटनाएं हुईं थीं। 2015-16 में ये दुर्घटनाएं घटकर 107 और 2016-17 में 104 हो गईं। 2017-18 में 73 रेल हादसे ही हुए। हादसों में कमी के आंकड़े देखकर लगता है कि शायद मोदी सरकार ने अपने प्रयासों से हादसों को रोक लगाई या बेहतर तकनीक का इस्तेमाल किया। लेकिन हादसों में कमी के पीछे दूसरा गणित भी है और वह गणित रद्द ट्रेनों से जुड़ा है। रेल मंत्रालय के ही मुताबिक, 2014-15 में जहां 3,591 ट्रेनें रद्द हुई थीं, वहीं 2017-18 में रद्द ट्रेनों की संख्या 6 गुणा बढ़कर 21,053 हो गईं। 2015-16 में रद्द ट्रेनों की संख्या 14,336 और 2016-17 में यह संख्या 9,550 थी। किताब सवाल उठाती है कि जब ट्रेन चलेंगी ही नहीं, जो जाहिर है हादसे भी कम होंगे।

यात्रियों की संख्या में गिरावट

26 दिसंबर 2018 को लोकसभा में राज्यमंत्री (रेलवे) राजेन गोहेन ने एक लिखित जवाब में बताया कि 2013-14 के दौरान भारतीय रेल में यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या 8317 मिलियन थी जो 2016-17 तक घटकर 8116 मिलियन रह गई। दूसरे शब्दों में कहें तो तीन साल की अवधि में रेल यात्रियों की संख्या 201 मिलियन कम हो गई। इसकी एक बड़ी वजह ट्रेनों की लेटलतीफी और उनका रद्द होना है।

ट्रैक का नवीनीकरण

पुराने और जर्जर ट्रैक का नवीनीकरण रेलवे का यह एक महत्वपूर्ण काम है। पुराने ट्रैक रेल हादसों की एक बड़ी वजह हैं। लेकिन क्या वर्तमान सरकार ने इस मामले में उल्लेखनीय काम किया? इसका उत्तर भी सूचना से अधिकार से मिलता है। 4 फरवरी 2019 को मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, केवल वित्त वर्ष 2017-18 में भारतीय रेलवे ने 2009-10 के मुकाबले अधिक ट्रैक का नवीनीकरण किया। मोदी सरकार के शुरुआती तीन साल में इस दिशा में कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुआ। यूपीए-2 के शासनकाल में हर साल औसतन 3,357 किलोमीटर ट्रैक का नवीनीकरण हुआ था जबकि वर्तमान सरकार ने साल में औसतन 3,027 किलोमीटर ट्रैक का नवीनीकरण किया।  

एलआईसी का निवेश 

11 मार्च 2015 को प्रेस सूचना ब्यूरो की विज्ञप्ति में कहा गया था कि एलआईसी (जीवन बीमा निगम) भारतीय रेलवे में 1.5 लाख करोड़ रुपए का उच्चतम निवेश करेगी और यह निवेश पांच वर्षों में होगा। 27 अक्टूबर 2015 को रेल मंत्रालय ने एलआईसी से 2000 करोड़ रुपए की पहली किस्त प्राप्त करने की बात स्वीकार की। इंडियन रेलवे फाइनैंस कारपोरेशन के अनुसार, एलआईसी से अब तक उसे 16,200 करोड़ रुपए ही मिले हैं। 2018-19 के दौरान एलआईसी द्वारा एक रुपया भी जारी नहीं किया गया है। यानी कुल मिलाकर तय राशि का केवल 10.5 प्रतिशत ही जारी किया गया है।

10 लाख से ज्यादा ट्रेनें विलंब

मोदी सरकार के कार्यकाल में पिछले दो साल के दौरान एक लाख से ज्यादा ट्रेनें विलंब हुईं। एक अन्य आरटीआई के माध्यम से रेल मंत्रालय ने 18 मार्च 2019 को आदित्य शर्मा को बताया कि 2017-18 के दौरान 4,98,886 ट्रेनें (मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर) विलंब हुईं जबकि 2018-19 में विलंब होने वाली ट्रेनों की संख्या बढ़कर 5,57,190 हो गई। 

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