साभार : आईस्टॉक
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“इमोजी” की भाषा: सोशल-मीडिया पर भावों को जताने का नया तरीका

भारत जैसे देश में, जहां 22 अनुसूचित भाषाएं, सैकड़ों बोलियां और असंख्य सामाजिक वर्ग मौजूद हैं, वहां “इमोजी” संवाद का सेतुबंध बनकर उभरे हैं
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बोलती भाषाएं जहां कभी गुफाओं की दीवारों और शिलाओं पर उकेरे गए प्रतीकों से शुरू हुई थीं, आज वही संप्रेषण की यात्रा तकनीक की गोद में आकर “इमोजी” के रूप में लौट आई है।

ये छोटे-छोटे डिजिटल चिन्ह—मुस्कुराहट 😊, अश्रु 😢, हृदय ❤️, अंगूठे का इशारा 👍, तालियां 👏, नमस्ते 🙏, आग 🔥, फूल 🌸, दीपक 🪔, किताब 📚, और कॉफी ☕—आज के संवाद में भावनाओं की नई भाषा बन चुके हैं। “इमोजी” न सिर्फ शब्दों की जगह लेते हैं, बल्कि उनके पीछे छिपे जज़्बातों को सरलता, रचनात्मकता और सांस्कृतिक सौंदर्य के साथ प्रकट करते हैं। “इमोजी” (emoji) शब्द की उत्पत्ति जापानी भाषा से हुई है, जिसमें ‘e’ का अर्थ होता है “चित्र” और ‘moji’ का अर्थ है “अक्षर”।

“इमोजी” का पहला प्रयोग 1999 में जापान के “शिगेटाका कुरिटा” द्वारा मोबाइल संचार में भावनात्मक अभिव्यक्ति को आसान बनाने के लिए किया गया था। धीरे-धीरे यह प्रतीकात्मक भाषा वैश्विक हो गई, और आज यह यूनिकोड प्रणाली के माध्यम से लगभग सभी डिजिटल प्लेटफार्मों पर मौजूद है। शुरुआत में “इमोजी” मात्र चेहरे के भाव, मौसम या भोजन के संकेत तक सीमित थे, परंतु आज यह एक पूर्णांकीय संप्रेषण प्रणाली बन चुके हैं—जहां भावनाएं, विचार, व्यंग्य, प्रेम, आभार, क्रोध और यहां तक कि सामाजिक पहचान भी इन्हीं छोटे-छोटे चिन्हों से व्यक्त होती है।

भारत जैसे देश में, जहां 22 अनुसूचित भाषाएँ, सैकड़ों बोलियां और असंख्य सामाजिक वर्ग मौजूद हैं, वहां “इमोजी” संवाद का सेतुबंध बनकर उभरे हैं। यहां भाषा न जानना संवाद की अड़चन नहीं है, “इमोजी” उस कमी को पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए, एक गांव में किशोरी अपने प्रेमी को प्रतिदिन “🌅❤️🙏” “इमोजी” भेजती है, जो सुबह की शुभकामनाओं के साथ प्रेम और आदर को दर्शाता है। यह ग्रामीण क्षेत्र में भावनाओं के संयमित और सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत प्रतीक है। इसी तरह कोविड-19 महामारी के दौरान भारत सरकार और आम नागरिकों ने “😷🧴🛑” जैसे “इमोजी” का उपयोग सामाजिक दूरी, हाथ धोने और सावधानी बरतने जैसे संदेशों के लिए किया। इससे यह सिद्ध होता है कि “इमोजी” न केवल तकनीकी साधन हैं, बल्कि संकट में संप्रेषण के सशक्त माध्यम भी बन चुके हैं।

“इमोजी” के सामाजिक उपयोग में भौगोलिक और वर्गीय अंतर भी दृष्टिगोचर होता है। उदाहरण के लिए, एक युवक किसी युवती की तस्वीर पर “❤️🔥🙌” “इमोजी” डालकर आकर्षण, प्रशंसा और समर्थन प्रकट करता है। वहीं कोई किशोरी “🌸😊💫” “इमोजी” के ज़रिए अपने भावनात्मक जुड़ाव, कोमलता और आत्मीयता को व्यक्त कर सकती है। इस प्रकार के प्रतीकों के माध्यम से संबंधों की परिभाषा बनती है, जो शब्दों की सीमाओं से परे जाकर काम करती है। इन प्रतीकों का अर्थ सार्वभौमिक होते हुए भी स्थानीय संदर्भों, वर्ग, लिंग और तकनीकी साक्षरता के अनुसार बदलता रहता है। “❤️” एक युवा प्रेमी के लिए प्रेम का प्रतीक है, वहीं एक बुजुर्ग के लिए यह स्वास्थ्य या आशीर्वाद का संकेत हो सकता है। इसी प्रकार, “👊” “इमोजी” किसी के लिए साहस का प्रतीक है, तो किसी अन्य के लिए यह आक्रोश का इशारा भी बन सकता है।

“इमोजी” केवल छोटे ग्राफिक चिन्ह नहीं हैं, बल्कि ये आज के डिजिटल युग में भावना, संस्कृति और सौंदर्य के शक्तिशाली वाहक बन चुके हैं। इनका गोल चेहरा, बड़ी आँखें, और अतिशयोक्तिपूर्ण हाव-भाव — जापानी 'manga' कला से प्रेरित हैं, जो गहरे भावों को सरल चित्रों के माध्यम से संप्रेषित करती है। भारतीय संदर्भ में, “इमोजी” का यह भावप्रधान सौंदर्यशास्त्र टीवी सीरियल्स, लोककथाओं और धार्मिक प्रतीकों से मेल खाता है। उदाहरण के लिए, ‘😭’ और ‘🥺’ जैसी “इमोजी” भारतीय सास-बहू धारावाहिकों में दिखने वाली भावुकता की छवि बन चुकी हैं। इन्हें सोशल मीडिया पर युवा तब इस्तेमाल करते हैं जब वे किसी बात से दुखी हों या भावनात्मक जुड़ाव दिखाना चाहें — जैसे एक किशोरी अपने दोस्त को “🥺👉👈” भेजकर अपने मन की उलझन व्यक्त करती है। रंगों का भी महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अर्थ है। ‘🔴’ (लाल बिंदी या चूड़ी) अक्सर शादी या मांगलिक अवसर से जुड़ी होती है। ‘💃🪔🎇’ जैसे “इमोजी” त्योहारों (जैसे करवा चौथ या दीपावली) में भाव साझा करने का माध्यम बनते हैं। इस प्रकार, “इमोजी” भारतीय सोशल मीडिया में दृश्य भाषा बनकर उभरे हैं — जहां आधुनिक डिज़ाइन में स्थानीय संस्कृति और भावनात्मक गहराई समाहित है।

“इमोजी” का व्यवहारिक प्रयोग: उदहारण

a)      गांव की माँ का सन्देश (पारिवारिक स्नेह का डिजिटल रूप): टेक्स्ट: “बेटा, खाना बन गया है, जल्दी आ जा घर 🍛👩‍👦🙏” यह इमोजी उस माँ के भाव को प्रकट करता है जो अपने बेटे को स्नेहपूर्वक घर बुला रही है।

b)       किशोरी का प्रेम-सन्देश (कोमल भावों की डिजिटल प्रस्तुति): टेक्स्ट: “सुप्रभात ❤️ सोचती हूँ तुम्हारे बिना दिन अधूरा है 🌅🙏” सुबह-सुबह भेजा गया यह इमोजी सेट प्रेम, सम्मान और शुभकामना को दर्शाता है। यह एक नया डिजिटल संवाद बनाता है जिसमें शब्दों के साथ इमोजी भावनात्मक गहराई जोड़ते हैं।

c)       पीएचडी शोधार्थी का आत्म-संवाद (संघर्ष और प्रेरणा): टेक्स्ट: “आज बहुत थक गया 📚😩☕... लेकिन रुकना नहीं है 💪🔥📖” यह इमोजी दो भावों को दिखाता है—थकावट और फिर आत्म-प्रेरणा। यह स्पष्ट करता है कि युवा कैसे इमोजी का प्रयोग अपने मानसिक अनुभव साझा करने के लिए कर रहे हैं।

d)      त्योहारों का डिजिटल उत्सव (धार्मिक-सांस्कृतिक संवाद): टेक्स्ट: “आप सभी को दीपों का त्योहार मुबारक हो 🪔🎇🙏❤️” दीपावली जैसे धार्मिक पर्व पर भेजे जाने वाले यह इमोजी केवल शुभकामना नहीं, बल्कि संस्कृति, श्रद्धा और प्रेम की भावनाओं को डिजिटल माध्यम में संप्रेषित करते हैं।

e)       अंतर-क्षेत्रीय संवाद (सांस्कृतिक सेतु): टेक्स्ट: “क्या डांस किया है! 🔥 बहुत बढ़िया! 🎶💃❤️”
एक भोजपुरी युवक और मराठी युवती इंस्टाग्राम पर रील्स के ज़रिए इमोजी साझा करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि इमोजी भाषा, राज्य और संस्कृति की सीमाएँ पार कर संवाद को संभव बना रहे हैं।

f)        दिल टूटने का इमोजी संवाद (विरह और भावनात्मक पीड़ा): टेक्स्ट: “तुम्हारा जवाब नहीं आया... शायद अब रिश्ता ही नहीं रहा 💔😢📵” यह इमोजी उस पीड़ा को प्रकट करता है जो एक युवा तब महसूस करता है जब उसके प्रेम-संबंध में दूरी आ जाती है।

इन व्यवहारिक उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि “इमोजी” अब केवल डिजिटल प्रतीक नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के भावनात्मक और सामाजिक संवाद का अहम हिस्सा बन चुके हैं। ये न सिर्फ़ पारिवारिक रिश्तों, प्रेम संबंधों और शैक्षणिक संघर्षों को सरलता से अभिव्यक्त करते हैं, बल्कि भाषाई विविधता और सांस्कृतिक अंतर को भी पाटते हैं। ग्रामीण भारत से लेकर इंस्टाग्राम की रील्स तक, “इमोजी” संवाद को सहज, प्रभावी और भावपूर्ण बनाते हैं। यह नया संप्रेषण तंत्र हमारे डिजिटल युग की आत्मा बन चुका है, जहां कुछ प्रतीकों में ही पूरा भाव व्यक्त हो जाता है — बिना एक भी शब्द कहे।

“इमोजी”, जो कभी मात्र सहायक प्रतीक माने जाते थे, आज डिजिटल युग में संप्रेषण के एक सशक्त और भावनात्मक माध्यम बन चुके हैं। ये नन्हें-से चिन्ह न केवल हमारी बातचीत को रंगीन बनाते हैं, बल्कि उसमें भावों की गहराई भी जोड़ते हैं—बिना बोले, बिना लिखे, केवल देख कर समझने योग्य। जिस तरह मानव सभ्यता ने शिलालेखों और चित्रलिपियों से भाषा की शुरुआत की थी, अब वही चक्र आधुनिक तकनीक के माध्यम से एक नए रूप में लौट आया है।

भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और भाषाई विविधता से भरपूर देश में “इमोजी” एक "डिजिटल सांस्कृतिक सेतु" बन रहे हैं। माँ अपने बेटे को “🍛👩‍👦🙏” भेजती है, जिससे घरेलू स्नेह झलकता है; एक किशोरी अपने प्रेमी को “🌅❤️🙏” भेजती है, जिससे प्रेम और सम्मान की भावनाएँ उजागर होती हैं; एक शोधार्थी "📚😩☕" और “💪🔥📖” के जरिए थकान और प्रेरणा दोनों साझा करता है। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि “इमोजी” अब केवल युवा संस्कृति तक सीमित नहीं, बल्कि पीढ़ियों और संदर्भों के बीच भावनात्मक सेतु का काम कर रहे हैं। आज का बदलाव यही है—भावनाएँ अब शब्दों की गुलाम नहीं रहीं। वे अब दिखाई जाती हैं, महसूस कराई जाती हैं और साझा की जाती हैं। “इमोजी” के रूप में संवाद अब अधिक मानवीय, सहज और बहुभाषिक हो गया है। यह परिवर्तन न केवल तकनीकी है, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक भी है। यही “इमोजी” की सौंदर्यात्मक शक्ति है—जहां एक छोटा-सा चित्र, एक गहराई भरा संवाद बन जाता है।

 

लेखक:

1.      अरुण कुमार गोंड, शोधार्थी, समाजशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विशवविद्यालय

2.      केयूर पाठक, असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विशवविद्यालय

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