महाकुंभ एक मेगाइवेंट लेकिन अतीत से ही खुद कर रहा है कार्बन उत्सर्जन से बचाव

फोटो : मिधुन
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महाकुंभ दुनिया में आयोजित होने वाला एक मेगा इवेंट में से एक है। इस आयोजन में न तो किसी को निमंत्रण जाता है और न ही बुलावा बल्कि लोग स्वतः ही श्रद्धा और आस्था के कारण एक जगह पर जुड़ते हैं। इस साल प्रयागराज के महाकुंभ के 45 दिनों में लगभग 45 करोड़ से अधिक लोगों के आने-जाने की संभावना है। यह जुटान फरवरी महीने के बाद खत्म हो जाएगी, जो एक पर्यावरणीय सबक भी छोड़ जाएगी।

45 दिन चलने वाला यह मेला प्रयागराज के नदी तट के एक भाग पर एक अस्थायी जिले के रूप में निर्मित होता है। मानसून के बाद नदी के पानी के घटने पर यह रेतीला किनारा उभरता है और साल के अन्य समय में यह फिर से पानी में डूब जाता है।

महाकुंभ मेले के लिए बनाए गए जिले को समय पर हटाना आवश्यक होता है, ताकि यह पानी में डूबने से पहले समाप्त हो सके।

2013 के प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित महाकुंभ मेले के बाद, 'अस्थायी शहर' की इस अवधारणा को स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रियता मिली।

2013 के मेले में इस्तेमाल किए गए प्राथमिक निर्माण सामग्री, जैसे बांस के खंभे, रस्सियां, धातु, फाइबर और प्लास्टिक, आस-पास के गांवों, छोटे शहरों और देश के अन्य हिस्सों में पुनः उपयोग के लिए भेजे गए, जिससे कचरे को कम करने और पुनः उपयोग को बढ़ावा देने वाली एक चक्रीय उपभोग प्रणाली का निर्माण हुआ।

2013 के बाद से, पर्यावरणीय स्थिरता को और भी अधिक महत्व मिला है। इसीलिए, इस साल के कुंभ मेले में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध, सौर ऊर्जा चालित हाइब्रिड स्ट्रीट लाइट्स, अधिक कुशल कचरा निपटान प्रणालियां, और स्रोत पर कचरे के पृथक्करण को बढ़ावा देने जैसी पर्यावरण-अनुकूल पहल शामिल हैं।

चिंतन रिसर्च फाउंडेशन की रिसर्च असिस्टेंट तान्या चटर्जी की मानें तो कुंभ मेले की प्रथाएं इसे पर्यावरणीय लक्ष्यों को हासिल करने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं में शामिल करता है।

चटर्जी के मुताबिक कुंभ मेले में लगने वाली अस्थायी ढांचे और शाकाहारी भोजन की जीवनशैली और प्रदूषण फैलाने वाले अपशिष्ट का दोबारा इस्तेमाल इसे अलहदा बनाता है।

जून, 2024 में एमआईटी स्लोअन मैनेजमेंट रिव्यू में पेरिस ओलंपिक में डी-कार्बानाइजेशन प्रयासों का जिक्र किया गया था। इसी आधार पर तान्या चटर्जी ने कुंभ मेले का आकलन किया है।

उनके मुताबिक कुंभ मेले में ऐसे कई काम पर्यावरण अनुकूल हैं जो इसे डी-कार्बानाइजेशन लक्ष्यों के लिए बेहतर बनाते हैं।

चटर्जी के मुताबिक यह देखा गया कि जब भी किसी इवेंट में बड़ी संख्या में पर्यटकों के रहने और खाने व परिवहन की व्यवस्था की जाती है तो निर्माण और अवसंरचना कार्बन उत्सर्जन का बड़ा हिस्सा बनते हैं। इस तरह ऐसे इवेंट्स में डीकार्बनाइजेशन का रास्ता मुख्य रूप से इस्तेमाल की जाने वाली निर्माण सामग्री और उनके दोबारा इस्तेमाल पर निर्भर करता है।

एमआईटी के लेख में उल्लेख किया गया था कि ओलंपिक खेलों में 84 फीसदी कार्बन फुटप्रिंट अस्थायी ढांचों के निर्माण में इस्तेमाल की गई सामग्री से उत्पन्न हुआ था।

पेरिस 2024 में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए इस्तेमाल की गई सामग्रियों के दोबारा इस्तेमाल करने पर जोर दिया गया। इसके अलावा उन सेवा प्रदाताओं के टेंडर को प्राथमिकता दी, जिसमें निर्माण में उपयोग की गई सामग्रियों का स्वामित्व प्रदाताओं के पास ही रहता था और प्रदाताओं को अपनी सामग्री के लिए दूसरा बाजार बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी।

यह दृष्टिकोण कुंभ मेले के लिए चिर-परिचित है, जहां निर्माण सामग्री का दोबारा उपयोग प्रचलित है।

निर्माण और सजावट के अलावा कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा घटक भोजन और खानपान था। इसे कम करने के लिए पेरिस टीम ने स्थानीय स्रोतों और पौधों पर आधारित आहार को प्राथमिकता दी। उन्होंने सक्रिय अपशिष्ट प्रबंधन को भी बढ़ावा दिया, जिसमें ऐसा भोजन जो बिका नहीं उसे दान किया गया और दोबारा इस्तेमाल किया गया साथ ही खाद्य अपशिष्ट को पशु चारा, खाद और ऊर्जा में परिवर्तित करना शामिल था।

कुंभ मेले में यह उदाहरण पहले से ही मौजूद है। जो एक स्थायी पाक संस्कृति का प्रदर्शन करता है। यहां पूरी तरह से शाकाहारी भोजन उपलब्ध है। बचे हुए भोजन को जिसे प्रसाद माना जाता है, बर्बाद नहीं किया जा सकता और इसे पशु चारे में परिवर्तित कर दिया जाता है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि भारतीय लोगों और उनकी साझा प्रथाओं का इस तरह के स्थायी विकल्प अपनाने में बड़ा योगदान है। अधिकांश लोग कुंभ मेले तक भारतीय रेलवे से यात्रा करते हैं, क्योंकि यह किफायती और पर्यावरण के लिए अनुकूल है। भारतीय रेलवे, जो दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक है, प्रतिदिन 2 करोड़ से अधिक यात्रियों को ले जाती है और इसे यात्रा का सबसे स्थायी साधन माना जाता है।

इस प्रकार शायद अनजाने में ही हम एक देश के रूप में पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा देते रहे हैं।

इस बार उत्तर प्रदेश सरकार ने पर्यावरण-अनुकूल टैक्सियों और ऑटो रिक्शा की शुरुआत की है, जिन्हें ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। कॉम्फी ई-मोबिलिटी नाम की कंपनी ने इस ई-मोबिलिटी की पहल की है जो इन सेवाओं को महाकुंभ में लॉन्च कर रही है और बाद में इन्हें भारत के अन्य शहरों में भी विस्तार देने की योजना बना रही है।

प्रयागराज तक और वहां से आने-जाने के लिए सड़क, रेल और हवाई संपर्क को बेहतर बनाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में रेलवे पटरियों को ऊंचा करना, ट्रैफिक भीड़ को कम करने के लिए रेलवे लाइनों के पास अंडर पास और ओवरब्रिज का निर्माण व अंतर-शहर तथा अंतर-नगर परिवहन सेवाएं शामिल हैं।

वहीं, सरकार पर्यावरण-अनुकूल और देशज विकल्पों, जैसे दोना (पत्तों के कटोरे), पत्तल (पत्तों की थालियां), कुल्हड़ (मिट्टी के कप), और जूट और कपड़े के बैग को बढ़ावा दे रही है। आगंतुकों को प्लास्टिक बायबैक प्रोग्राम के माध्यम से इस्तेमाल किया हुआ प्लास्टिक बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

जिले को स्वच्छ रखने के लिए एक बड़ी टीम लगाई गई है, जिसमें एक नोडल अधिकारी स्वच्छता और प्लास्टिक मुक्त वातावरण सुनिश्चित कर रहे हैं। तान्या चटर्जी बताती हैं कि एमआईटी के लेख से बहुत सीख मिलती है किस तरह मेगा इवेंट हमें सबक देते हैं।

मेगाइवेंट के सबक?

  1. पर्यावरणीय उत्सर्जन को मापने और इसे पहले से निर्धारित करने के लिए समर्पित टीमों की आवश्यकता है। इससे न केवल उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करना बल्कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त शब्दों और मेट्रिक्स में स्थिरता पहल को संप्रेषित करना संभव होगा।

  2. कुंभ मेले में कुछ पायलट उप-जिलों में कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित करना और प्रारंभिक वर्षों में उनका परीक्षण करना फायदेमंद होगा।

  3. सरकार को कुंभ मेले में जुड़े व्यवहारगत परिवर्तनों के प्रभाव का उपयोग करना चाहिए और रीसाइक्लिंग, सेकंड-हैंड बाजारों, और कचरा प्रबंधन जैसी प्रथाओं को अपनाने के लिए इसे एक अवसर के रूप में देखना चाहिए।

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