कुंभ जैसे आयोजनों में लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। इन आयोजनों में उच्च रक्तचाप जैसे गैर-संचारी रोगों से ग्रस्त लोगों की समय रहते पहचान करके इन बीमारियों की रोकथाम की प्रभावी योजना बनाई जा सकती है।
वर्ष 2015 में नासिक में आयोजित सिंहस्थ कुंभ में लोगों की उच्च रक्तचाप एवं ओरल हेल्थ की जांच करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस अध्ययन में पांच हजार से अधिक लोगों को शामिल किया गया था।
अध्ययन के दौरान ब्लड प्रेशर की जांच के आधार पर 5,760 लोगों में हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप की जांच की गई, जिसमें से 1783 (33.6 प्रतिशत) लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित पाए गए। इसमें से उच्च रक्तचाप से पीड़ित 1580 लोगों को अपनी बीमारी के बारे में पहले जानकारी नहीं थी।
अध्ययनकर्ताओं की टीम में शामिल डॉ. सत्चित बलसारी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘‘उच्च रक्तचाप के कारण हर साल लाखों लोग हृदय संबंधी रोगों से ग्रस्त होकर मौत का शिकार बन जाते हैं क्योंकि उन्हें बीमारी के बारे में जानकारी नहीं होती। यह अध्ययन कम संसाधनों में उच्च रक्तचाप की जांच की आवश्यकता एवं उसकी व्यवहारिकता को दर्शाता है और जन-स्वास्थ्य के रणीनीतिकारों को सचेत करता है कि इन बीमारियों से संबंधित स्वास्थ्य कार्यक्रमों को अमल में लाने से पहले उसके दीर्घकालीन प्रभाव का मूल्यांकन जरूरी है।’’
गैर-संचारी बीमारियों के लक्षण देर से सामने आते हैं। इसलिए समय रहते इनकी पहचान करना जरूरी है। कई मामलों में पाया गया है कि समय रहते कैंसर की पहचान हो जाए तो बीमारी से उबरने में मदद मिल सकती है। भारत में होने वाली 60 प्रतिशत मौतें हृदयघात, स्ट्रोक, मधुमेह, अस्थमा और कैंसर जैसी गैर-संचारी बीमारियों के कारण होती हैं। इसमें से 55 प्रतिशत लोगों की मौत समय से पहले हो जाती है, जिसके कारण पीड़ित परिवारों और देश पर आर्थिक एवं सामाजिक दबाव बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गैर-संचारी रोगों से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके अंतर्गत हाइपरटेंशन, डायबिटीज, मुंह का कैंसर, स्तन कैंसर और सर्विक्स कैंसर समेत पांच प्रमुख बीमारियों को केंद्र में रखा गया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत जन-समूह आधारित स्वास्थ्य जांच के जरिये बीमारियों का पता लगाने की पहल की गई है।
डॉ. बलसारी के मुताबिक ‘‘भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न भीड़ भरे आयोजनों में गैर-संचारी बीमारियों की जांच के लिए कार्यक्रम चलाए जाते हैं। लेकिन फॉलो-अप और रेफरल सिस्टम कमजोर होने के कारण उनका मकसद पूरा नहीं हो पाता। इस तरह के स्वास्थ्य जांच कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए इन कार्यक्रमों का फॉलो-अप बेहद जरूरी है।’’
इंडियन डेंटल एसोसिएशन, एमजीवी डेंटल कॉलेज-नासिक के अलावा अमेरिका के बेथ इस्राइल डिकोनेस मेडिकल सेंटर और हार्वर्ड एफएक्सबी सेंटर फॉर हेल्थ ऐंड ह्यूमन राइट्स, अलबर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडीसिन और वेल कॉर्नेल मेडिसिन के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन हाल में जर्नल ऑफ ह्यूमन हाइपरटेंशन में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)