दिल दिया गल्लां

अचानक नागराजू बोल उठे, यमराज जी मैं वापस जाने को तैयार हूं पर आप प्लीज मुझे गिनी-पिग बनाकर भेजें। गिनी-पिग! यानी वह जंतु जिस पर वैज्ञानिक लोग प्रयोग करते हैं?
सोरित/सीएसई
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मई का महीना था। लू भरी सुहानी गर्मी की चांदनी रात थी। तीन लोग चलते चले जा रहे थे। दो आगे-आगे और एक पीछे-पीछे लड़खड़ाते हुए चल रहा था पर देखने की बात यह थी कि चांदनी रात होने के बावजूद किसी की परछाईं नहीं पड़ रही थी। पड़ती भी कैसे? तीनों भूत जो थे आखिर!

पीछे चलने वाले ने कहा, “लग रहा है कि चांद भी गर्मी की किरणें बरसा रहा है। कहीं छाया मिले तो दो पल सुस्ता लें।”  

आगे-आगे चलने वाले में से एक ने ताना मारते हुए कहा, “ओए छायावादी कवि नागराजू जी! जल्दी-जल्दी पैर चलाओ, हम यमदूतों को और भी आत्माओं को लेना है।”  

थोड़ी ही देर में वे लोक यमराज के दरबार में थे जहां भारी भीड़ थी। एक ओर चित्रगुप्त एक मोटी सी बही में देखकर मिमियाते हुए कुछ कह रहे थे। पास ही एक ऊंची सी टेबिल पर यमराज, “आर्डर! आर्डर!” चीख रहे थे।  

चित्रगुप्त ने घूरकर नागराजू को देखा, फिर अपने बही के कुछ पन्ने पलटे और यमराज की तरफ मुड़कर मिमियाते हुए बोले, “ कोई डेटा नहीं शो हो रहा है सर। लगता है नेट-डाउन है!”

यमराज ने जल्दी-जल्दी नागराजू के कागजातों, आधार डेटा पर एक नजर डाली और बोले, “ नागराजू फ्रॉम करीमनगर, तेलंगाना ... पर तुम्हारे पास अब भी बीस साल का मर्त्यलोक का वीजा यानी उम्र बाकी है।”

नागराजू बोले, “अब क्या बताएं शिरिमान, आपको तो ‘इंडियन-विलेजेस’ की कहानी सब पता है। जिधर देखो उधर गरीबी-भुखमरी और बेरोजगारी। एक दिन पता चला कि गांव में कुछ देसी-बिदेसी दवा कंपनी के लोग दवा बांट रहे हैं और उन दवाओं-टीकों के बदले लोगों को पैसे भी दे रहे हैं। पूछने पर क्लिनिकल ट्रेल जैसा कुछ बताया। कहां तो हमारे पास दवा खरीदने के पैसे नहीं होते और कहां यहां विदेसी बाबू लोग मुफ्त में दवा-टीका भी दे रहे थे और उसको खाने के लिए पैसे भी। हमें तो लगा कि और कहीं आए न आए हमारे गांव में अच्छे दिन आ ही गए हैं।   

मैंने भी दवा ली। मुझे भी पैसे मिले। इन पैसों से कुछ दिन अच्छे चले, फिर एक दिन यह पैसे खत्म हो गए। एक बार फिर गरीबी और भुखमरी की नौबत आ गई। एक रात घर में खाने को कुछ भी नहीं था। अचानक मुझे याद आया कि दवाइयां तो हैं! सो उस रात मेरे पूरे परिवार ने खाने के नाम पर दो-चार गोलियों को खाकर अपनी भूख शांत की। भूख तो शांत क्या होती, मैं हमेशा के लिए शांत हो गया साहब जी।”

यमराज बोले, “ रिअली सैड। पर भाई जब तक तुम्हारे मर्त्यलोक में रहने का परमिट है मैं कानूनन तुम्हे यहां का वीसा नहीं दे सकता। तुम्हें वापस मर्त्यलोक में जाना होगा।”

अचानक नागराजू बोल उठे, “ यमराज जी मैं वापस जाने को तैयार हूं पर आप प्लीज मुझे गिनी-पिग बनाकर भेजें।”

“गिनी-पिग! यानी वह जंतु जिस पर वैज्ञानिक लोग प्रयोग करते हैं? यह कैसी डिमांड है नागराजू?” यमराज ने आश्चर्य से पूछा।

“बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के लिए हम तीसरी दुनिया की गरीब जनता गिनी-पिग ही तो हैं श्रीमान। इसीलिए दवा कंपनियां हम पर अपने टीकों-दवाओं का परीक्षण करती हैं। हमारे बच्चों को भी नहीं छोड़ते। इसके बदले कभी थोड़े बहुत पैसे पकड़ा दिए जाते हैं। हम और हमारे बच्चे इन टीकों के जहर से बेमौत मरते हैं पर किसे फिक्र है? कौन पूछता है कि आज किसी प्रयोगशाला में कितने चूहे, गिनी-पिग प्रयोगों के दौरान मरे? यमराज जी अब मैं और इंसान होने के भरम में नहीं जीना चाहता... आप मुझे बेशक अगला जनम दे दें पर, अगले जनम मोहे तीसरी दुनिया का गरीब मत कीजो...”

इससे आगे नागराजू जी से कुछ कहते नहीं बना। उनका गला भर आया था।

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