विश्व सेप्सिस दिवस: जानलेवा संक्रमण से पांच में से एक मौत, जानें बचाव के उपाय

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सेप्सिस के लगभग आधे मामले पांच साल से कम उम्र के बच्चों में होते हैं।
साल 2020 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 4.89 करोड़ मामले और 1.1 करोड़ सेप्सिस से संबंधित मौतें दर्ज की गई, जो दुनिया में होने वाली मौतों का 20 प्रतिशत है।
साल 2020 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 4.89 करोड़ मामले और 1.1 करोड़ सेप्सिस से संबंधित मौतें दर्ज की गई, जो दुनिया में होने वाली मौतों का 20 प्रतिशत है। फोटो साभार: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)
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हर साल 13 सितंबर को मनाया जाने वाला विश्व सेप्सिस दिवस दुनिया भर के लोगों के लिए सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का एक अवसर है।

सेप्सिस एक खतरनाक स्थिति है जो तब उत्पन्न होती है जब किसी संक्रमण के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया उसके अपने ऊतकों और अंगों को नुकसान पहुंचाती है। यदि समय रहते इसका पता न लगाया जाए और तुरंत उपचार न किया जाए तो इससे सदमा लगने, कई अंगों का काम न करना यहां तक की मृत्यु तक हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, सेप्सिस दुनिया भर में मौत के सबसे आम कारणों में से एक है। साल 2020 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में 4.89 करोड़ मामले और 1.1 करोड़ सेप्सिस से संबंधित मौतें दर्ज की गई, जो दुनिया में होने वाली मौतों का 20 प्रतिशत है। सेप्सिस लगातार दुनिया भर में स्वास्थ्य को खतरनाक तरीके से प्रभावित कर रहा है, इसलिए इसकी जटिलताओं और चुनौतियों को समझना महत्वपूर्ण हो गया है।

सेप्सिस, एक जानलेवा स्थिति है जो संक्रमण के प्रति अतिसक्रिय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण होती है। सेप्सिस की मृत्यु दर काफी अधिक है जिसके कारण एक गंभीर खतरा बना रहता है, खासकर बुजुर्गों, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों और गर्भवती महिलाओं जैसी कमजोर आबादी में। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सेप्सिस के लगभग आधे मामले पांच साल से कम उम्र के बच्चों में होते हैं। डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया भर में सेप्सिस के कारण पांच में से एक मौत होती है।

कैसे होता है सेप्सिस, क्या है उपचार?

सेप्सिस एक सिंड्रोम है जिसमें शरीर के किसी खास हिस्से में संक्रमण होता है और यह खून के द्वारा फैलता है जिससे अंग खराब हो जाते हैं। सेप्सिस के कई रूप होते हैं। सेप्सिस के शुरुआती हिस्से को सीरस कहा जाता है, जिसमें केवल सूजन होती है और सेप्सिस के आखिरी हिस्से को सेप्टिक शॉक कहा जाता है। संक्रमण के रक्त में फैलने की वजह से मरीज का रक्तचाप गिरने लगता है।

स्वास्थ्य सेवा के छेत्र में इतनी प्रगति के बावजूद सेप्सिस की मृत्यु दर बहुत अधिक है। अभी भी इसके प्रभावित लोगों में से 40-50 फीसदी लोग काल के गाल में समा जाते हैं। सेप्सिस के मामले में एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन में एक घंटे की देरी भी मृत्यु दर को चार से पांच फीसदी तक बढ़ा देती है, इसलिए समय रहते इसका पता लगाना जरुरी हो जाता है।

सेप्सिस के शुरुआती लक्षण बुखार, सांस लेने में कठिनाई, कभी-कभी मतली, रक्तचाप में गिरावट के कारण रोगी को नींद आ सकती है। किसी भी स्वास्थ्य सेवा पेशेवर को शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर तुरंत सेप्सिस के बारे में सोचना चाहिए और इन रोगियों को भर्ती करना चाहिए।

सेप्सिस हर मरीज में अलग-अलग होता है, यह मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, जो मरीज बुजुर्ग हैं, हार्ट फेलियर और अस्थमा जैसी बीमारियों के साथ जी रहे हैं, जो मरीज कैंसर का इलाज करा रहे हैं और जो स्टेरॉयड ले रहे हैं, उनमें बुनियादी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, इसलिए इन श्रेणियों के मरीजों में छोटे-छोटे कदम भी बहुत बड़ी समस्या बन सकते हैं, यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकते हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि खास तौर पर 65 साल से अधिक उम्र के मरीजों को सेप्सिस के अपने शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करने चाहिए।

डब्ल्यूएचओ ने सेप्सिस से निपटने के लिए इसकी पहचान, निगरानी, रोकथाम और उपचार में सुधार के लिए, विशेष रूप से प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की देखभाल के लिए, तेज, किफायती और उचित नैदानिक उपकरण विकसित किए जाने चाहिए।

स्वास्थ्य कर्मियों और समुदायों को शामिल करना और उन्हें बेहतर तरीके से शिक्षित करना कि वे संक्रमण के सेप्सिस में बदलने के खतरों को कम न आंकना, और नैदानिक जटिलताओं और महामारी के प्रसार से बचने के लिए तुरंत देखभाल किया जाना चाहिए।

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