
आज, 13 मार्च को विश्व किडनी दिवस मनाया जा रहा है। इस अवसर पर एक चिंताजनक प्रवृत्ति को सामने लाना जरूरी है, 50 साल से कम आयु के लोगों में किडनी कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। एक समय पारंपरिक रूप से बुजुर्गों की बीमारी मानी जाने वाली किडनी की बीमारी अब केवल उन्हीं तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि युवा आयु वर्ग में इस बीमारी के बढ़ने से बड़े पैमाने पर नई चुनौतियां सामने आ रही हैं।
युवा आबादी के क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) की चपेट में आने के पीछे का कारण मधुमेह, उच्च रक्तचाप और जीवन शैली में बदलाव होना है।
किडनी या गुर्दे हमारे शरीर का एक अहम अंग हैं क्योंकि वे चौबीसों घंटे काम करते हैं, विषाक्त पदार्थों को छानने, इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित करने और रक्त में पानी, नमक और खनिजों का स्वस्थ संतुलन बनाए रखने जैसे आवश्यक कार्य करते हैं। वे हार्मोन का उत्पादन करके हड्डियों के स्वास्थ्य और लाल रक्त कोशिका उत्पादन को भी नियंत्रित करते हैं।
मूत्र मार्ग के संक्रमण (यूटीआई), गुर्दे की पथरी और अन्य गंभीर गुर्दे की बीमारियों जैसी स्थितियों को रोकने के लिए गुर्दे के कार्य को बनाए रखना जरूरी है जो अनुपचारित रहने पर जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं।
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य संकट के रूप में तेजी से उभर रहा है, देश में दक्षिणी क्षेत्र में इसका प्रचलन 14.78 प्रतिशत है।
पुडुचेरी के जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जेआईपीएमईआर) द्वारा नेफ्रोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि इस बीमारी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, भारत में कुल क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) का प्रचलन अब 13.24 प्रतिशत है।
सीकेडी भारत में चुपचाप एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में उभर रहा है, जो बिना किसी चेतावनी के लाखों लोगों को प्रभावित कर रहा है।
चिंताजनक बात यह है कि भारत में सीकेडी का प्रचलन छह सालों में 47.3 प्रतिशत बढ़ा है, जो 2011 और 2017 के बीच 11.12 प्रतिशत से बढ़कर 2018 और 2023 के बीच 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में 16.38 प्रतिशत हो गया है।
पुरुष क्रोनिक किडनी रोग से अधिक प्रभावित होते हैं, जहां 14.80 प्रतिशत लोग इससे पीड़ित हैं, महिलाओं में यह दर 13.51 प्रतिशत है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भविष्य के अध्ययनों से क्रोनिक किडनी रोग की दर 2.64 प्रतिशत से 30.17 प्रतिशत के बीच कहीं भी सामने आ सकती है, जो इस बात का संकेत है कि यदि निवारक उपायों को तुरंत लागू नहीं किया गया तो इससे भी अधिक संकट के आसार हैं।
जबकि दक्षिण भारत में क्रोनिक किडनी रोग की दर सबसे अधिक है, विभिन्न क्षेत्रों में क्रोनिक किडनी रोग की दर में काफी भिन्नता है। पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में भी क्रमशः 15.27 प्रतिशत और 16.74 प्रतिशत की व्यापकता के साथ चिंताजनक रूप से उच्च दर दिखाई देती है।
शोध के मुताबिक, पूर्वी क्षेत्र में क्रोनिक किडनी रोग का प्रसार 8.58 प्रतिशत है, जबकि उत्तर भारत में सबसे कम 7.2 प्रतिशत दर्ज किया गया है। हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों के बहुत कम आंकड़े उपलब्ध थे, जो रोग की सीमा को पूरी तरह से समझने के लिए आगे के शोध करने की जरूरत है।
क्षेत्रीय अंतरों से परे, क्रोनिक किडनी रोग असमान रूप से ग्रामीण आबादी को प्रभावित करता है, जहां व्यापकता 15.34 प्रतिशत है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 10.65 प्रतिशत है।
इस विश्व किडनी दिवस पर, किडनी के स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर गौर करें। इस बढ़ती हुई समस्या से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है। एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाना, नियमित स्वास्थ्य की जांच करवाना और किडनी की बीमारी का जल्द पता लगाने और उपचार के लिए शोध को बढ़ावा देना।
किडनी स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर, एक ऐसे भविष्य की कल्पना की जा सकते हैं जहां किडनी कैंसर का न केवल इलाज किया जा सकता है, बल्कि इसे रोका भी जा सकता है, खासकर युवा लोगों में।