वर्ल्ड बैंक ने भारत में जूनोटिक बीमारियों की रोकथाम के लिए 675 करोड़ रुपए के कर्ज को दी मंजूरी

मनुष्यों में 60 फीसदी से अधिक संक्रामक रोग जूनोटिक हैं, जो हर साल 33 लाख लोगों की जान ले रही हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन के चलते इनका खतरा और अधिक बढ़ गया है
पुष्कर मेले में अपनी गाय के साथ भारतीय किसान; फोटो: आईस्टॉक
पुष्कर मेले में अपनी गाय के साथ भारतीय किसान; फोटो: आईस्टॉक
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वर्ल्ड बैंक ने भारत में जूनोटिक और संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिए 675 करोड़ रुपए (8.2 करोड़ डॉलर) के कर्ज को मंजूरी दे दी है। वर्ल्ड बैंक ने यह कर्ज भारत में मवेशियों के स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए बेहतर तरीकों को अपनाने के लिए दिया है, जिससे पशुओं से फैलने वाले इन जूनोटिक और संक्रामक रोगों को फैलने से रोका जा सके। साथ ही इसका लक्ष्य स्थानीय और सीमापार से उभरते संक्रामक रोगों के खतरे का पता लगाना और उनसे निपटना है।

यह समर्थन भारत के ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण को मजबूती देगा जो मानता है कि मनुष्य और पशु अपने साझा वातावरण के जरिए एक दूसरे से जुड़े हैं। गौरतलब है कि मवेशियों में फैलते रोग, वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं जो आर्थिक रूप से भी भारी नुकसान का कारण बन रहे हैं।

यदि आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया में मवेशियों की सबसे ज्यादा आबादी भारत में है, यही वजह है कि इनमें फैलने वाले रोगों और जूनोटिक डिजीज का खतरा भी सबसे ज्यादा है। उदाहरण के लिए यदि फुट एंड माउथ डिजीज यानी मुंहपका-खुरपका रोग की बात करें तो उसकी वजह से देश को सालाना 27 हजार करोड़ रुपए (330 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का खर्च उठाना पड़ रहा है।

हर साल 33 लाख लोगों की जान ले रहीं हैं जूनोटिक बीमारियां 

वैश्विक स्तर पर देखें तो केवल भारत ही नहीं दुनिया भर में जूनोटिक बीमारियां जैसे एड्स, इबोला, जीका और कोविड-19 एक बड़ा खतरा बन चुकी हैं, जो हर साल करीब 33 लाख लोगों की जान ले रही हैं। ये वो बीमारियां हैं जो जंगली जीवों और मवेशियों से इंसानों में फैल रही हैं। यदि देखा जाए तो इन बीमारियों के फैलने के लिए काफी हद तक हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। जो इन जीवों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट करके उन्हें इंसानों में फैलने के लिए मजबूर कर रहे हैं।   

जैसे-जैसे इंसानों का खान-पान और जीवन शैली बदल रही है। न जाने कौन-कौन से जीव उनके खान-पान में शामिल हो रहे हैं। इनमें कई जीव तो ऐसे हैं जिनमें काफी खतरनाक बैक्टीरिया और वायरस होते हैं। नतीजन इन जीवों के जरिए नई बीमारियां भी इंसानों में फैल रही है।

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स फॉरेस्ट 2022” रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि भारत और चीन नई जूनोटिक और वायरल बीमारियों के सबसे बड़े हॉटस्पॉट बन सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यदि जंगलों पर इसी तरह इंसानी दबाव बढ़ता रहा और उनका विनाश होता रहा तो अगले कुछ दशकों में इन बीमारियों के चपेट में आने की आशंका भी बढ़ जाएगी।

वहीं एक अन्य शोध के हवाले से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते इंसानों में इन जूनोटिक बीमारियों के फैलने का खतरा काफी बढ़ गया है। रिसर्च के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से अलग-अलग प्रजाति में वायरस के फैलने का जोखिम बढ़ जाता है। अनुमान है कि कम से कम 10 हजार वायरस ऐसे हैं जो इंसानों को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं।

आपकी जानकारी के ली बता दें कि द एनिमल हेल्थ सिस्टम सपोर्ट फॉर वन हेल्थ प्रोग्राम पशु रोगों एवं उनसे फैलने वाली जूनोटिक बीमारियों के नियंत्रण के उद्देश्य से भारत में बनाए गए पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम की मदद करेगा।

इस बारे में भारत में विश्व बैंक के कंट्री निदेशक आगस्त तानो कुआमे का कहना है कि, "यह नया कार्यक्रम पशुधन एवं वन्यजीवों के क्षेत्र में बीमारियों की निगरानी एवं पशुचिकित्सा सेवाओं को बेहतर करके पशु में फैलने वाले रोगों के प्रकोप के जोखिमों को कम करेगा।" उन्होंने बताया कि इससे इस कार्यक्रम में शामिल राज्यों असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा और मध्य प्रदेश के कम से कम 29 लाख किसानों को इसका फायदा होगा। इसकी वजह से पशुपालकों की बेहतर पशु स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ेगी।

इतना ही नहीं अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं के जरिए, यह कार्यक्रम मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग के साथ आंकड़ों की आपसी साझेदारी को भी मजबूत बनाएगा। इतना ही नहीं यह कार्यक्रम पशु उत्पादों, विशेष रूप से पशुधन एवं उनसे प्राप्त होने वाले खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता एवं सुरक्षा में वृद्धि करेगा।

बदलती जलवायु के साथ और बढ़ रहा है इन बीमारियों का खतरा

इस बारे में कार्यक्रम की टास्क टीम के प्रमुख हिकुएपी काटजिउओंगुआ, आदर्श कुमार और अनुपम जोशी ने बताया कि ‘भारत में काम करने वालों का करीब 68 फीसदी हिस्सा कृषि पर निर्भर है। वहीं घरेलू मवेशियों और पोल्ट्री के निकट संपर्क में होने से उनमें अक्सर बीमार या संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने का खतरा बना रहता है। उनका कहना है कि, "पशु रोग एवं उनसे होने वाली जूनोटिक बीमारियों के लिए बेहतर नीतियों का समर्थन करके यह यह कार्यक्रम पशुधन मूल्य श्रृंखलाओं में खाद्य सुरक्षा को बढ़ाएगा।"

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी) से मिलने वाला यह 675 करोड़ रुपए का कर्ज 11.5 वर्षों के लिए दिया गया है, जिसमें साढ़े चार वर्षों की छूट अवधि भी शामिल है।

हाल ही में सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ओर से आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग 2022 के दौरान भी विशेषज्ञों ने कोरोना महामारी समेत अन्य जूनोटिक बीमारियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी। विशेषज्ञों के मुताबिक दुनियाभर में फैलने वाली संक्रामक बीमारियों के पीछे की सबसे बड़ी वजह जूनोटिक बीमारियां है। इन जूनोटिक बीमारियों की वजह से हर साल दुनिया भर में 30 लाख लोगों की जानें चली जाती हैं।

इस बारे में सीएसई के सतत खाद्य प्रणाली कार्यक्रम के निदेशक अमित खुराना ने जानकारी दी है कि जूनोटिक बिमारियों का खतरा जलवायु परिवर्तन के चलते और अधिक बढ़ गया है। उन्होंने बतााया कि मनुष्यों में 60 फीसदी से अधिक संक्रामक रोग जूनोटिक हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि इनसे निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। वर्ल्ड बैंक द्वारा दिया गया यह कर्ज उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।

एक अमेरिकी डॉलर = 82.26 भारतीय रुपए

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