देश में खून की कमी से जुड़ी बीमारी यानी एनीमिया का देशव्यापी प्रसार बढ़ रहा है। ऐसा इसके सभी आयु-समूह और लिंगों में प्रसार बढ़ने के चलते हो रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के मुताबिक, बच्चों, गर्भवती और सामान्य महिलाओं और पुरुषों में यह दो से लेकर नौ फीसदी तक बढ़ा है।
इसका सबसे ज्यादा उभार छह साल यानी 72 महीने और 59 महीने के बच्चों के बीच पाया गया है, जिनमें से 67.1 फीसदी बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। जबकि 2015-2016 मे हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में इस आयु-समूह के बच्चों में 58.6 फीसदी बच्चे ही एनीमिया का शिकार थे। ग्रामीण क्षेत्रों में 68.3 फीसदी बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 64.2 फीसदी बच्चे इसका शिकार हैं।
एनीमिया का दूसरा सबसे ज्यादा उभार 15 से 19 साल की युवा महिलाओं में दर्ज किया गया, जहां 2019 से 2021 के बीच इससे पीड़ित महिलाओं का आंकड़ा 59.1 फीसदी पहुंच गया, जबकि 2015-2016 के सर्वेक्षण में यह 54.1 फीसदी था। बच्चों की तरह ही ग्रामीण क्षेत्रों की युवा महिलाएं, शहरी क्षेत्रों की अपनी हमउम्र महिलाओं की तुलना में एनीमिया की ज्यादा शिकार पाई गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 60.2 फीसदी, जबकि शहरी क्षेत्रों में 56.2 फीसदी महिलाएं इससे पीड़ित है।
यही नहीं, 15 से 49 की उम्र की बीच की सभी महिलाओं में पिछले सर्वेक्षण की तुलना में चार फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है। 2015-2016 के सर्वेक्षण में इस आयु-समूह की 53.1 फीसदी महिलाएं एनीमिया का शिकार थीं जबकि 2019-2021 के सर्वेक्षण में 57 फीसदी महिलाएं इस बीमारी की चपेट में पाई गई हैं। इसी तरह से इस आयु-समूह की गर्भवती महिलाओं में भी एनीमिया का प्रसार बढ़ा है। पिछले सर्वेक्षण में 50.4 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं जबकि अब 52.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं इसका शिकार हैं।
जहां तक पुरुषों का सवाल है, उनमें महिलाओं और बच्चों की तुलना में एनीमिया का प्रसार कम तेजी से बढ़ा है और उसमें भी उनकी उम्र का इससे संबंध नहीं पाया गया। 2015-2016 के सर्वेक्षण में 15 से 49 की उम्र की बीच के 22.7 फीसदी पुरुष एनीमिया का शिकार थे, जबकि 2019-2021 के सर्वेक्षण में 25 फीसदी पुरुष एनीमिया का शिकार हैं। यानी उनमें वृद्धि का प्रतिशत 2.3 ही है। वहीं 15 से 19 आयु-समूह के 29.2 फीसदी पुरुष पिछले सर्वेक्षण में इस बीमारी की चपेट में थे जबकि ताजा सर्वेक्षण में 1.9 फीसदी की वृद्धि के साथ, 31.1 फीसदी युवा पुरुषों में यह बीमारी दर्ज की गई।
राज्यों की बात करें तो, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के आंकड़ों में वर्तमान और 2015-2016 के बीच एनीमिया के मामलों में बढ़त दर्ज की गई है। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सभी आयु-समूहों में 2-6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि राजस्थान 9-12 फीसदी की वृद्धि के साथ सबसे खराब स्थिति में है।
इस मोर्चे पर सबसे खराब हालत असम की है। यहां पिछले सर्वेक्षण में 35.7 फीसदी बच्चे एनीमिया का शिकार थे जबकि नए सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 68.4 फीसदी तक पहुंच गया है। 15 से 49 आयु-समूह की 44.8 फीसदी गर्भवती महिलाएं 2015-2016 में एनीमिया से पीड़ित थीं, जिनकी तादाद अब 54.2 फीसदी हो गई है। वहीं सभी महिलाओं के लिए यह आंकड़ा पिछले सर्वेक्षण के 46 फीसदी से बढ़कर अब 65.9 फीसदी हो गया है। बाकी देश के पुरुषों की तरह इस राज्य में भी पुरुषों में इस बीमारी का प्रसार, महिलाओं और बच्चों की तुलना में कम तेजी से बढ़ा है। पिछले सर्वेक्षण में 25.4 फीसदी पुरुष एनीमिया का शिकार थे जबकि ताजा सवेक्षण में यह आंकड़ा 36 फीसदी है।
छत्तीसगढ़ में भी असम जैसा ही रुझान दर्ज किया गया। यहां एनीमिया से पीड़ित बच्चों में 26 फीसदी का, महिलाओं में 10 से 15 फीसदी का और पुरुषों में पांच फीसदी का उछाल आया है। वहीं, गुजरात में एनीमिया से पीड़ित बच्चों में 17 फीसदी की और अन्य आयु-समूहों में तीन से दस फीसदी बढ़त दर्ज की गई है। महाराष्ट्र में सभी आयु-समूहों में चार से पंद्रह फीसदी की बढ़त पाई गई है।
हरियाणा के आंकड़ों में 1-2 फीसदी की मामूली गिरावट आई है, जबकि झारखंड और हिमाचल प्रदेश के आंकड़े लगभग एक जैसे ही हैं। मेघालय बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से एक है, जिसने सभी आयु-समूहों में 3-8 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। उत्तराखंड ने भी सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है, कुछ आयु-समूहों में मामूली गिरावट दर्ज की है जबकि आयु-समूहों में समान आंकड़ा बरकरार रखा है।