उत्तर प्रदेश के कानपुर में जिस मरीज में सबसे पहले जीका वायरस का संक्रमण पाया गया, उनका नाम मोहम्मद मुश्ताक अली है। वह एयरफोर्स (भारतीय वायु सेना) में मास्टर वारेंट ऑफिसर के पद पर तैनात हैं। मुश्ताक अली 13 अक्टूबर से लेकर तीन नवंबर तक एयरफोर्स के सिविल अस्पताल में भर्ती रहे। अभी वह काफी कमजोरी महसूस कर रहे हैं, जिस वजह से वह एक महीने की छुट्टी पर हैं।
डाउन टू अर्थ से बात करते हुए 57 वर्षीय मोहम्मद मुश्ताक अली बताते हैं, "मेरी आँखों में 11 अक्टूबर को हल्की सी जलन हो रही थी। ऑफिस में कुछ लोगों ने टोककर बताया कि आंखे काफी लाल दिख रही हैं। कुछ व्यस्तता के चलते 13 अक्टूबर को जब मैं डॉक्टर को दिखाने पहुंचा तो वहां कुछ जांचे हुईं। कुछ देर बाद मैं अपने होशोहवास में नहीं था। मुझे सिविल एयरफोर्स के अस्पताल में भर्ती कर दिया गया।"
वो आगे कहते हैं, "मैं 13 अक्टूबर से लेकर 26 अक्टूबर तक आईसीयू में वेंटीलेटर पर था। जब 22 अक्टूबर को मेरी रिपोर्ट आयी और उसमें ये पता चला कि मैं जीका वायरस से संक्रमित हूं। डॉक्टर की टीम ने रिपोर्ट आने के बाद मेरा ट्रीटमेंट जीका वायरस के आधार पर करना शुरू किया। मैं रिपोर्ट आने के दो तीन दिन के अन्दर रिकवर होने लगा था। ठीक से याद नहीं है पर शायद 27 अक्टूबर को मैं आईसीयू वार्ड से बाहर आ गया। तीन नवंबर को मैं पूरी तरह से स्वस्थ हो गया और डिस्चार्ज होकर घर आ गया।"
कानपुर में बीते एक महीने में जीका वायरस के 108 मामले सामने आए हैं, जिसमें 17 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं जबकि 91 मरीज अभी भी संक्रमित हैं। इसमें चार गर्भवती महिलाएं हैं। 10 नवंबर को कानपुर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जीका वायरस से घबराने की कोई जरूरत नहीं है हमने स्वास्थ्य टीमों की संख्या बढ़ा दी है।
मोहम्मद मुश्ताक अली बीते डेढ़ वर्षों से कहीं बाहर नहीं गये हैं। जिस जगह पर अभी वह रहते हैं ये जाजमऊ का पोखर पुरवा क्षेत्र हैं। वह बताते हैं, "इसी जुलाई में मैं अपने नये घर में शिफ्ट हुआ हूं। यहां पहले जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे थे। जहां सूअर टहलते रहते थे। अभी हालत पहले से थोड़ी बेहतर है पर पूरी तरह से अभी भी साफ़-सफाई नहीं हुई है।"
मोहम्मद मुश्ताक कानपुर के जिस एयरफोर्स कैंपस में तैनात हैं वहां से करीब पांच किलोमीटर दूर की कई बस्तियां इस वायरस के चपेट में आ चुकी है। इस वायरस के टेस्टिंग के लिए कानपुर में अभी तक लैब नहीं थी, जिसके चलते सैम्पल लखनऊ केजीएमयू भेजे जाते थे, लेकिन मुख्यमंत्री के आने के बाद से 10 नवंबर से कानपुर में ही इसकी टेस्टिंग के लिए लैब तैयार कर ली गयी है।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विकास मिश्रा ने बताया, "जीका वायरस के लिए 10 नवंबर को लैब तैयार हो गयी है, कल 11 सैम्पल और आज चार की जांच हुई है. पुणे से जांच किट सैनेटाइज होकर जैसे ही आ जायेंगी तब आगे की प्रक्रिया बढ़ेगी।"
कानपुर के सीएमओ डॉ नेपाल सिंह ने फोन पर बताया, "अभी तक जिन गर्भवती महिलाओं को संक्रमित पाया गया है, उनकी डेली मानिटरिंग कराई जा रही है। अबतक लगभग 4,000 सैम्पल लिए जा चुके हैं। घर-घर जाकर सैम्पलिंग ली जा रही है स्थिति अभी कण्ट्रोल में है।"
कानपुर ही क्यों
जिन क्षेत्रों में जीका वायरस के मरीज सबसे ज्यादा निकल रहे हैं उस क्षेत्र में क्या गंदगी ज्यादा है? इस सवाल के जवाब में डॉ नेपाल सिंह ने कहा, "नहीं ऐसी बात नहीं है. पहली बात तो ये वायरस बाहर का है इसलिए इसका मच्छरों से बहुत लेना देना नहीं है क्योंकि मच्छर तो दूसरे क्षेत्रों में भी हैं. पहला मरीज 22 अक्टूबर को जो एयरफोर्स के अन्दर निकला, उस वजह से उसके आसपास का पूरा क्षेत्र प्रभावित है। एयरफोर्स में काम करने वाले करीब 70 से 80 फीसदी लोग आसपास के क्षेत्र में ही रहते हैं जिस वजह से एयरफोर्स के आसपास का क्षेत्र प्रभावित है."
सीएमओ डॉ नेपाल सिंह के अनुसार अभी जीका वायरस के छह मरीज हास्पिटल में एडमिट हैं बाकी के मरीज होम आईसोलेट किये गये हैं. इनके अनुसार शुरुआत में 156 मच्छर जांच के लिए दिल्ली भेजे गये थे जिसमें एक मच्छर में जीका वायरस पाया गया था। अभी 250-300 मच्छर और भेजे गये हैं जिसकी रिपोर्ट अभी नहीं आयी है।
जीका वायरस की रोकथाम के लिए 100 टीमों का गठन किया गया है। हर टीम को अलग-अलग तरह की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। लेकिन अगर स्थानीय लोगों की माने तो गंदगी अभी भी समाप्त नहीं हुई है।
तिवारीपुर में रहने वाली निशा पाल (63 वर्ष) बताती हैं, "शुरुआत में लोग इस वायरस से काफी घबराए हुए थे पर कभी जबसे ये पता चला है कि इससे कोई मरता नहीं है तो लोगों में डर कम है. हम लोग पहले ड्रम में पानी भरकर रख लेते थे लेकिन जबसे पता चला कि इससे भी मच्छर पनपते हैं तो भरना बंद कर दिया। गन्दगी तो है ही, सूअर भी टहलते रहते हैं. सफाई में बहुत सुधार नहीं हुआ है. लोग अपने-अपने घरों में अपने स्तर से साफ़-सफाई रख रहे हैं।"
निशा जिस तिवारीपुर में रहती हैं वहां अक्टूबर महीने में 8, 10 मरीज निकले थे। श्रमिक भारती नाम की एक गैर सरकारी संस्था इस क्षेत्र में बीते 25 वर्षों से काम कर रही है। इस संस्था की डिस्टिक कोऑर्डिनेटर सीमा पाण्डेय बताती हैं, "यहाँ जीका वायरस इतने बड़े पैमाने में पर फैलने का मुझे बड़ा कारण यहां की गन्दगी लगता है। यहाँ जगह-जगह गड्ढों में टेनरियों से निकला पानी ठहरा हुआ मिल जाएगा जिसमें मच्छर सबसे ज्यादा पनपते हैं। छुट्टा जानवर और सूअर यहाँ आपको टहलते हुए खूब मिलेंगे। जगह-जगह कूड़े का ढेर मिलेगा। मतलब मच्छर को पनपने के यहाँ बहुत सारे ठिकाने मिलेंगे।"
सीमा और इनकी टीम जीका वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए घर-घर जाकर लोगों को जागरूक कर रही है. सीमा पाण्डेय ने बताया, "तिवारीपुर में एक आठ महीने की गर्भवती महिला इस वायरस से संक्रमित है कल उनकी तबियत खराब थी पर अभी ठीक हैं. हमारी कोशिश है कि हम गर्भवती महिलाओं पर ख़ास ध्यान रखें।"
मोहम्मद मुश्ताक जिस क्षेत्र में रहते हैं उनके घर के पास जीका वायरस के पहले की उन्होंने कुछ तस्वीरें साझा की हैं जिसमें कूड़े का ढेर जमा है और सूअर टहल रहे हैं. एक जगह सड़क में गड्ढा भी था जिसमें कूड़ा भरा था. कानपुर दौरे के दौरान मुख्यमंत्री इस क्षेत्र का विजिट करने वाले हैं ऐसी चर्चा थी इस वजह से यहाँ सड़क निर्माण तेजी से शुरू हुआ लेकिन जब उनका प्लान यहाँ आने का बदल गया तो काम की रफ्तार थोड़ी थीमी हो गयी थी."
डिस्टिक पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ राधेश्याम ने बताया, "जो गर्भवती महिलाएं इस वायरस से संक्रमित होंगी हम छह महीने तक लगातार उनका फालोअप करेंगे. संक्रमित गर्भवती महिलाओं में बच्चों के मष्तिष्क का विकास रुकने की संभावना रहती है इसलिए हम लोग लगातार इनकी मानीटरिंग और जांच कर रहे हैं। जीका वायरस के 90% मरीज एयरफोर्स के पांच किलोमीटर क्षेत्र जैसे तिवारीपुर, हरजेन्द्रनगर, कृष्णानगर, कैंट जैसे क्षेत्रों से हैं. कानपुर में साफ़-सफाई को लेकर थोड़ी समस्या तो है ही पर हम अपनी क्षमता के अनुसार कोशिश कर रहे हैं कि गंदगी न रहे. जीका वार्ड बढ़ाने की भी तैयारी की जा रही है।"