बौद्धिक संपदा (आईपी) अधिकारों की दुनिया में मॉडर्ना के पेटेंट दावों से एक नया और दिलचस्प मोड़ आया है। मॉडर्ना उन दो स्टार्टअप्स में से एक है जिसने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एक नया आरएनए या एमआरएनए वैक्सीन को विकसित किया है।
इसमें दूसरी कंपनी जर्मनी की बायोएनटेक है, जिसने फाइजर के साथ करार किया है। महामारी के दौरान ये कंपनियां घातक वायरस के खिलाफ लड़ाई में कवच बनकर उभरी हैं। हालांकि कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में एस्ट्रोजेनेका के पारंपरिक वैक्सीन का सबसे अधिक उपयोग हुआ है।
मॉडर्ना की वैक्सीन विवादों में फंस गई है और अब इसके पेटेंट को लेकर मुकदमे चल रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (एनआईएच) के सरकारी वैज्ञानिकों से तकनीकी अधिकारों के साथ-साथ अरबों डॉलर धन प्राप्त करने में भारी मदद मिली है। फिर भी इसने एनआईएच के वैज्ञानिकों को सह-आविष्कारक के रूप में बाहर कर दिया है।
इसके अलावा इस पर लिपिड नैनोपार्टिकल्स (एलएनपी) नामक एक महत्वपूर्ण तकनीक का उपयोग करने का भी आरोप है, जिसे एक छोटी बायोटेक फर्म कंपनी “अर्बुटस बायोफार्मा” द्वारा विकसित किया गया था, ताकि कोविड-19 वैक्सीन में एमआरएनए जैसी आनुवंशिक सामग्री का उपयोग किया जा सके।
कैसे एलएनपी खुद अर्बुटस के स्वामित्व में आया, यह कॉर्पोरेट बिक्री और प्रतिद्वंद्विता की एक जटिल कहानी है, जिसमें इस तकनीक के खोजकर्ता को न तो पहचाना गया और न ही मुआवजा दिया गया। लेकिन यह कहानी कभी और के लिए क्योंकि यह मॉडर्ना के इस वर्तमान वैक्सीन विवाद के लिए अभी प्रासंगिक नहीं है। हालांकि यह अमेरिकी पेटेंट प्रणाली की कमियों को उजागर करने का काम जरूर करती है।
यहां पर जो प्रासंगिक है, वह यह है कि अर्बुटस के पेटेंट के दावों को उलटने का मॉडर्ना का प्रयास तीन महीने पहले विफल हो गया था, जब एक अमेरिकी अदालत ने इस फार्मा दिग्गज के 2018 की एक याचिका को खारिज कर दिया था। अब अर्बुटस ने मॉडर्ना पर अपनी एलएनपी तकनीक का उल्लंघन करने के लिए मुकदमा दायर किया है।
मॉडर्ना के लिए यह एक गंभीर झटका है, क्योंकि कोविड-19 वैक्सीन एकमात्र ऐसा उत्पाद है जिसे उसने अब तक लॉन्च किया है। फ्रांसीसी अरबपति व्यवसायी और मॉडर्ना के सीईओ स्टीफन बैंसल द्वारा किए गए मीडिया प्रचार और अन्य कारणों से कंपनी ने बाजार से अरबों रुपए जुटाए हैं।
इस पेटेंट विवाद के बीच गरीब देशों में टीके की पहुंच पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। मार्च की शुरुआत में अमेरिका में दुनियाभर के स्वास्थ्य मंत्रियों की हुई एक बैठक “कोविड-19 डायलॉग” के दौरान चौंकाने वाली घोषणा हुई थी।
तब शीर्ष अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा था कि वे छोटे और मध्यम आय वाले देशों के लाभ के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कोविड-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल (सी-टैप) को कई तकनीकी मदद पेश करेंगे। महामारी को देखते हुए सी-टैप को “वैश्विक वन-स्टॉप शॉप” के रूप में कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था, जहां फार्मा कंपनियां अपने आईपी को साझा कर सकती हैं। इसके बाद उपयुक्त दवा के संभावित लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए उसे संयुक्त राष्ट्र समर्थित मेडिसिन पेटेंट पूल में भेज दिया जाता है।
हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने यह नहीं बताया कि वे किन तकनीकों को साझा करने के इच्छुक हैं। एक संकेत यह है कि यदि एनआईएच वैक्सीन पेटेंट के सह-स्वामित्व को जीतता है तो वह मॉडर्ना वैक्सीन की जानकारी को साझा कर सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के शीर्ष चिकित्सा सलाहकार एंथनी फॉसी के हवाले से कहा गया था, “सैद्धांतिक रूप से हमने सी-टैप के लिए एनआईएच-स्वामित्व वाली तकनीकों को लाइसेंस देने की पेशकश की है और आप इसका प्रयोग कर सकते हैं।”
हालांकि फॉसी वास्तव में क्या बताने की कोशिश कर रहे थे, इस पर अटकलें जारी हैं और कहा जा रहा है कि यह दृष्टिकोण सभी के लिए हितकारी नहीं है। कंपनी के पेटेंट दावे पर दायर मुकदमे से पहले एनआईएच और मॉडर्ना पेटेंट स्वामित्व पर लगभग एक साल से अधिक समय से बातचीत कर रहे थे। मामला अदालत में जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि इसका समाधान अब कुछ साल दूर है।
दक्षिण अफ्रीका और अन्य देशों में पेटेंट के लिए मॉडर्ना का आवेदन इस समय अधिक परेशान करने वाला है। फरवरी में दायर किए गए दावे कोविड-19 वैक्सीन और मॉडर्ना की प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी दोनों से संबंधित पेटेंट के लिए हैं जिसे अभी तक मॉडर्ना वैक्सीन का एक सामान्य संस्करण बनाने में दक्षिण अफ्रीकी संघ की ऐतिहासिक सफलता के रूप में देखा जा रहा था। उसने अब अफ्रीका में खतरे की घंटी बजा दी है।
हालांकि अमेरिकी कंपनी ने फिर से दोहराया है कि वह महामारी की अवधि के लिए अपने पेटेंट को लागू नहीं करेगी। फिर भी मेडेकिन्स सैन्स फ्रंटियर जैसे मानवीय संगठन इसके भविष्य के बारे में आशावादी नहीं हैं।
चिंता की बात यह है कि जब कोरोना खत्म हो जाएगा और फिर मॉडर्ना अपने पेटेंट को लागू करता है, तो यह उन सभी प्रयासों को पटरी से उतार सकता है, जिसको अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने महाद्वीप पर वैक्सीन निर्माण क्षमता के निर्माण में लगाया है। कुछ 60 अफ्रीकी संगठनों ने इस बारे में अपनी चिंता भी जताई है।
हालांकि मॉडर्ना के एक प्रवक्ता का कहना है कि कंपनी सभी तक वैक्सीन पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है और यह पुष्टि कर सकती है कि इसका आईपी अभी या भविष्य में 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कोविड -19 वैक्सीन वितरण में बाधा नहीं पैदा करेगा।
वही, बैंसेल ने इस मामले को खुला छोड़ रखा है। उनका कहना है कि कंपनी ने महामारी समाप्त होने के बाद ऐसे देशों में आईपी अधिकारों के बारे में फैसला नहीं किया है। ऐसे में महत्वपूर्ण उपचारों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विकसित अफ्रीकी तकनीक का क्या होगा?
सब कुछ इस बात पर टिका है कि महामारी कितनी जल्दी समाप्त होती है। ये अनिश्चितताएं एक बार फिर पेटेंट और आईपी की उन बाधाओं को उजागर करती हैं, जो अन्य स्थानीय विनिर्माण इकाइयों का प्रसार रोकती हैं और जिससे सस्ती दरों पर दवाओं और टीकों का उत्पादन हो सकता है।
अफ्रीका में यह एक बहुत बड़ी आवश्यकता है क्योंकि घरेलू विनिर्माण क्षमता की कमी के कारण उसे अपने लगभग सभी आवश्यक टीकों को आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सीमित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण लंबी अवधि में महाद्वीप की जरूरतों को पूरा नहीं करती हैं।
कोविड -19 महामारी ने वैक्सीन तक पहुंच में भारी असमानता को उजागर किया है। अमीर देशों ने वैश्विक आपूर्ति का बड़ा हिस्सा ले लिया है और अपनी आबादी के 70 प्रतिशत से अधिक का टीकाकरण किया है, जबकि अफ्रीकी देशों में यह आंकड़ा सिर्फ 10 प्रतिशत है।
आईपी अधिकारों को समाप्त करने के प्रस्ताव पर विश्व व्यापार संगठन की अनिश्चितता केवल इस विचित्र स्थिति को बनाए रखने में मदद कर रही है। जो स्पष्ट है वह यह है कि आईपी सुरक्षा की नीतिगत पद्धति महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने की नीतिगत आवश्यकताओं के साथ पूरी तरह से मेल नहीं खाती है।