अगर आपको अपने बच्चे के हाथ, पैर और मुंह के अंदर लाल दाने नजर आ रहे हैं, उसे खाने पीने में परेशानी हो रही है, वो सुस्त लग रहा है और हल्का बुखार भी है, तो इसे अनदेखा न करें और तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। हो सकता है उसे हैंड, फुट, माउथ डिजीज (एचएफएमडी) हो।
डॉक्टर्स के मुताबिक हालांकि यह बीमारी ज्यादा गंभीर नही है, इसलिए अभिभावकों को घबराने की जरूरत नहीं है। ज्यादातर केसों में यह अपने आप ही 7-10 दिनों में ठीक हो जाती है, लेकिन चूंकि इसकी संक्रमण दर बहुत ज्यादा है, इसलिए इस बीमारी के बारे में जागरूकता की बहुत जरूरत है, ताकि इसे फैलने से रोका जा सके।
मुंबई के बाल रोग चिकित्सक आजकल इस बीमारी से संक्रमित 6-7 मरीज अपनी ओपीडी में हर रोज देख रहे हैं।
इस बीमारी की चपेट में ज्यादातर सात साल से कम उम्र के बच्चे आ रहे हैं इसीलिए डॉक्टर्स प्री स्कूलों को अपने बच्चों पर नजर रखने को और अगर कोई भी बच्चा बीमारी से संक्रमित मिले तो संक्रमण के उस चक्र को तोड़ने के लिए कुछ दिनों के लिए स्कूल बंद रखने की सलाह दे रहे हैं।
पीडी हिंदूजा हॉस्पिटल, माहिम, मुंबई के सीनियर पीडियाट्रिशियन डॉ. नितिन शाह कहते हैं, “इस बीमारी में बच्चों के हाथ, पैर और मुंह में दाने निकल आते हैं। इन दानों में मवाद भरा होने के कारण यह चिकन पॉक्स की तरह लगते हैं। किसी किसी केस में इन दानों में खुजली या दर्द भी हो सकता है और मुंह के अंदर होने के कारण बच्चों को कुछ भी खाने में यहां तक की पानी पीने में भी बहुत परेशानी होती है। और बहुत छोटे बच्चों में लगातार लार (सलाइवा) टपकती रहती है। किसी-किसी बच्चे को बुखार भी आ सकता है, जो आमतौर पर हल्का होता है। आजकल मैं इस बीमारी से संक्रमित 5-6 बच्चे अपनी ओपीडी में हर रोज देख रहा हूं”।
डॉ. शाह आगे कहते हैं, “बच्चों को यह संक्रमण कॉक्सेकी वायरस से फैलता है। चूंकि यह संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है, इसीलिए स्कूलों, भीड़ वाली जगहों और घनी आबादी में रहने वाले बच्चों के इसकी चपेट में आने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। क्योंकि किसी भी बच्चे के संक्रमित होने के 3 से 4 दिनों बाद ही उसमें बीमारी के लक्षण उभरते हैं और तब तक वो बच्चा उसके संपर्क में आए बहुत से बच्चों को संक्रमित कर चुका होता है। इसीलिए संक्रमित बच्चे से दूरी और साफ-सफाई रखना ही इसे फैलने से रोकने का एक मात्र तरीका है”।
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, मुंबई के सदस्य और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. बकुल पारेख कहते हैं कि अप्रैल-मई के महीने में भी मेरी ओपीडी में एचएफएमडी के 1-2 केस आ रहे थे, लेकिन आजकल मैं 5-6 बच्चे हर रोज देख रहा हूं, जोकि उन महीनों के मुकाबले कई ज्यादा है। वे कहते हैं, इस बीमारी को डिटेक्ट करने के लिए किसी तरह का कोई टेस्ट करवाने की जरूरत नहीं होती है। हम क्लीनिकल एग्जामिनेशन से ही इसे डायग्नोसिस करते हैं और जो भी लक्षण होते हैं उसी के अनुसार मरीज को दवा दी जाती है।
डॉ. पारेख कहते हैं, “इसके लिए अभी तक कोई वैक्सीन नही है, इसलिए संक्रमित बच्चे को दूसरे बच्चों के संपर्क में आने से रोक कर ही इसे फैलने से रोका जा सकता है। अगर किसी स्कूल में कोई बच्चा बीमारी से संक्रमित मिलता है तो स्कूलों को संक्रमण के उस चक्र को तोड़ने के लिए कुछ दिनों के लिए स्कूल बंद कर देना चाहिए”।
बीमारी के बारे में शहर के प्री स्कूल्स भी खासे जागरूक हैं और उन्होंने इस बीमारी से निपटने के लिए खुद को पहले से ही तैयार किया हुआ है। पोदार जंबो किड्स, खारघर, नवीं मुंबई की हेडमिस्ट्रेस, शहनाज हुसैन कहती हैं कि, “हमारे स्कूल में ज्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चे आते हैं, इसलिए हम उनमें बीमारी के किसी भी तरह के लक्षणों पर नजर रख रहे हैं। साथ ही हमने अभिभावकों से भी कहा कि अगर बच्चे में इस बीमारी से संबंधित कोई भी लक्षण दिखे या फिर डॉक्टर कंफर्म करें तो हमें तुरंत इस बारे में जानकारी दें। इसके साथ ही हम स्कूल को समय-समय पर सेनेटाइज कर रहे हैं और बच्चों को भी बार-बार हाथ धोने और सेनेटाइज करने को कहा जा रहा है। हालांकि स्कूल में अभी तक कोई भी बच्चा बीमारी से संक्रमित नही मिला है। लेकिन अगर ऐसा कुछ होता है तो हमने ऑनलाइन का विकल्प भी तैयार रखा है”।