कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए पूरी दुनिया कठिन संघर्ष कर रही है। इसको नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि यह एक नई बीमारी है। हमारे पास इस बीमारी का इलाज करने और इसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बनाने के लिए न तो दवाएं हैं और न ही टीके। मानव चिकित्साशास्त्र में अब तक जो कुछ भी हमारे पास मौजूद है वह व्यापक रूप से एंटीमाइक्रोबियल्स दवाएं ही हैं।
मलेरिया के उपचार में दी जाने वाली दवाएं क्लोरोक्वीन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन खूब प्रयोग की जा रही हैं। फिलहाल स्पष्ट नहीं है कि यह कोविड-19 के उपचार में कारगर हैं या नहीं। लेकिन, यह स्पष्ट रूप से तय है कि क्लोरोक्वीन मलेरिया के परजीवी प्लाज्मोडियम फॉल्सीपेरम पर अप्रभावी है, जिस पर की यह दवा प्राथमिक रूप से इस्तेमाल की जाती थी।
एचआईवी में प्रयोग की जाने वाली दो दवाएं, लोपिनवीर और रटनवीर के कॉबीनेशन का भी प्रयोग किया जा रहा है। कोरोनावायरस के खिलाफ एक और प्रमुख एंटीवायरल दवाई रेमेडिसविर है जो इबोला वायरस के इलाज के लिए विकसित एक प्रयोगात्मक दवा है। यह इबोला का इलाज करने में विफल रही, लेकिन कोरोनावायरस के खिलाफ प्रभावी पाई गई है - कम से कम यह एक प्लेसबो (बिना किसी वैज्ञानिक आधार के की गई चिकित्सा) की तुलना में अधिक सुरक्षा करता है।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, इसने अस्पताल में भर्ती कुछ वयस्क रोगियों को मात्र चार दिनों में ठीक कर दिया, और श्वसन तंत्र के संक्रमण जैसे निमोनिया, खांसी आदि को भी कम कर दिया। वायरल संक्रमण कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन्हें जीवाणु संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील बना सकते हैं।
इस तरह के सह- संक्रमण कोविड-19 के मरीजों की प्राथमिक समस्या हैं। इनमें से ज्यादातर संक्रमण बैक्टीरिया रोगजनकों के कारण होते हैं, इनके प्रति एंटीबायोटिक कम या ज्यादा अप्रभावी होते हैं। इस वजह से मौतें ज्यादा होती हैं। अस्पतालों से मिला संक्रमण भी प्रतिरोधी होता है, जिससे कोविड-19 के मरीजों की मृत्यु-दर बढ़ रही है।
मार्च माह में चीन के रोगियों की रिपोर्ट लैंसेट जर्नल में प्रकाशित हुई है,जिसके अनुसार अस्पताल में भर्ती आधे से ज्यादा मरीजों की मौत सह-संक्रमण के कारण हुई। एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल के बावजूद भी इनकी मौत हुई। एक अन्य विचार के अनुसार वह प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे जबकि दूसरे विचार के अनुसार मरीज इतने ज्यादा कमजोर थे कि किसी भी संक्रमण को झेल नहीं सकते थे।
दुनिया भर में पहले से ही एंटीबायोटिक दवाओं का तेजी से दुरूपयोग हो रहा है और भारत इसमें अग्रणी है। चूंकि वायरस और सह-संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए अधिक से अधिक रोगाणुरोधी (एंटीमाइक्रोबियल्स) का उपयोग किया जाता है, यह अंधाधुंध उपयोग एएमआर (एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस) को और बढ़ा देगा - किसी दवा के प्रतिरोधी बनने के लिए तेजी से उत्परिवर्तन (कोशिकीय संरचना में बदलाव) एक माइक्रोब (सूक्ष्म जीवी) की अंतर्निहित प्रकृति है।
हालांकि डॉक्टर और शोधकर्ता दशकों से एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस के मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन यह विडंबना ही है कि उद्योग, स्वास्थ्य सेवा, फार्मा, खाद्य पशु, कृषि आदि क्षेत्रों ने एएमआर जैसी वैश्विक महामारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। अब यह कोविड-19 महामारी के साथ मिलकर मानव जीवन को कठिन बनाने को तैयार है।
एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस (एएमआर) को खत्म करना दुनिया भर की सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। हम सभी को बस इतना करना है कि, एंटीमाइक्रोबियल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए।
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट बॉडी बर्डन: एंटीबायोटिक रजिस्टेंस ने भारत में एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस (एएमआर) की स्थिति का विश्लेषण किया है और समस्या से निपटने के लिए एक रोडमैप प्रदान करता है।