कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी से पार पाने के बाद जिंदगी पहले जैसी नहीं रहेगी। लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो नहीं बदलेंगी। इनमें से एक है फास्ट फूड की लोकप्रियता और एंटीबायोटिक का अत्यधिक इस्तेमाल।
सच्चाई तो यह है कि ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। जब भी कहीं फास्ट फूड खाने जाओ तो उनके मैन्यू में चिकन जरूर होता है, जिसके 35-42 दिन के छोटे से जीवन-काल में उसे कई तरह के एंटीबायोटिक दिए जाते हैं। संक्रमण के कोई लक्षण नजर न आने पर भी उन्हें एंटीबायोटिक दिए जाते हैं। मुर्गियों को पालने वालों का कहना है कि इससे उन्हें बीमारी से बचाया जा सकता है और ये कम खाने के बावजूद उनका वजन बढ़ाने में मदद करते हैं।
दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने वर्ष 2014 में एक प्रयोगशाला परीक्षण किया था जिसमें चिकन के नमूनों में कई तरह एंटीबायोटिक के अवशेष पाए गए थे। बाद में किए गए सर्वेक्षणों में सीएसई के वैज्ञानिकों ने पाया कि चाहे खुले बाजार में चिकन बेचने वाले हों या ऑनलाइन बेचने वाले, सभी दिल खोल कर एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इनमें से कुछ एंटीबायोटिक जैसे एरिथ्रोमाइसिन, टाइलोसिन, सिप्रोफ्लॉक्सिन और एनरोफ्लॉक्सिन का इस्तेमाल इंसानों में कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। यह गैर-इंसानी स्रोतों से बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमणों के लिए एकमात्र या गिने-चुने उपचारों में से हैं। एंटीबायोटिक के फ्लूरोक्विनोलोन वर्ग से संबंधित सिप्रोफ्लोक्सिन और मैक्रोलाइड वर्ग से संबंधित एरिथ्रोमाइसिन का इस्तेमाल श्वसन संबंधी सामान्य रोगों और मूत्रमार्ग में संक्रमण के इलाज में होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इन वर्गों को ‘सर्वाधिक प्राथमिकता वाले महत्वपूर्ण एंटीमाइक्रोबायल्स’ (एचपीसीआईएएस) की श्रेणी में रखा है। इन एंटीबायोटिक्स के गैर-जिम्मेदाराना इस्तेमाल से बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ेगी जो जीवित या मृत जानवरों, मांग के सेवन या संक्रमित माहौल के संपर्क में आने से सीधे इंसान के शरीर में प्रवेश करने का रास्ता ढूंढ़ लेते हैं। इससे मनुष्य में एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो जाता है।
वास्तव में, विश्वभर में फ्लूरोक्विनोलोन निष्प्रभावी होता जा रहा है। एंटीमाइक्रोबायल्स की प्रतिरोधक क्षमता (एएमआर) में ऐसी बढ़ोतरी का प्रभाव खासतौर पर भारत पर पड़ा है जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की बहुत कमी है और विनियामक ढांचा कमजोर है।
भारत में फास्ट फूड उद्योग के चिकन मांस का प्रमुख खरीदार है जो एएमआर के खिलाफ लड़ाई में अहम साबित हो सकता है। लेकिन सीएसई द्वारा हाल में किए गए मूल्यांकन में भारत के लिए उनका दोगलापन सामने आ गया है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो फास्ट-फूड श्रृंखलाओं पर उपभोक्ताओं, निवेशकों और सिविल सोसायटी का बहुत अधिक दबाव है। उनसे कहा जा रहा है कि वे एंटीबायोटिक से बड़े किए गए चिकन के इस्तेमाल को बंद करके चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को रोकने में अपनी भूमिका निभाएं। इसके जवाब में, पिछले कुछ वर्षों से वे युनाइटेड स्टेट्स, कनाडा और कुछ यूरोपीय देशों में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के बिना बड़े किए गए चिकन बेच रहे हैं या फिर उन्होंने एक तय समय-सीमा के भीतर एंटीबायोटिक को अपनी आपूर्ति श्रृंखला से हटाने की प्रतिबद्धता जताई है।
फिर भी, भारत की बात आते ही ये फास्ट-फूट श्रृंखलाएं जिनमें से ज्यादातर का स्वामित्व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है, एंटीबायोटिक में कटौती या उसे हटाने के तरीके और समय-सीमा संबंधी प्रतिबद्धता को लेकर डांवाडोल हो जाते हैं। इसे बदतर हालात ही कहे जाएंगे कि सीएसई के पहले सर्वेक्षण और उनके दोगुलेपन को उजागर करने के बाद से लेकर अब तक उनके कामकाज में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है।
दोहरे मानदंड
वर्ष 2017 में जब सीएसई ने भारत में मौजूद प्रमुख फास्ट फूड ब्रांड्स से चिकन की आपूर्ति श्रृखंला से एंटीबायोटिक में कटौती या इसे पूरी तरह हटाने संबंधी उनकी प्रतिबद्धता के बारे में पूछा तो पता चला कि उनकी ऐसी कोई योजना ही नहीं है या इसे हटाने के लिए उन्होंने जो ढांचा बनाया है वह बहुत ही सतही है। इनमें वे बहुराष्ट्रीय ब्रांड भी शामिल हैं जो अन्य देशों में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
भारत में डॉमिनोज पिज्जा और डंकिन डोनट्स की फ्रेंचाइज चलाने वाली जुबिलिएंट फूडवर्क्स लि. (जेएफएल) पहली ऐसी कंपनी थी जिसने सीएसई द्वारा प्रमुख फास्ट-फूड कंपनियों के संकीर्ण नजरिए पर चर्चा शुरु करने के तुरंत बाद ‘मुर्गियों के स्वास्थ्य प्रबंधन में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल’ संबंधी नीति जारी की थी।
दो वर्ष बाद जब सीएसई ने दोबारा इस उद्योग की पड़ताल की तो जेएफएल इकलौती ऐसी कंपनी थी जिसने भारत को ध्यान में रखकर ऐसी नीति बनाई थी। वर्ष 2019 के आखिरी तीन महीनों में किए गए नवीनतम अध्ययन में सीएसई के अनुसंधानकर्ताओं ने भारत में 14 फास्ट फूड ब्रांड्स की देखरेख करने वाली 11 कंपनियों का लिखा। इनमें 12 बांड्स का प्रबंधन करने वाली नौ विदेशी बर्राष्ट्रीय कंपनियां और घरेलू कंपनियों द्वारा प्रबंधित दो भारतीय बहुराष्ट्रीय ब्रांड शामिल हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने कंपनियों से यह पूछा था कि क्या उनके द्वारा खरीदे जाने वाले चिकन में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को कम करने या खत्म करने के लिए भारत के संदर्भ में उनकी कोई नीति या भावी योजना है और क्या उनके द्वारा खरीदे गए चिकन तथा उनके खाद्य उत्पादों में प्रतिरोधी बैक्टीरिया या एंटीबायोटिक की उपस्थिति का पता लगाने के लिए उनकी जांच करने की कोई नीति है? चौदह में से केवल पांच कंपनियों ने जवाब दिया। जवाब न देने वाली नौ कंपनियों में से आठ वे विदेशी कंपनियां हैं जो या तो दुनियाभर में जानवरों में एंटीबायोटिक के जिम्मेदार इस्तेमाल संबंधी नीतियों को बढ़ावा देती हैं या जिन्होंने यूएस में चिकन की आपूर्ति श्रृंखला से एंटीबायोटिक को पूरी तरह हटा दिया है। इनमें पिज्जा हट, केंटकी फ्राइड चिकन (केएफसी) और ताको बेल शामिल हैं।
इनका प्रबंधन अमरीकाज़ यम! ब्रांड करता है जो फॉर्च्यून 500 में शामिल है। इसने वैश्विक एंटीमाइक्राबायल प्रबंधन नीति बनाई है जो एंटीबायोटिक के जिम्मेदार और कानूनी इस्तेमाल पर केंद्रित है। इन तीनों ब्रांड्स ने मनुष्यों के लिए महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक्स को यूएस में मुर्गीपालन संबंधी आपूर्ति श्रृंखला से हटा दिया है। लेकिन भारत में उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया और न ही सार्वजनिक रूप से इसका खुलासा किया है। ऐसे में लगता है कि भारत में एंटीबायोटिक को चिकन की आपूर्ति श्रृंखला से हटाने के लिए इनकी कोई योजना या प्रतिबद्धता नहीं है।
केएफसी ने भारत में अपनी वेबसाइट पर ‘आमतौर पर पूछे जाने वाले प्रश्नों’ के तहत कहा है, ‘केएफसी इंडिया में मिलने वाले चिकन में एंटीबायोटिक के अवशेष नहीं है क्योंकि उपचार की एक निश्चित अवधि के बाद ही चिकन की आपूर्ति की जाती है। इसके अलावा, इस संबंध में हमारे यहां डब्ल्यूएचओ के मानकों का पालन किया जाता है और केवल उन्हीं एंटीबायोटिक का इस्तेमाल होता है जिन्हें जानवरों में अथवा जानवरों और इंसानों, दोनों में इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है।’ लेकिन एंटीबायोटिक के अवशेषों को हटाना ही पूरा समाधान नहीं है।
जरूरत इस बात की है कि जहां इन जानवरों को पाला जाता है, वहीं एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा, एंटीबायोटिक के दोहरे इस्तेमाल की इजाजत देना भी ठीक नहीं है। साथ ही, भारत में केएफसी की वेबसाइट पर जो बयान है वह अन्य देशों की वेबसाइट से अलग है। यूएस में इसकी वेबसाइट पर लिखा है कि वे अपने यहां खरीदे जाने वाले मांस में जानवरों को बढ़ाने में मदद करने वाले तथा चिकन को बीमारी से बचाने वाले एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देते हैं।
ऑस्ट्रेलिया की वेबसाइट पर उन्होंने दावा किया है कि वे यम!ब्रांड की नीति में दिए गए एंटीबायोटिक के कानून इस्तेमाल से संबंधित सभी कानूनों और विनियमों का पालन करते हैं। उनका यह भी कहना है कि वे अपनी चिकन की आपूर्ति में मनुष्यों के इलाज के लिए जरूरी एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को कम करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
यूएस स्थित मशहूर बर्गर ब्रांड वेन्डीज़ का भी यही नजरिया है। यूएस में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को कम करने में इसकी प्रमुख भूमिका रही है और वर्ष 2006 से ही इसने ‘जानवरों में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल संबंधी नीति’ बना ली थी। वर्ष 2017 तक इसने देश में अपनी पूरी आपूर्ति श्रृंखला से ऐसे एंटीबायोटिक्स को पूरी तरह हटा दिया था जो उपचार के लिए जरूरी हैं।
जब इस बारे में सीएसई ने उनसे बात करने की कोशिश की तो वेन्डीज़ इंडिया ने जानकारी देने से मना कर दिया। वेन्डीज़ इंडिया के आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधक उस्मान मोईन ने लिखा: ’मांगी गई जानकारी ब्रांड के साथ किए गए लाइसेंसिंग करार के तहत गोपनीय है और इसकी इसे किसी के साथ बांटा नहीं जा सकता।’ भारत की मशहूर कॉफी चेन कैफे कॉफी डे (सीसीडी) भी चिकन से बना सामान परोसता है, लेकिन इसने भी आपूर्ति श्रृंखला से एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को खत्म करने की योजना के बारे में कुछ नहीं बताया।
बाकी ने भी नहीं दी बड़ी राहत
सीएसई के सवालों का जवाब देने वाले सभी चार बहुर्राष्ट्रीय ब्रांड्स और एक राष्ट्रीय ब्रांड ने यह माना कि एएमआर चिता का विषय है। लेकिन उनके जवाब से ऐसा नहीं लगता कि उनके जैसी कंपनियों ने इस दिशा में विदेशों में जो हासिल किया है, ये उसके कहीं आस-पास भी पहुंचे हैं। भारत के लिए केवल एक कंपनी ने एंटीबायोटिक को लेकर स्पष्ट रणनीति बनाई है।
दुनिया की सबसे बड़ी फास्ट फूड चेन- मैकडॉनल्ड्स ने वर्ष 2016 से यूएस में अपने रेस्टोरेंट्स में ऐसा चिकन परोसना बंद कर दिया है जिसमें मनुष्यों के उपचार के लिए महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक का इस्तेमाल होता है। इसने ब्राजील, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, यूएस, ऑस्ट्रेलिया, रूस, चीन और यूरोप में ब्रॉइलर चिकन में एचपीसीआईएएस के इस्तेमाल को भी बंद कर दिया है।
सीएसई के सवालों के जवाब में पश्चिम और दक्षिण भारत में मैकडॉनल्ड्स के 300 से ज्यादा आउटलेट चलाने वाले हार्डकैसल रेस्टोरेंटृस प्रा.लि. (एचआरपीएल) ने कहा कि वह चिकन को बढ़ाने या बीमारी की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करता। उनके अनुसार, ‘ऐसे एंटीबायोटिक का इस्तेमाल खुराक, अवधि, तरीके, आवृति, रोकने की अवधि तथा इसका असर खत्म होने के समय के संबंध में लेबल पर दिए गए निर्देशों और जानवरों के डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही किया जाता है। असर खत्म होने का पर्याप्त समय देने से चिकन में एंटीबायोटिक के अवशेष नहीं रहता।’
हालांकि मैकडॉनल्ड्स ने दुनियाभर के अन्य बाजारों में ब्रॉइलर चिकन से एचपीसीआईएएस को हटाने की समय-सीमा वर्ष 2027 तय की है, इसके बावजूद इस सूची में भारत का जिक्र नहीं है। यद्यपि एचआरपीएल ने कहा है क यह नीति भारत में भी लागू है लेकिन उसने एचपीसीआईएएस का उल्लेख नहीं किया। एंटीबायोटिक के अवशेषों की शून्य उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए आवधिक और व्यापक परीक्षण कार्यक्रम का संदर्भ देने के बावजूद न तो खरीदे गए मांस में एंटीबायोटिक के अवशेष के परीक्षण की प्रयोगशाला रिपोर्ट साझा की गई और न ही खरीदे गए मांस में प्रतिरोधी बैक्टीरिया की निगरानी के बारे में बताया गया।
सबवे इंडिया, जिसके लगभग 660 आउटलेट हैं और जो चिकन से बनी 26 तरह की चीजें परोसता है, ने अपने जवाब में कहा कि इसने ‘एंटीबायोटिक के जिम्मेदार इस्तेमाला के लिए वैश्विक नीति’ बनाई है। रंजीत तलवार, कंट्री डायरेक्टर (दक्षिण एशिया), सबवे सिस्टम्स इंडिया प्रा.लि. कहते हैं, ‘हम अपने खरीद मानकों को डब्ल्यूएचओ के अनुरूप बनाने के लिए दुनियाभर में आपूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।’
हालांकि उनके उत्तर से यह स्पष्ट नहीं था कि भारत को लेकर भी उनकी कोई प्रतिबद्धताएं हें या नहीं1 सबवे वर्ष 2016 से यूएस में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के बिना बड़े किए गए चिकन परोस रहा है। उन्होंने चिकन के मांस में प्रतिरोधी बैक्टीरिया या एंटीबायोटिक के अवशेषों का पता लगाने के लिए परीक्षण के बारे में भी कुछ नहीं बताया। वर्ष 2017 में सीएसई को दिए जवाब में सबवे इंडिया ने कहा था कि वे अलग-अलग क्षेत्रों में बदलाव लाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में भारत भी शामिल था। लगता है ऐसा होना अभी बाकी है।
भारत का सबसे पुराना कॉफी हाउस बरिस्ता भी चिकन से बने सामान परोसता है। इसने बताया कि उन्होंने अपने आपूर्तिकताओं को एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करने और एंटीबायोटिक – रहित चिकन की आपूर्ति करने की सलाह दी है। हालांकि इससे आपूर्ति श्रृंखला में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बंद होने की संभावना नहीं है। इसके अलावा, उनका यह जवाब उनके एक आपूर्तिकर्ता की प्रतिक्रिया पर आधारित है जो संपूर्ण भारत में मौजूद व्यवस्था को नहीं दर्शाता। साथ ही, उन्होंने अपने दावों की पुष्टि के लिए कोई प्रयोगशाला रिपोर्ट या ऑडिट रिपोर्ट नहीं दी।
जेएफएल इकलौती ऐसी कंपनी थी जिसने प्रयोगशाला रिपोर्ट दिखाई कि उसके यहां के कच्चे चिकन के नमूने में एंटीबायोटिक के अवशेष नहीं हैं। अविनाश कांत कुमार, कार्यकारी उपाध्यक्ष, जेएफएल कहते हैं, ‘यह मुश्किल काम था क्योंकि दो साल पहले (मुर्गीपालन) उद्योग हमारे इस काम के लिए तैयार नहीं था। हालांकि हमारी लगन रंग लाई।’ कुमार अपनी कंपनी की उस नीति का जिक्र कर रहे हैं जिसमें मुर्गी पालने वालों से यह अपेक्षा की गई है वे 2018 तक मुर्गियों को बढ़ाने और समूह स्तर की बीमारियों की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बंद कर देंगे, 2019 तक एचपीसीआईए को खत्म कर देंगे और सीआईएएस को पक्षियों के इलाज के दूसरे विकल्प के तौर पर इस्तेमाल तक सीमित रखेंगे। यद्यपि जेएफएल अपनी नीति के कार्यान्वयन में आगे बढ़ने वाला है, फिर भी कंपनी ने अभी सार्वजनिक तौर पर इसकी घोषणा नहीं की है।
कदम उठाने का वक्त आ गया
अप्रैल 2017 में एएमआर के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना जारी की गई थी जिसमें एएमआर में खाद्य उद्योग की भूमिका का उल्लेख किया गया है। इसके बावजूद भारत में फास्ट फूड उद्योग आपूर्ति श्रृंखला में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को दूर करने की अपनी प्रतिबद्धता और समय-सीमा तय करने का इच्छुक नहीं लगता है। दिल्ली ने एएमआर के खिलाफ लड़ाई की अपनी कार्य योजना में फास्ट फूड उद्योग की चुनिंदा प्रमुख कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखला में एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को दूर करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करने को कहा है।
सीएसई के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि अब समय आ गया है कि उद्योग भारत में अपनी आपूर्ति श्रृंखला में उपचार के लिए महत्वूपर्ण एंटीबायोटिक के इस्तेमाल तथा इलाज के लिए एचपीसीआईएएस के इस्तेमाल को खत्म करने की समयबद्ध सार्वजनिक प्रतिबद्धता दर्शाए। उसे अपने अंतर्राष्ट्रीय समकक्षों की तरह इन प्रतिबद्धताओं को हसिल करने का लक्ष्य तय करना चाहिए और इस दिशा में की गई प्रगति को सबके सामने रखना चाहिए। साथ ही तीसरे पक्ष से ऑडिट कराने तथा एंटीबायोटिक अवशेषों व प्रतिरोधी बैक्टीरिया संबंधी प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्टें साझा करने की व्यवस्था भी करनी चाहिए। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानदंड प्राधिकरण, जो अब चिकन समेत खाने में एंटीबायोटिक की सीमा के मानक तय है, को इन उत्पादों की निगरानी भी करनी चाहिए।
जब तक एएमआर के जानवरों से जुड़े पहलु का प्रभावी तरीके से समाधान नहीं किया जाता, तब तक एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता के बोझ को सहना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जाएगा।
(लेखक सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट, नई दिल्ली की खाद्य सुरक्षा और विषाक्तता इकाई के साथ काम करते हैं। वे दिव्या खट्टर के सहयोग के लिए उनका धन्यवाद करते हैं)