देश में एक ओर जहां पिछले कुछ समय से कोविड-19 के मामलों में कमी आई है। साथ ही इस वायरस की दूसरी लहर का घटता हुआ दिख रहा है और देश तीसरी लहर का सामना करने की तैयारियों में जुटा हुआ है। ऐसे में कोरोनावायरस के एक नए वैरिएंट डेल्टा प्लस (एवाई.1) ने सरकार और लोगों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। तेजी से फैलने वाला डेल्टा वैरिएंट म्यूटेशन के बाद डेल्टा प्लस वैरिएंट में तब्दील हो चुका है। जिसे भारत सरकार ने भी वैरिएंट ऑफ कंसर्न यानी चिंताजनक वैरिएंट के रूप में वर्गीकृत कर दिया है। आईए जानते हैं कोरोनावायरस के इस नए वैरिएंट डेल्टा प्लस के बारे में:
चिंताजनक डेल्टा प्लस वैरिएंट (एवाई.1), दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में फैल चुके डेल्टा वायरस (बी.1.617.2) में आए म्यूटेशन का नतीजा है, जो सबसे पहले यूरोप में सामने आया था। यह वायरस सुपर-स्प्रेडर है, जिसका मतलब है कि यह आसानी और बहुत तेजी से फैल सकता है। यही वजह है कि भारत सरकार ने भी इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न यानी चिंताजनक वैरिएंट के रूप में वर्गीकृत किया है।
डेल्टा प्लस वैरिएंट में वायरस के स्पाइक पर एक और म्यूटेशन के417एन भी पाया गया है, जो बीटा और गामा वेरिएंट में पाया जाता है, यह इसे कहीं ज्यादा खतरनाक बना देता है।
डेल्टा प्लस वैरिएंट की गंभीरता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भारत सरकार ने भी इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) यानी चिंताजनक वायरस की श्रेणी में वर्गीकृत कर दिया है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया द्वारा हजारों नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चला है कि कोरोनोवायरस के नए वेरिएंट की उपस्थिति के चलते संक्रमण के मामले में वृद्धि हो सकती है।
डेल्टा की तरह ही यह डेल्टा प्लस वैरिएंट भी सुपर स्प्रेडर है, जो बहुत तेजी से फैल सकता है। साथ ही यह फेफड़ों की कोशिकाओं के रिसेप्टर्स से मजबूती से जुड़ने में सक्षम है। यह वायरस मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी के प्रति भी संभावित रूप से प्रतिरोधी है, गौरतलब है कि इस थेरेपी का उपयोग वायरस को बेअसर करने के लिए किया जाता है।
देश के अब तक 11 राज्यों में डेल्टा प्लस वैरिएंट के मामले सामने आ चुके हैं जिनमें महाराष्ट्र, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, शामिल हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में सामने आए हैं। भारत में यह वैरिएंट पहली बार अप्रैल 2021 में सामने आया था। देश में अब तक इसके 48 मामले सामने आ चुके हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी सूचना के अनुसार यह वैरिएंट महाराष्ट्र के रत्नागिरि और जलगांव, केरल के पलक्कड़ और पथनमथित्ता, मध्य प्रदेश के भोपाल व शिवपुरी जिलों में मिल चुका है।
इसके साथ ही यह वायरस दुनिया के करीब 9 देशों में फैल चुका हैं जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, पुर्तगाल, स्विट्जरलैंड, जापान, पोलैंड, नेपाल, रूस और चीन शामिल हैं, जबकि अत्यधिक संक्रामक डेल्टा वैरिएंट अब तक दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में फैल चुका है।
कोई भी जीव यहां तक की वायरस भी जब नए वातावरण और परिवेश में जाता है तो यह उसकी सहज वृति होती है कि वो अपने आप को उसके मुताबिक ढालने की कोशिश करता है। जिससे वो जीवित रह सके और अपना विकास कर सके। जब वातावरण में यह बदलाव बड़ी तेजी से होते हैं तो यह अनुकूलन म्यूटेशन के रूप ले लेता है। जिसके कारण जीवों के जीनोम में बदलाव आ जाता है। जिससे जीवों में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के बदलाव आ सकते हैं।
इसी तरह वायरस में भी म्यूटेशन होते रहते हैं, इनमें से अधिकांश बदलाव कोई ज्यादा असर नहीं डालते। लेकिन कुछ बदलाव वायरस को अधिक संक्रामक और खतरनाक बना देते हैं।
डेल्टा प्लस वैरिएंट के सामान्य लक्षणों में सूखी खांसी, बुखार और थकान शामिल हैं। वहीं यदि इसके गंभीर लक्षणों की बात करें तो इसमें सीने में दर्द होना, सांस लेने में तकलीफ और बात करने में तकलीफ होना शामिल हैं। साथ ही इसके कारण त्वचा पर चकत्ते पड़ना, पैर की उंगलियों के रंग में बदलाव आना, गले में खराश, स्वाद और गंध का पता न चलना, दस्त और सिरदर्द शामिल है।
जब भी कोई नया वैरिएंट सामने आता है तो वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही होता है कि क्या जो वैक्सीन उपलब्ध हैं, वो नए वैरिएंट पर भी उतनी ही कारगर है। क्योंकि जब किसी वैरिएंट के प्रति किसी वैक्सीन को ईजाद किया जाता है तो इस बारे में हमेशा संदेह बना रहता है, जब तक की उसे नए वैरिएंट के खिलाफ जांचा नहीं जाता। वैज्ञानिक भी इसी सवाल का उत्तर जानने में लगे हुए हैं। हालांकि यह वैरिएंट डेल्टा का ही एक म्युटेशन है तो उम्मीद है कि मौजूदा वैक्सीन इसके प्रति भी कारगर होंगी।
स्वास्थ्य मंत्रालय का भी मानना है कि भारत में उपलब्ध दोनों प्रमुख वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सिन दोनों ही इस नए वैरिएंट के प्रति कारगर हैं। देश के दो प्रमुख संस्थान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी भी इस पर शोध करने जा रहे हैं कि मौजूदा वैक्सीन इसके प्रति कितने प्रभावी हैं।
यदि देखा जाए तो किसी वायरस के प्रसार या फैलने के लिए 'अवसर' बहुत मायने रखता है, अवसर वो है जो हम वायरस को संक्रमित करने के लिए देते हैं। जैसे भीड़ लगाना, बिना मास्क के घूमना, हाथ मिलाना, साथ बैठना, साफ़-सफाई का ध्यान न रखना।
यदि हम जागरूक बनें और कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखें तो इस नए वैरिएंट से भी बच सकते हैं। मास्क लगाएं, लोगों से जरुरी दूरी बना कर रखें, साफ-सफाई का ध्यान रखें, बार-बार हाथ धोएं और सैनिटाइज़र का प्रयोग करें। साथ ही अपनी बारी आने पर वैक्सीन जरूर लगवाएं। इससे न केवल आप अपनी साथ ही अपनों की सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं।