मोटापा को अब एक ऐसी बीमारी के रूप में पहचाना जाता है जो गंभीर बीमारियों और बढ़ती मृत्यु दर के लिए जिम्मेवार है। इसकी वजह से चयापचय या मेटाबोलिक संबंधी असमानताएं होती है जो टाइप 2 मधुमेह को जन्म देता है। वजन घटाने से टाइप 2 मधुमेह से जुड़े चयापचय संबंधी असामान्यताओं को ठीक किया जा सकता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर सहित चार प्रसिद्ध मधुमेह अनुसंधान केंद्रों के विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय पैनल ने मौजूदा उपचार के तरीके की समीक्षा की है। पहला मोटापे पर गौर करने वाले टाइप 2 मधुमेह के उपचार में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है और दूसरा ग्लूकोज नियंत्रण की सिफारिश की है।
आंतरिक चिकित्सा, मधुमेह और एंडोक्रिनोलॉजी के प्रोफेसर तथा अध्ययनकर्ता इल्डिको लिंगवे ने कहा कि यह सर्वविदित है कि मोटापा मधुमेह को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार होता है। इसमें नया यह है कि खून में शर्करा को कम करने पर विशेष रूप से ध्यान देने के बजाय, हम टाइप 2 मधुमेह के इलाज के लिए पहले दृष्टिकोण की सलाह देते हैं, जिसमें मोटापे का इलाज करना शामिल है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर के वजन में 15 फीसदी या उससे अधिक की गिरावट टाइप 2 मधुमेह में रोग के सुधार में प्रभाव डाल सकता है। यह प्रक्रिया ग्लूकोज-कम करने वाले उपचार से अलग है। वे इस बात पर ध्यान देने की बात कहते है कि नए उपचार के लिए मौजूदा उपचार दिशानिर्देशों में सुधार करने और महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता होगी। पैनल की सिफारिशें द लैंसेट में प्रकाशित की गई हैं और यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज सम्मेलन में प्रस्तुत की गई हैं।
मधुमेह के उपचार के लिए मौजूदा दृष्टिकोण 1980 के दशक के नैदानिक अध्ययनों पर निर्भर करता है, जिसमें पाया गया कि खून में शर्करा को कम करने से बीमारी में कम जटिलताएं होती हैं। डॉ. लिंग्वे ने कहा, इन शुरुआती परिणामों ने खून में शर्करा को प्रमुख लक्ष्य के रूप में मानने का समर्थन किया।
इस दृष्टिकोण के साथ समस्या यह है कि यह मूल समस्या का समाधान नहीं करता है और रोग से छुटकारा भी नहीं मिलता है। डॉ लिंगवे ने कहा हमने एक सक्रिय दृष्टिकोण का उपयोग करने का प्रस्ताव सामने रखा है, इसमें मोटापे का इलाज करना है जिसके कारण बीमारी होती है।
यह नवीनतम खोज टाइप 2 मधुमेह के रोगियों को सबसे प्रभावी चिकित्सकीय देखभाल करने के सबसे अच्छे साधनों के बारे में पता लगाता है। डॉ. लिंग्वे ने कहा कि वे लंबे समय से इस प्रयास को जारी रखे हुए है। 2005 में एक प्रारंभिक कैरियर संकाय सदस्य के रूप में, डॉ. लिंगवे ने क्लिनिकल एंड ट्रांसलेशनल रिसर्च स्कॉलर्स प्रोग्राम के यूटी साउथवेस्टर्न के तहत बीटा-सेल विफलता और टाइप 2 मधुमेह में अग्नाशय ट्राइग्लिसराइड संचय की भूमिका का अध्ययन करने के लिए उन्हें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ करियर डेवलपमेंट अवार्ड मिला।
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार, टाइप 2 मधुमेह मोटापे या चयापचय में असामान्यताओं के कारण होने वाली एक निरंतर बढ़ने वाली बीमारी है। मोटापे से संबंधित रोगियों के लिए बेरियाट्रिक सर्जरी प्रभावी हो सकती है, लेकिन सभी रोगियों के पास इस विकल्प तक पहुंच नहीं होती है। डॉ. लिंग्वे ने कहा कि निरंतर वजन घटाना मुश्किल है। अधिकांश जीवनशैली में बदलाव करने के परिणामस्वरूप छह महीने में वजन घट जाता है, इसके बाद वजन एक से तीन साल में फिर बढ़ जाता है। नई वजन घटाने वाली दवाएं बनने जा रही हैं वे रोगियों को लंबी अवधि में अपना वजन को प्रबंधित करने में मदद करेंगी।
शोधकर्ताओं ने बीमा कवरेज के महत्व पर भी जोर दिया जो मोटापे और मधुमेह के इलाज करने में सहायता कर सकती है और सार्वजनिक स्वास्थ्य में काम करने के लिए देखभाल तक पहुंच बढ़ाने और असमानताओं को कम करने के लिए काम कर सकती हैं।