उत्तराखंड: चुनावी तैयारियों के बीच 11 दिन में 25 गुणा बढ़े कोविड के सक्रिय मामले

कोविड-19 की दूसरी लहर में हरिद्वार में कुंभ के बाद मामले बढ़े थे, जबकि इस बार दिसंबर के दौरान हुई चुनावी रैलियों के बाद मामले बढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ
उत्तराखंड में प्रवेश करने के लिए देहरादून के आशारोड़ी बॉर्डर पर कोविड टेस्ट जरूरी। फोटो त्रिलोचन भट्ट
उत्तराखंड में प्रवेश करने के लिए देहरादून के आशारोड़ी बॉर्डर पर कोविड टेस्ट जरूरी। फोटो त्रिलोचन भट्ट
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उत्तराखंड में इस बार भी पिछली दो लहरों वाले पैटर्न को ही दोहरा रहा है। दूसरी लहर के दौरान जब दिल्ली और कई दूसरे राज्यों में श्मशान घाटों में शवों की कतारें लग गई थी तो उत्तराखंड में स्थिति सामान्य नजर आ रही थी। डाउन टू अर्थ ने राज्य के देहरादून और हरिद्वार के विभिन्न श्मशान घाटों का दौरा कर उस समय की वस्तुस्थिति पर रिपोर्ट लिखी थी।

इससे करीब 10 दिनों के बाद उत्तराखंड में स्थितियां बेकाबू हो गई थी और 3 हफ्ते के भीतर पॉजिटिव मामलों की संख्या 10 गुना और मरने वालों की संख्या 13 गुना बढ़ गई थी। दूसरी लहर की तुलना इस बार तीसरी लहर में बढ़ रहे मामलों से करें तो दो बातें स्पष्ट रूप से साफ हो रही हैं। पहली तो यह है कि कोविड अपने पुराने ट्रेंड के अनुसार ही इस बार भीं उत्तराखंड में पैर पसार रहा है।

यानी कि दिल्ली से करीब 10 दिन बाद देहरादून में कोविड केस बढ़ने शुरू हुए। देहरादून के बाद राज्य कें हरिद्वार और नैनीताल जैसे मैदानी जिलों में और फिर राज्य के पर्वतीय जिलों में पॉजिटिव मामलों की संख्या बढ़ रही है।

दूसरी खास बात यह है कि इस बार संक्रमण पिछली बार के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। पिछली बार पॉजिटिव मामले तीन हफ्ते में 10 गुना बढ़े थे, जबकि इस बार एक हफ्ते में पॉजिटिव मामलों की संख्या 10 गुना हो गई थी और 11 दिन में 25 गुना बढ़़ गई है।

इस बार 26 दिसंबर 2021 से 1 जनवरी 2022 तक राज्य में पॉजिटिव मामलों की संख्या 439 थी, जबकि 2 से 8 जनवरी के बीच यह संख्या 4267 हो गई। 12 जनवरी को पॉजिटिव मामलों की संख्या 2915 हो गई। यानी 11 दिनों में पॉजिटिव मामलों की संख्या 25 गुना बढ़ गई। हालांकि मौत के मामले में फिलहाल स्थितियां नियंत्रण में है।

उत्तराखंड में दूसरी लहर के तेजी से फैलने का कारण हरिद्वार का कुंभ मेला रहा। यह ठीक वह समय था, जब राज्य में बार-बार मुख्यमंत्री बदले जा रहे थे। मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कुंभ मेला आयोजित न करने का फैसला किया, लेकिन उनकी जगह मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत ने शपथ लेने के बाद सबसे पहले अति उत्साह में कुंभ मेला आयोजित करने का फैसला किया।

1 अप्रैल, 2021 से औपचारिक रूप से कुंभ मेला शुरू हुआ। राज्यभर से पुलिस बल और अन्य विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी कुंभ मेले में लगी। श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी और देखते ही देखते राज्य में संक्रमण चरम पर पहुंच गया।

इस बार संक्रमण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण राजनीतिक दलों की रैलियां मानी जा रही हैं। प्रतिबंध लगने से पहले उत्तराखंड में हुई विभिन्न राजनीतिक दलों की रैलियों का पॉजिटिविटी रेट पर साफ असर देखा जा सकता है। ये रैलियां देहरादून और नैनीताल जिलों में हुई थी।

अब तक सामने आये आंकड़े बता रहे हैं कि 1 जनवरी के बाद राज्य में कोविड मामलों में हुई बढ़ोत्तरी में सबसे बड़ा योगदान इन्हीं दो जिलों का है। 12 जनवरी के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में 2915 पॉजिटिव केस आये। इनमें से 1361 मामले देहरादून जिले में थे और यहां पॉजिटिविटी रेट करीब 19 प्रतिशत था। नैनीताल जिले में 424 मामले आये और पॉजिटिविटी रेट करीब 20 प्रतिशत रहा।

उधर हरिद्वार जिले में देहरादून और नैनीताल जिलों की तुलना में ज्यादा टेस्ट होने के बावजूद 374 पॉजिटिव मामले सामने आये और पॉजिटिविटी रेट करीब 5 प्रतिशत दर्ज किया गया। मैदानी जिलों के बाद अब संक्रमण पुराने पैटर्न के अनुसार तेजी से पर्वतीय जिलों की तरफ बढ़ रहा है।

12 जनवरी को पौड़ीं और चम्पावत जिलों में पॉजिटिव मामलों की संख्या अन्य पर्वतीय जिलों की तुलना में ज्यादा दर्ज की गई। पौड़ी में 131 और चम्पावत में 119 पॉजिटिव मामले आये। फिलहाल उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग ही दो ऐसे जिले हैं, जहां 24 घंटे के दौरान पॉजिटिव मामलों की संख्या 10 से कम थी। उत्तरकाशी में 1 और रुद्रप्रयाग में 12 जनवरी को 9 पॉजिटिव मामले सामने आये।

राज्य में कोविड मरीजों के उपचार की व्यवस्था पूरी तरह गड़बड़ाई हुई है। पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बावजूद मरीजों के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है।

अरुण सिंह देहरादून के देहराखास इलाके में रहते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने 10 जनवरी को सिटी के दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सैंपल दिया था। 12 तक रिपोर्ट नहीं आई। खुद के प्रयासों से जानकारी ली तो पता चला कि रिपोर्ट पॉजिटिव है।

इसके बावजूद सरकारी स्तर पर कहीं से दवाइयां या अन्य सुविधा नहीं मिली। 13 जनवरी सुबह कोविड केयर सेंटर से फोन आया, जिसमें परिवार के सदस्यों, घर के कमरों, बाथरूम आदि के बारे में जानकारी ली गई। जब पूछा गया कि क्या उनके पास दवाइयां भेजी जा रही हैं, तो जवाब मिला कि इसके लिए उन्हें अपने नजदीक के पीएचसी या सीएचसी जाना होगा।  

अरुण सिंह के अनुसार इस बार पुलिस विभाग से फोन आया था, लोकेशन मांगी गई, दवा भिजवाने का आश्वासन भी मिला, लेकिन शाम तक उनके पास दवाइयां नहीं पहुंच पाई।

उत्तराखंड कोविड आंकड़ों को लगातार विश्लेषण कर रही संस्था एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं कि राज्य में कोविड से निपटने के लिए अब 5 बिन्दुओं वाले एक्शन प्लान पर काम करने की जरूरत है।

इसमें पहला बिन्दु वैक्सीनेशन हैं। वे कहते हैं कि पहली डोज के लिए लोगों में जो उत्साह नजर आया था, वह दूसरी डोज के लिए फीका पड़ गया। राज्य सरकार ने 31 दिसम्बर तक 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को दोनो डोज वैक्सीन लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन अब तक करीब 11 लाख लोगों को दूसरी डोज नहीं लगी है। इस पर तेजी से काम करने की जरूरत है।

दूसरा, टेस्टिंग की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी करने की जरूरत है। हाल के दिनों तक राज्य में रोजाना 20 हजार टेस्ट किये जा रहे थे। दो दिन में इसमें कुछ सुधार आया है। अनूप नौटियाल अस्पतालों की व्यवस्थाएं दुरुस्त करने, बेड और ऑक्सीजन आदि की व्यवस्था करने की जरूरत बताई है।

इसके अलावा कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर अपने की जरूरत बताई है। वे कहते हैं कि उत्तराखंड में कोविड के दौरान सरकार और आम नागरिकों की बीच संवादहीनता की स्थिति सबसे ज्यादा परेशान करती है। आपदा के दौरान सबसे जरूरी होता है संवाद बनाना जिसका राज्य में अभाव देखा गया है, इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है।

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