एक अध्ययन में पाया गया है कि, भारत में जिस तीव्र गति से भोजन के रूप में उपयोग किए जाने वाले पशुओं में रोगाणुरोधी दवाओं का उपयोग हो रहा है, वह दुनिया भर के औसत से बहुत अधिक है। इस दशक के अंत तक इसके इसी तरह बने रहने के आसार हैं।
भारत में किए गए अध्ययन के अनुसार, आंशिक रूप से रोगाणुरोधी दवाओं के प्रतिरोध की दुनिया के सबसे अधिक दरों में से एक भारत में है। लोगों और भोजन के रूप में उपयोग किए जाने वाले जानवरों दोनों में इसकी दर बहुत अधिक है।
रोगाणुरोधी उपयोग की अधिकता (एएमयू) दुनिया भर में प्रति किलोग्राम मांस में इसके मिलीग्राम में 7.9 फीसदी की वृद्धि होने के आसार हैं। लेकिन भारत की एएमयू तीव्रता 2020 में ही वैश्विक औसत से 43 फीसदी अधिक होने का अनुमान लगाया गया था। 2030 में इसके औसत से 40 फीसदी अधिक होने की आशंका जताई गई है।
वैज्ञानिकों ने लोगों और जानवरों में संक्रमण से लड़ने के लिए रोगाणुरोधी दवाओं का विकास किया, लेकिन 2019 के एक अध्ययन के मुताबिक 2019 तक, धरती पर बेचे जाने वाले सभी रोगाणुरोधक दवाओं का 73 फीसदी भोजन के लिए पाले गए जानवरों में इस्तेमाल किया गया था।
उत्पादकता बढ़ाने के लिए लोगों द्वारा और पोल्ट्री उद्योग के कुछ हिस्सों में इन दवाओं के भारी उपयोग ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) को जन्म दिया। संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया के कुछ वर्ग इन दवाओं के प्रभाव से बचने लगे, जबकि शोधकर्ता अधिक शक्तिशाली विकल्प विकसित करने के लिए संघर्ष कर रहे। आज, एएमआर को दुनिया के प्रमुख स्वास्थ्य संकटों में से एक माना जाता है।
नई दिल्ली स्थित शोध संगठन, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा 2014 में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर रहे हैं, इसलिए वे कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं जिनका इलाज संभव है। इस प्रतिरोध में से कुछ पोल्ट्री उद्योग में एंटीबायोटिक दवाओं के बड़े पैमाने पर अनियंत्रित उपयोग के कारण हो सकता हैं।
सीएसई की प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला (पीएमएल) द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्षों के बारे में बताते हुए, सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि "एंटीबायोटिक अब लोगों तक ही सीमित नहीं हैं और न ही बीमारियों के इलाज तक सीमित हैं।
उदाहरण के लिए, पोल्ट्री उद्योग विकास प्रवर्तक के रूप में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करता है। मुर्गियों को एंटीबायोटिक खिलाई जाती हैं ताकि उनका वजन बढ़े और वे तेजी से बढ़ें। सीएसई लैब के अध्ययन में चिकन के 40 प्रतिशत नमूनों में एंटीबायोटिक के अवशेष पाए गए जिनका परीक्षण किया गया था।
2019 में किए गए अध्ययन में मुर्गियों और सूअरों में होने वाले प्रतिरोधी जीवाणु वैरिएंट की संख्या में साफ वृद्धि का उल्लेख किया गया है। लोगों को घातक संक्रमणों का भी खतरा है। भारत पहले से ही बेहद दवा प्रतिरोधी तपेदिक का सामना कर रहा है।
नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 42 देशों के आंकड़ों को 180 से अधिक देशों से मिलाया। स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य भूगोल के सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता थॉमस वान बोएकेल ने कहा यह हमारे अध्ययन की एक सीमा है।
डॉ वान बोएकेल ने कहा उन्होंने यह तरीका इसलिए अपनाया क्योंकि कुछ ही देश एंटीबायोटिक के उपयोग की जानकारी देते हैं, अधिकांश देश या तो असमर्थ हैं या रिपोर्ट करने के इच्छुक नहीं हैं। भारत भी उनमें से एक ऐसा ही देश है।
प्रमुख अध्ययनकर्ता रान्या मूलचंदानी ने कहा इसके अतिरिक्त, 2030 के लिए हमारे पूर्वानुमान संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा निर्धारित 'सामान्य रूप से व्यवसाय' परिदृश्य पर आधारित हैं। रान्या मूलचंदानी, ई टीएच ज्यूरिख में एक संक्रामक रोग महामारी विज्ञानी हैं।
इसलिए निष्कर्ष इस धारणा पर आधारित हैं कि देश एंटीबायोटिक के उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए कार्य नहीं करते हैं। यदि देश आने वाले सालों में रोगाणुरोधी उपयोग को रोकने के लिए कार्य करते हैं, तो उन्हें कम करके आंका जा सकता है।
अध्ययनकर्ताओं ने छोटे-छोटे देशों के डेटासेट को जानवरों की आबादी के आंकड़ों, जानवरों के घनत्व के नक्शे और विभिन्न प्रतिगमन मॉडल के साथ जोड़कर एक ऐसा उपकरण तैयार किया जिसने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एएमयू का पूर्वानुमान लगाया।
उन्होंने 'जनसंख्या सुधार इकाइयां' (पीसीयू) नामक एक मीट्रिक विकसित की। उनके शोध के अनुसार, पीसीयू एक देश में जानवरों की कुल संख्या (जीवित या मृत) का प्रतिनिधित्व करता है, उपचार के समय जानवर के औसत वजन से गुणा किया जाता है, इस प्रकार पशु वजन और उत्पादन की संख्या में अंतर के लिए देशों के बीच प्रति वर्ष के चक्र को समझा जाता है।
अंत में उन्होंने पशु स्वास्थ्य के लिए विश्व संगठन द्वारा तैयार किए गए महाद्वीप स्तर के अनुमानों से मिलान करने के लिए मॉडल को समायोजित किया।
उन्होंने पाया कि भारत की एएमयू तीव्रता 2020 में 114 मिलीग्राम प्रति पीसीयू से बढ़कर 2030 में 120 मिलीग्राम प्रति पीसीयू हो जाएगी। यह 5 फीसदी की वृद्धि है, जबकि अपेक्षित वैश्विक औसत 8 फीसदी है।
2020 में, सबसे बड़ा उपयोगकर्ता चीन 32,776 टन था, जबकि 2030 तक, पाकिस्तान में सबसे बड़ी सापेक्ष वृद्धि 44 फीसदी होने का पूर्वानुमान लगाया गया है। टेट्रासाइक्लिन नामक एंटीमाइक्रोबियल्स के एक वर्ग के उपयोग में 2030 तक सबसे अधिक 9 फीसदी की वृद्धि होने का पूर्वानुमान लगाया गया है।
डॉ. मूलचंदानी ने कहा कि दक्षिण भारत में उच्च रोगाणुरोधी उपयोग शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में फार्मों के कारण हो सकता है जो अधिक मात्रा में फार्मों से भोजन के रूप में उपयोग किए जाने वाले जानवरों को शहरवासियों को प्रदान करते हैं। यह अध्ययन पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ पत्रिका में काशित हुआ है।