यह संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी यानी यूएसऐड है, जो इथियोपिया व उसके आसपास के पूरे क्षेत्र में लोगों को न केवल आवश्यक सेवाएं प्रदान कर रही है, बल्कि उनकी उम्मीद का स्रोत भी है।
यह इथियोपिया के हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में मानवीय सहायता और सतत विकास के लिए सक्रिय रूप से योगदान दे रही है।
इस एजेंसी ने मानवीय सहायता, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और दुनिया भर में लोकतांत्रिक शासन का समर्थन करने के लिए 2023 के वित्तीय वर्ष में 40 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि आवंटित की।
यूएसऐड की सबसे बड़ी धनराशि में से एक इथियोपिया के लिए थी, जो 1.676 अरब अमेरिकी डॉलर थी, जिसका उद्देश्य सूखा, संघर्ष और खाद्य असुरक्षा से निपटना था, क्योंकि इथियोपिया दो साल के लंबे गृह युद्ध से उबर रहा है।
वर्तमान में 2 करोड़ इथियोपियाई नागरिकों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है। यदि वित्तीय सहायता में कटौती की गई, तो यहां अकाल जैसी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। इसके बावजूद हाल ही में नीति में बदलाव की आशंका है। क्योंकि ट्रंप के नेतृत्व वाली अमेरिकी सरकार बजट में कटौती पर विचार कर रही है, जिससे पूरे विश्व को दी जा रही सहायता पर असर पड़ सकता है।
नवंबर 2024 में, यूएसऐड ने 31 मिलियन अमेरिकी डॉलर के 'मार्केट्स फॉर सैनिटेशन' (M4S) प्रोजेक्ट की शुरुआत की। इसका उद्देश्य 5.4 मिलियन यानी 54 लाख इथियोपियाई नागरिकों को स्वच्छता सेवाएं प्रदान करना और 1 लाख 80 हजार महिलाओं व लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल होने वाले स्वच्छता उत्पाद उपलब्ध कराना है। इसे दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया जाता है।
M4S परियोजना कई इलाकों में संचालित होगी, जिनमें टिग्रे, अमहारा, ओरोमिया, सिदामा, सोमाली, दक्षिण इथियोपिया, मध्य इथियोपिया और दक्षिण-पश्चिम इथियोपिया शामिल हैं।
इसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धी स्वच्छता बाजार को बढ़ावा देना है, ताकि स्वच्छता से जुड़े उत्पाद और सेवाएं सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो सकें। साथ ही, इस बाजार आधारित समाधान के माध्यम से दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
यूएसऐड इथियोपिया मिशन के निदेशक स्कॉट हॉकलैंडर का कहना है कि हमारा मकसद बाजार की ताकत का इस्तेमाल करके बदलाव लाना और इथियोपियाई नागरिकों को उनका हक देना है।
लेकिन अब यह सब रुकने वाला है। क्यों? क्योंकि जनवरी 2025 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक आदेश जारी किया, जिससे विदेशी मदद, जिसमें यूएसऐड की फंडिंग भी शामिल है—को रोक दिया गया। यह कदम उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत उठाया गया है।
आलोचकों का कहना है कि यूएसऐड की सहायता में कटौती न सिर्फ लोगों की तकलीफें बढ़ाएगी, बल्कि उन संवदेनशीय क्षेत्रों में अमेरिका के रणनीतिक प्रभाव को भी कमजोर करेगी, जहां चीन और रूस तेजी से अपनी पकड़ बना रहे हैं।
साथ ही इससे यह भी पता चला है कि अमेरिका की नीतियों में वैचारिक बदलाव आ रहा है। इतिहास भी इस बात की पुष्टि करता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका की मदद से यूरोप और पूर्वी एशिया में स्थिरता आई। इससे अमेरिकी नेताओं ने समझा कि विकास के लिए दी जाने वाली इस तरह की सहायता लंबे समय तक सुरक्षा बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन अब, इथियोपिया को दी जाने वाली मदद बंद करने से सालों की मेहनत और प्रगति बेकार हो सकती है।
यह सिर्फ इथियोपिया तक सीमित नहीं है। हजारों मील दूर भारत में भी यूएसऐड की मदद ने ट्रांसजेंडर समुदाय को नई उम्मीद दी थी।
हैदराबाद, ठाणे और पुणे में शुरू की गई 'मित्र क्लीनिक्स' के तहत 6,000 से ज्यादा ट्रांसजेंडर लोगों को सस्ता HIV इलाज और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की गईं । लेकिन यूएसऐड की फंडिंग बंद होने के बाद अब ये क्लीनिक बंद हो गए, जिससे हजारों लोग जरूरी इलाज से वंचित रह गए।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की ताज़ा सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, यूएसऐड ने 2023-24 में 750 मिलियन डॉलर (करीब 62 अरब रुपए) के 7 प्रोजेक्ट्स को फंड किया था।
यूएसऐड की यह वापसी सिर्फ एक नीतिगत बदलाव नहीं है—यह उन लोगों के लिए जीवनरेखा खत्म करने जैसा है, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख का कहना है कि अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता रोके जाने से एचआईवी, पोलियो, मंकीपॉक्स और बर्ड फ्लू से निपटने वाले कार्यक्रमों पर बुरा असर पड़ा है।
जिनेवा में एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में WHO प्रमुख ने पहली बार यूएसऐड बंद होने के मुद्दे पर बात करते हुए कहा, "अमेरिकी सरकार के कुछ फैसलों से हम काफी चिंतित हैं, क्योंकि इनका वैश्विक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है।"
अमेरिका के नीति-निर्माताओं के सामने अब यह एक बड़ी चुनौती है कि या तो वे पहले की तरह अंतरराष्ट्रीय सहायता जारी रखें, या फिर सहायता में कटौती के कारण पैदा होने वाले मानवीय संकट को स्वीकारें।