भारत में बनी टाइफाइड की वैक्सीन का चार साल तक रहता है असर: अध्ययन

शोध के मुताबिक, नौ महीने से 12 साल की उम्र के बच्चों में टीकाकरण के बाद 48 महीने से अधिक समय तक यह टिकाऊ समग्र सुरक्षा प्रदान करता है, समय के साथ इसकी प्रभावकारिता में थोड़ी गिरावट आती है।
फोटो साभार : आईसटॉक
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भारत के हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक के संयुग्म टाइफाइड टॉक्सोइड वैक्सीन - टाइपबार - की प्रभावकारिता लंबे समय यानी, चार साल तक तक बनी रहती है। इस बात का पता अफ्रीका के मलावी में नौ महीने से 12 साल की उम्र के बच्चों पर तीसरे चरण के परीक्षण से चला है। अध्ययन में सभी आयु वर्ग के बच्चों में टीके की प्रभावकारिता देखी गई। यहां फरवरी से सितंबर 2018 के दौरान बच्चों को वैक्सीन की एक खुराक दी गई थी।

टाइफाइड वैक्सीन इसलिए जरूरी है कि साल 2019 में, दुनिया भर में लगभग 92.4 लाख टाइफाइड के मामले सामने आए और 1,10,000 मौतें हुई। 2019 में टाइफाइड के अधिकांश मामले और मौतें दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में हुई।

नौ महीने से 12 वर्ष की आयु के स्वस्थ बच्चों को रैंडम या यादृच्छिक रूप से भारत बायोटेक के संयुग्म टाइफाइड वैक्सीन या मेनिंगोकोकल ए संयुग्म (मेनए) वैक्सीन हासिल करने का काम सौंपा गया था। परीक्षण में शामिल शोधकर्ताओं और परीक्षण प्रतिभागियों दोनों को यह नहीं पता था कि किसे टाइफाइड का टीका मिला है और किसे मेनए मेनिंगोकोकल टीका मिला है।

अध्ययन के मुताबिक, 28,130 बच्चों को परीक्षण के लिए भर्ती किया गया था और 14,069 बच्चों को टाइफाइड का टीका दिया गया था, जबकि शेष 14,061 बच्चों को नियंत्रित टीका (मेनए) दिया गया था।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि यह पहला रैंडम, नियंत्रित, डबल-ब्लाइंड परीक्षण है जो नौ से 12 वर्ष की आयु के बच्चों में टाइफाइड बुखार- स्थानीय परिस्थितियों में टाइफाइड वैक्सीन की एक खुराक के लंबे समय तक प्रभावकारिता के अध्ययन करने के लिए किया गया।

अध्ययन में कहा गया है कि औसतन 4.3 वर्षों के अंत में टीके की प्रभावकारिता नौ महीने से दो वर्ष की आयु के बच्चों में 70·6 फीसदी थी। लेकिन दो से चार वर्ष की आयु के बच्चों में प्रभावकारिता 79·6 फीसदी से अधिक थी, जबकि पांच से 12 वर्ष की आयु के बच्चों में प्रभावकारिता 79·3 फीसदी थी। फॉलोअप की अवधि के दौरान, टाइफाइड का टीका लगाए गए 24 बच्चों में टाइफाइड बुखार था, जबकि नियंत्रण समूह में 110 बच्चों में टाइफाइड बुखार की जांच की गई।

शोधकर्ता कहते हैं, दो साल से कम उम्र के बच्चों में सुरक्षा का बना रहना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, निष्कर्षों को देखते हुए कि नियंत्रण समूह में टाइफाइड बुखार की घटना सभी आयु वर्गों में समान है। कम से कम 48 महीनों तक लंबे फॉलोअप ने वैक्सीन की एक खुराक देने से रोके गए मामलों की बढ़ी हुई संख्या की पहचान की है। परीक्षण के परिणाम हाल ही में द लांसेट पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं

शोध के अनुसार, पूरे खतरे में कमी प्रति 1,000 टीकाकरण वाले बच्चों में 6·1 टाइफाइड संक्रमण था, जो टाइफाइड बुखार के एक मामले को रोकने के लिए 163 के टीकाकरण के लिए आवश्यक संख्या के अनुरूप है। अनुमानित कुल टीका प्रभावकारिता एक वर्ष के बाद 83·4 फीसदी, दो साल के बाद 80·7 फीसदी, तीन साल के बाद 80·1फीसदी, चार साल के बाद 77·1 फीसदी और 4·61 के बाद 78·3 फीसदी पाई गई। 

छोटी अवधि में फॉलोअप के साथ पहले के परीक्षणों में, भारत बायोटेक के टाइफाइड वैक्सीन ने उच्च प्रभावकारिता दिखाई थी। उदाहरण के लिए, मलावी में एक परीक्षण में टीके की प्रभावकारिता 18 से 24 महीनों में 80.7 फीसदी, नेपाल में किए गए 24 महीनों के परीक्षण में 79 फीसदी और बांग्लादेश में आयोजित परीक्षण में 18 महीनों में 85 फीसदी थी।

शोधकर्ताओं ने कहा हमारा अध्ययन इस बात का सबूत देता है कि नौ महीने से 12 साल की उम्र के बच्चों में टीकाकरण के बाद 48 महीने से अधिक समय तक टिकाऊ समग्र सुरक्षा प्रदान करता है, समय के साथ प्रभावकारिता में थोड़ी गिरावट आती है। हमने अनुमान लगाया है कि समय के साथ टीके की प्रभावकारिता चार वर्षों में प्रति वर्ष केवल 1·3 फीसदी कम हुई है।

लंबे समय के इस परीक्षण के परिणाम इन टीकों की उच्च अनुमानित लागत-प्रभावशीलता का समर्थन करते हैं, जो उन धारणाओं का उपयोग करके उत्पन्न किया गया था जो कम अवधि के पिछले परीक्षणों पर आधारित थे।

टाइफाइड का टीका छह महीने से अधिक उम्र के बच्चों में मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करने में सक्षम है। वर्तमान में, दो संयुग्मित टाइफाइड टीके हैं - भारत बायोटेक द्वारा निर्मित टाइपबार टीसीवी टाइफाइड वैक्सीन, जिसे 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से पहले स्वीकृती या प्री-क्वालिफिकेशन हासिल हुआ और बायोलॉजिकल ई का वी-आई-सीआरएम 197 संयुग्मित टाइफाइड वैक्सीन, जिसे 2020 में डब्ल्यूएचओ से प्री-क्वालिफिकेशन हासिल हुआ।

शोधकर्ताओं का कहना है कि साल्मोनेला टाइफी बैक्टीरिया, जो टाइफाइड का कारण बनता है, टीके की एक खुराक से सुरक्षा कम होने के कारण टीकाकरण के बाद पांच से 15 वर्ष की आयु के बच्चों में दोबारा पनप सकता है। टीका लगाए गए बच्चों में टाइफाइड की पुनरावृत्ति बैक्टीरिया के संचरण की गतिशीलता के गणितीय मॉडल पर आधारित है। इसलिए, लंबी अवधि के टीके की प्रभावकारिता अध्ययन की आवश्यकता है।

शोधकर्ता ने आगे कहा, क्या टीके की दूसरी खुराक से अतिरिक्त लाभ हासिल किया जा सकता है इस बारे में जानकारी नहीं है। नवीनतम अध्ययन में नामांकित सबसे कम उम्र के बच्चों के एक उपसमूह में शुरुआती खुराक के लगभग पांच साल बाद दी गई बूस्टर खुराक का इम्यूनोजेनेसिटी अध्ययन वर्तमान में मलावी में चल रहा है।

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