गुजरात और पंजाब के बाद यूपी के पीलीभीत-शाहजहांपुर में दो बच्चों की मौत व सैकड़ों बच्चों के बीमार होने से मीजल्स-रूबेला (एमआर) टीकाकरण के राष्ट्रीय अभियान को झटका लगा है। अभिभावकों के बीच ऐसा डर फैला कि सरकार को जागरुकता के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और मीडिया की मदद लेनी पड़ गई।
26 नवंबर से यूपी में एमआर (मीजल्स-रूबेला) टीकाकरण की शुरुआत हुई थी। अभियान के पहले ही दिन प्रदेश भर से बच्चों की तबीयत खराब होने की खबर आने लगी। कानपुर में अलग-अलग स्कूलों में 100 बच्चे बीमार पड़ गए। उन्हें आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया। शाहजहांपुर में 30, लखीमपुर खीरी में 22, मैनपुरी में 12, फिरोजाबाद में चार, उन्नाव में 29, महोबा और टुंडला में आठ-आठ बच्चों की तबीयत खराब होने से अभिभावकों में डर पसर गया। पीलीभीत और शाहजहांपुर में एक-एक बच्चे की मौत होने से स्वास्थ्य विभाग के हाथ-पैर फूल गए। पीलीभीत में शहर से सटे गांव चंदोई निवासी जैनब (12 वर्ष) की टीकाकरण के अगले दिन तबीयत खराब हो गई। उल्टी आने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां छात्रा ने दम तोड़ दिया। शाहजहांपुर में भी ऐसी ही घटना हुई। 26 नवंबर को शाहजहांपुर के चांदपुर गांव के रहने वाले छात्र प्रिंस (8 वर्ष) के भी टीका लगाया गया। प्रिंस के पिता सुधीर दीक्षित ने बताया कि वैक्सीन लगने के ढाई घंटे बाद प्रिंस की तबीयत खराब हो गई। उसे उल्टी आने लगी। रात नौ बजे डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
इससे पहले पंजाब में भी टीकाकरण के बाद तमाम बच्चों की तबीयत बिगड़ने और एक बच्ची की मौत की घटना हुई थी। भटिंठा में बच्ची की मौत के बाद अभियान को रोकना पड़ गया था। गुजरात में डिंपल माहेश्वरी और मुकेश निगम की मौत के पीछे परिजनों ने टीकाकरण को दोषी बताया था। विरोध के चलते राज्य सरकार को जांच के आदेश देने पड़े थे।
बच्चों की तबीयत बिगड़ने की घटनाएं बढ़ीं तो शासन-प्रशासन सक्रिय हो गया। प्रशासनिक अधिकारियों ने इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) से संपर्क साध कर सभी डॉक्टरों से लोगों का डर दूर करने की अपील की। इसके बाद प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर सोशल मीडिया के जरिए भी वैक्सीन के प्रति जागरुकता फैलाने लगे। लोगों के डर को दूर करने के लिए शाहजहांपुर में स्कूली बच्चों की मदद से रैली निकालकर जागरुकता अभियान शुरू किया गया है।
आईएमए बरेली के अध्यक्ष और बाल रोग विशेषज्ञ राजेश अग्रवाल कहते हैं कि डब्लूएचओ, यूनीसेफ और स्वास्थ्य विभाग ने काफी प्रयोग के बाद इस अभियान को शुरू किया है। इंजेक्शन के डर से भी बच्चों की तबीयत खराब हो जा रही है। यदि बच्चों को बुखार है या उन्हें कोई गंभीर बीमारी है तो वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए। जब बुखार खत्म हो जाए तब वैक्सीन लगवाएं। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी दीपा सिंह ने बताया कि टीका लगने के आधा घंटे बाद तक बच्चों को स्कूल में रोककर रखा जाता है। यह टीका पूरी तरह से सुरक्षित है। यह अभियान पांच हफ्तों तक चलेगा।
एमआर टीकाकरण के तहत पूरे देश में 9 महीने से 15 वर्ष तक के 41 करोड़ बच्चों को वैक्सीन लगना है। टीकाकरण का पहला चरण तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में चला था। इस दौरान 3.3 करोड़ बच्चों के वैक्सीन लगाई गई। अगस्त से दूसरा चरण शुरू हुआ था। दूसरे चरण में आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़, दादर नागर हवेली, दमन और दीव, हिमाचल प्रदेश, केरल, तेलंगाना और उत्तराखंड में 3.4 करोड़ बच्चों के टीके लगाए गए। अब इसका तीसरा चरण चल रहा है। यूपी में अभियान के तहत 75 जिलों में लगभग आठ करोड़ बच्चों का टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा गया है।