भारत में अनुमान से कहीं ज्यादा जानवरों से इंसानों में फैल रहा है टीबी

भारत में मवेशियों की आबादी 30 करोड़ से भी ज्यादा है| 2017 के आंकड़ों के अनुसार इनमें से करीब 2.2 करोड़ मवेशी टीबी से संक्रमित थे|
भारत में अनुमान से कहीं ज्यादा जानवरों से इंसानों में फैल रहा है टीबी
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अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के अनुसार जानवरों से इंसानों में होने वाले ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के मामले अनुमान से कहीं ज्यादा हैं| वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जानवरों से फैलने वाले टीबी के मामले इंसानों से इंसानों में फैलने वाले टीबी के संक्रमण से भी ज्यादा हैं| गौरतलब है कि कोविड-19 की ही तरह टीबी भी एक संक्रामक बीमारी है| जिसे तपेदिक, क्षय रोग आदि नामों से जाना जाता है| यह बीमारी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। जिसका सबसे अधिक प्रभाव फेफड़ों पर होता है। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल लांसेट में प्रकाशित हुआ है|

इस अध्ययन के एक शोधकर्ता और संक्रामक रोगों और माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर विवेक कपूर के अनुसार भारत में मवेशियों की आबादी 30 करोड़ से भी ज्यादा है| 2017 के आंकड़ों के अनुसार जिनमें से करीब 2.2 करोड़ टीबी से संक्रमित हैं| कपूर ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार माइकोबैक्टीरियम बोविस के कारण जानवरों में होने वाली टीबी इंसानों में भी फैल सकती है| जिसे जूनोटिक टीबी कहा जाता है|

क्या माइकोबैक्टीरियम बोविस के अलावा टीबी के अन्य बैक्टीरिया से भी हो सकती है जूनोटिक टीबी

क्या माइकोबैक्टीरियम बोविस से जूनोटिक टीबी हो सकती है और क्या अन्य माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कॉम्प्लेक्स से यह बीमारी इंसानों में फैल सकती है| इसको समझने के लिए कपूर और उनकी टीम ने 940 से अधिक नमूनों का अध्ययन किया है| जिसमें फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों से लिए गए नमूने शामिल थे| यह सभी नमूने दक्षिण भारत के एक बड़े टीबी अस्पताल से लिए गए थे| इसके बाद शोधकर्ताओं ने पीसीआर की मदद से माइकोबैक्टीरियम बोविस की अलग से पहचान कर ली और गैर माइकोबैक्टीरियम बोविस के नमूनों को अलग से क्रमबद्ध कर दिया| उन्होंने इन नमूनों की तुलना पहले से क्रमबद्ध किये उन 715 नमूनों से की जिन्हें इंसानों और जानवरों से लिया गया था| इन नमूनों को पहले से ही दक्षिण भारत से एकत्र किया गया था जिन्हे एक पब्लिक डेटाबेस में रखा गया था|

हक इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज में स्कॉलर और इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता श्रीनिधि श्रीनिवासन ने बताया कि, "आश्चर्यजनक रूप से, हमें किसी भी नमूने में बैक्टीरिया एम बोविस की उपस्थिति के सबूत नहीं मिले हैं। इसके बजाय सात नमूनों में एम ऑरगिस बैक्टीरिया था। जबकि छह रोगियों में शरीर के अन्य हिस्से में होने वाली टीबी जिसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं, के लक्षण पाए गए थे।" उनके अनुसार जैसा की अनुमान लगाया गया था ज्यादातर नमूनों में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के लक्षण पाए गए थे| जिसके बारे में अब तक यह धारणा थी कि यह बैक्टीरिया केवल इंसानों से इंसानों में ही फैलता है| श्रीनिवासन ने बताया कि "हमारे निष्कर्ष दिखाते हैं कि भारत में एम बोविस बैक्टीरिया आम नहीं है और केवल इसके अध्ययन से ज़ूनोटिक टीबी के बारे में सही जानकारी नहीं मिल सकती| उनके अनुसार इन आंकड़ों से पता चला है कि भारत में एम बोविस के अलावा भी टीबी के अन्य बैक्टीरिया मवेशियों में हो सकते हैं| इसे देखते हुए कपूर का मानना है ज़ूनोटिक टीबी की परिभाषा को और व्यापक किये जाने की आवश्यकता है| इसमें माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस कॉम्प्लेक्स के अन्य बैक्टीरिया को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि इनसे भी जानवरों से इंसानों में यह बीमारी फैल सकती है|

भारत में हैं दुनिया के 27 फीसदी टीबी मरीज

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को देखें तो औसतन हर साल 1 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं| जबकि यह बीमारी हर साल करीब 15 लाख लोगों की मौत का कारण बनती है| ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2019 के अनुसार 2018 में करीब 1 करोड़ लोग इस बीमारी से ग्रस्त हुए थे| जिनमे से सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की थी| रिपोर्ट के अनुसार भारत के करीब 27 लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित हुए थे| जोकि दुनिया के कुल टीबी मरीजों के एक-चौथाई से भी ज्यादा है| जिनमें से करीब 4 लाख मरीजों की मौत हो गई थी| इसके बाद चीन का नंबर आता हैं जहां विश्व के करीब 9 फीसदी टीबी मरीज हैं| इसके अलावा इंडोनेशिया में 8 फीसदी, फिलीपीन्स 6 फीसदी, पाकिस्तान में 6 फीसदी, नाइजीरिया और बांग्लादेश में 4 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका में करीब 3 फीसदी टीबी के मरीज हैं| डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 27 लाख नए टीबी के मामले सामने आते हैं, जिनमें से क़रीब 1.30 लाख मल्टीड्रग रेसिस्टेन्स होते हैं|

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2035 तक टीबी को 90 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है| ऐसे में दक्षिण एशिया में एम ऑरगिस के बढ़ते मामले और जानवरों में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस का मिलना एक चिंता का विषय है| ऐसे में भारत से टीबी को खत्म करने के लिए पशु चिकित्सा और रोगाणुओं की रोकथाम, दोनों पक्षों पर ध्यान देना जरुरी है| वैज्ञानिकों को भरोसा है कि उनके शोध के जो परिणाम आये है वो चिकित्सा जगत के लिए फायदेमंद हो सकते हैं| जिससे इस बीमारी को खत्म करने में मदद मिलेगी|

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