कोरोना काल के तीन साल: अब तक उबर नहीं पाया हूं मैं, झेल रहा हूं शारीरिक दिक्कतें

कोविड-19 महामारी घोषित हुए तीन साल पूरे होने पर डाउन टू अर्थ में पढिए, कुछ लेखकों की आपबीती
लेखक विवेक मिश्रा ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के साथ पैदल यात्रा की थी। फोटो: विवेक मिश्रा
लेखक विवेक मिश्रा ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के साथ पैदल यात्रा की थी। फोटो: विवेक मिश्रा
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कोविड काल के हाहाकार और रूदन के दृश्य अब भी ताजा बने हुए हैं। उससे ज्यादा कोविड काल में मिली बीमारियों की देखरेख रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं। जून, 2020 जब कोविड की पहली लहर जारी थी और मुझे प्रवासी श्रमिकों के साथ दिल्ली से बहराइच पहुंचे हुए कुछ दिन बीते थे। जून महीने में ही एक दिन तेज बुखार का एहसास और रीढ़ की हड्डी में दर्द शुरु हुआ। मैं पैर हिला सकने में असहज था।

सरकारी अस्पताल के लगातार दो एंटीजन टेस्ट में मैं कोविड पॉजिटिव पाया गया। उन दिनों अस्पताल पहुंचना और जांच की व्यवस्था कर पाना सबसे दुरूह कामों में से एक था। संपर्क का कोई तंत्र काम नहीं आ रहा था। कोविड के उस दौर में घरवालों ने संक्रमण की चिंता छोड़ सेवा जारी रखी। लगातार शरीरी में ऑक्सीजन की मात्रा (एसपीओटू) और थर्मामीटर से बुखार का जांचना जारी रखा।

बुखार के तीसरे दिन मेरी कमर में दर्द इतना ज्यादा बढ़ा कि मैं सुध-बुध खो चुका था। ऐसा लगा कि आखिरी वक्त आ गया है। कहने सुनने पर एक चिकित्सक ने चार हाथ दूर से ही मुझे देखा और कुछ स्टेरॉयड के साथ दर्द की दवाएं दे दीं। उस जून महीने की गर्मी में भी मुझे कंबल ओढ़ना पड़ा था। रात में कमर के निचले हिस्से से चिपचिपा रिसाव हुआ और दर्द में थोड़ी राहत मिल गई। दस दिन बीत चुके थे। बुखार कम हो गया था। मेरा शरीर बहुत ही कमजोर था। मेरी कमर का दर्द भी कम हो गया था लेकिन निचले हिस्से से मवाद का आना जारी रहा।

बहराइच, लखनऊ और दिल्ली के चिकित्सक बुखार और कमर के दर्द व कोरोना से इसके रिश्ते को लेकर स्पष्ट नहीं थे। एक चिकित्सक ने कहा कि वह लक्षण के आधार पर ही इलाज कर रहे हैं। कोरोनो से पैदा हुई बीमारियों या उसके प्रभाव को लेकर वह कुछ नहीं जानते। भारत में कोविड के बारे में चिकित्सको का अनुभव भी महज छह सात महीने का था। इसलिए कोई स्पष्ट राय नहीं रख रहा था।

मैं चलने फिरने लगा था। हालांकि कमर के निचले हिस्से में बने घाव और उससे होने वाले रिसाव को लेकर चिंतित रहने लगा था। दर्द, एंटीबायोटिक दवाओं के साथ काफी देखरेख करनी पड़ रही थी। मसलन दो बार बीटाडीन के पानी से सिकाव करना पड़ता था, जो तीसरे वर्ष भी जारी है।

कोविड को गए तीन साल हो चुके हैं। लेकिन इसके दीर्घ प्रभावों के बारे में अभी बहुत कुछ जानना वैज्ञानिक और चिकित्सकों का बाकी है। यदि व्यक्तिगत अनुभवों की बात करें तो इन तीन वर्षों के अंदर कई बीमारियों ने घेर लिया। जैसे शुरुआत में लगातार सर्दी और बुखार का आना-जाना। फिर 2022 में फुल बॉडी चेकअप कराने के दौरान एक चौंकाने वाला रिजल्ट सामने आया। लिपिड प्रोफाइल में ट्राइग्लिसराइड की मात्रा 990 एमजी प्रति लीटर निकली जो कि 150 एमजी प्रति लीटर  के नीचे होनी चाहिए थी।

ट्राइग्लिसराइड बढ़ने का अर्थ है कि खून काफी गाढ़ा हो चुका है और हृदय की नलियां जाम हो रही हैं। इसी तरह ब्लड शुगर भी काफी बढ़ा हुआ सामने आया।

यह सब तब था जब कोविड के बाद खान-पान सामान्य रहा। फोर्टिस अस्पताल के डॉक्टर अनूप मिसरा जो कि एक जाने-माने डायबेटोलॉजिस्ट हैं उन्होंने भी रिपोर्ट पर हैरानी जताई। मेरे मामले को पोस्ट कोविड मामले की तरह इलाज किया।

मेरी जिदंगी में कमर के निचले हिस्से में दर्द के अलावा रोजाना ब्लड शुगर को नियंत्रित करना और ट्राइग्लिसराइड को नियंत्रण में रखने का दबाव शामिल हो गया। अभी इन दोनों स्थितियों के लिए दवाईयां जारी हैं।

इस बीच कमर के निचले हिस्से से हो रहे रिसाव को एंटीबायोटिक भी ठीक नहीं कर सका। एमॉक्सिसिलीन 625 और 800 की उच्च मात्राएं भी इसे ठीक नहीं कर पा रही थीं। तात्कालिक राहत से ज्यादा कुछ नहीं था। अंत में दो ऑपरेशन से गुजरना पड़ा, जिसके दुष्प्रभाव जिंदगी भर झेलन होंगे।

मैं यह तीन साल बाद भी स्पष्ट तौर पर नहीं जान सका कि स्वास्थ्य की यह समस्याएं कोविड की देन हैं या नहीं। हालांकि, पर्चे में इसे पोस्ट कोविड ही कहा जाता रहा है। कोविड धुंधला जरूर हुआ है लेकिन मिटा नहीं। यह हमारे साथ है। 

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