मधुमेह नियंत्रण में मददगार हो सकता है यह प्रोटीन

शोधकर्ताओं का कहना है कि मधुमेह प्रबंधन के प्रभावी तरीकों एवं दवाओं के विकास और जीवन शैली में जरूरी बदलाव के निर्धारण में यह खोज उपयोगी हो सकती है
आनंद शर्मा, योगेंद्र शर्मा, राधिका खंडेलवाल और अमृता चिदानंद (बाएं से दाएं)। फोटो: साइंस वायर
आनंद शर्मा, योगेंद्र शर्मा, राधिका खंडेलवाल और अमृता चिदानंद (बाएं से दाएं)। फोटो: साइंस वायर
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भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में सिक्रीटेगॉगिन (एससीजीएन) नामक एक ऐसे प्रोटीन का पता चला है जो मोटापे से ग्रस्त मधुमेह रोगियों में रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मददगार हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मधुमेह प्रबंधन के प्रभावी तरीकों एवं दवाओं के विकास और जीवन शैली में जरूरी बदलाव के निर्धारण में यह खोज उपयोगी हो सकती है।

विभिन्न कोशकीय तनाव के कारण इंसुलिन की संरचना और उसका कार्य प्रभावित होता है जिससे मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मोटापे से ग्रस्त लोगों में इंसुलिन क्रिया को बढ़ाने में एससीजीएन प्रोटीन की भूमिका की व्याख्या की है। शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि अग्न्याशय द्वारा स्रावित इंसुलिन क्रियाओं को बढ़ाने और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में यह प्रोटीन कैसे मदद करता है।

हैदराबाद स्थित सीएसआईआर-कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) केवैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में एससीजीएन प्रोटीन का परीक्षण ऐसे चूहों पर किया गया है जिन्हें मधुमेह से ग्रस्त किया गया था। चूहों को इस प्रोटीन से युक्त इंजेक्शन दिए जाने पर उनके वजन और रक्त में अतिरिक्त इंसुलिन में कमी देखी गई है। इसके साथ ही, एससीजीएन से उपचारित चूहों में हानिकारक एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल के स्तर और यकृत कोशिकाओं में लिपिड का जमाव कम देखा गया है।

शोधकर्ताओं का नेतृत्व कर रहे डॉ योगेंद्र शर्मा ने बताया कि मधुमेह के दौरान इंसुलिन संश्लेषण के नियंत्रण, उसके परिपक्व होने, स्राव और संकेत प्रणाली से जुड़ी प्रक्रियाओं को अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। एससीजीएन इंसुलिन से बंधकर कोशकीय तनाव से बचाता है। इंसुलिन की स्थिरता और इसकी क्रियाओं को बढ़ाने में भी एससीजीएन की भूमिका को प्रभावी पाया गया है।

मधुमेह का परस्पर संबंध प्रायः डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसे तंत्रिका तंत्र के विकारों से होता है। एससीजीएन की बेहद कम मात्रा अल्जाइमर के मरीजों के मस्तिष्क में पायी जाती है। शोध पत्रिका बायोकेमिस्ट्री में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में डॉ शर्मा और उनकी टीम ने अल्फा-सिन्यूक्लिन प्रोटीन रेशों के गठन को रोकने में एससीजीएन की भूमिका को भी उजागर किया है। अल्फा-सिन्यूक्लिन प्रोटीन को तंत्रिका विकारों के पूर्व लक्षणों से जोड़कर देखा जाता है।

मधुमेह दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली प्रमुख बीमारियों में से एक है। भारत में मधुमेह से छह करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हैं। यह इंसुलिन उत्पादन, स्राव या उससे जुड़ी क्रियाओं में दोष पैदा करने वाला एक चयापचय विकार है जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।डॉ शर्मा का कहना है कि “एससीजीएन जल्दी ही नैदानिक मार्कर बन सकता है और मधुमेह प्रबंधन में इसकी क्षमता की विस्तृत जांच की जा सकती है।”

सीसीएमबी के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा ने कहा है कि “एससीजीएन के कैल्शियम के साथ बंध बनाने संबंधी गुणों का अध्ययन करते हुए वैज्ञानिकों को मधुमेह जीवविज्ञान में इस प्रोटीन के नए कार्य के बारे में पता चला है। यह इस बात का उदाहरण है कि मौलिक विज्ञान कैसे मूल्यवान अनुप्रयोगों को जन्म दे सकता है।”

यह अध्ययन शोध पत्रिका आईसाइंस में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में योगेद्र शर्मा के अलावा राधिका खंडेलवाल, आनंद शर्मा, अमृता चिदानंद, एम.जे. महेश कुमार, एन. साई राम और टी. अविनाश राज शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)

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