पतले-दुबले लोग भी हो सकते हैं मधुमेह का शिकार

नए अध्ययन से अब यह मिथक टूट गया है कि सिर्फ मोटापा बढ़ने से ही मधुमेह हो सकता है
Credit: Pixabay
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एक आम धारणा है कि मोटापे से ग्रस्त लोग मधुमेह का शिकार ज्यादा होते हैं, लेकिन भारतीय लोगों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि सामान्य वजन वाले दुबले-पतले लोग भी टाइप-2 मधुमेह का शिकार हो सकते हैं।

पश्चिमी देशों में मधुमेह सामान्यतः अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त लोगों को होता है। वहीं, भारत में मधुमेह के 20 से 30 प्रतिशत मरीज मोटे नहीं होते, बल्कि इनमें अत्यधिक दुबले-पतले लोग भी शामिल रहते हैं। इस नए अध्ययन से अब यह मिथक टूट गया है कि सिर्फ मोटापा बढ़ने से ही मधुमेह हो सकता है।

टाइप-2 डायबिटीज इंसुलिन के प्रतिरोध से होता है। ग्लूकोज को रक्त प्रवाह से हटाकर कोशिकाओं में स्थापित करने के लिए इंसुलिन हार्मोन संकेत भेजता है। शरीर में मौजूद मांसपेशियां, फैट एवं यकृत जब इन संकेतों के खिलाफ प्रतिरोधी प्रतिक्रिया देते हैं तो इंसुलिन प्रतिरोध की स्थिति पैदा होती है। इंसुलिन प्रतिरोध से ही मधुमेह होता है, जिसे डॉक्टरी भाषा में टाइप-2 डायबिटीज मेलेटस (डीएम) या फिर टी2डीएम कहते हैं।

इस अध्ययन में 87 मधुमेह रोगियों (67 पुरुष और 20 महिलाओं) के इंसुलिन के साथ सी-पेप्टाइड के स्तर को भी मापा गया है। अग्न्याशय में इंसुलिन का निर्माण करने वाली बीटा कोशिकाएं सी-पेप्टाइड छोड़ती हैं। सी-पेप्टाइड 31 एमिनो एसिड युक्त एक पॉलीपेप्टाइड होता है। सी-पेप्टाइड शरीर में रक्त शर्करा को प्रभावित नहीं करता। पर, डॉक्टर यह जानने के लिए इसके स्तर का पता लगाते हैं कि शरीर कितनी इंसुलिन का निर्माण कर रहा है।

इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि सी-पेप्टाइड का स्तर इंसुलिन के स्तर की तुलना में अधिक स्थिर होता है, जो बीटा कोशिकाओं की प्रतिक्रिया के परीक्षण की सुविधा प्रदान करता है। मरीजों के शरीर में वसा के जमाव, पेट की चर्बी और फैटी लिवर जैसे लक्षण देखने को मिले हैं, जो आमतौर पर बाहर से दिखाई नहीं देते हैं।

शोध में सामान्य वजन (25 से कम बीएमआई) और दुबले (19 से कम बीएमआई) भारतीयों के शरीर में वसा का उच्च स्तर, लिवर एवं कंकाल मांसपेशियों में अतिरिक्त वसा मापी गई है। मधुमेह रोगियों के शरीर और आंत में उच्च वसा के स्तर के साथ-साथ इंसुलिन और सी-पेप्टाइड का स्तर भी अधिक पाया गया है। जबकि, प्रतिभागियों की मांसपेशियों का द्रव्यमान बेहद कम पाया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इस तरह लोगों के लिवर और अग्न्याशय में छिपी वसा कम उम्र में भी इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ावा देकर मधुमेह को दावत दे सकती है। इंसुलिन सक्रियता बढ़ाने वाली दवाओं के उपयोग और वजन कम करने के तौर-तरीके अपनाने से ऐसे मरीजों को फायदा हो सकता है।

इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे फॉर्टिस-सीडॉक के चेयरमैन अनूप मिश्रा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “भारतीय लोगों में आमतौर पर सामान्य वजन के बावजूद उच्च शारीरिक वसा और मांसपेशियों का द्रव्यमान कम होता है। उनका मोटापा बाहर से देखने पर भले ही पता न चले, लेकिन चयापचय से जुड़े महत्वपूर्ण अंगों, जैसे- अग्न्याशय और लिवर में वसा जमा रहती है। ऐसी स्थिति में इंसुलिन हार्मोन अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा पाता और रक्त शर्करा का स्तर बढ़ने लगता है।”

शोधकर्ताओं में अनूप मिश्रा के अलावा, शाजित अनूप, सूर्य प्रकाश भट्ट, सीमा गुलाटी और हर्ष महाजन शामिल थे। इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका डायबिटीज ऐंड मेटाबॉलिक सिंड्रोम: रिसर्च ऐंड रिव्यूज में प्रकाशित किए गए हैं। (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

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