
अर्थशास्त्री एवं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ग्लोबलाइजेशन व डेवलपमेंट के प्रोफेसर इयान गोल्डिन ने कोरोना की वर्तमान महामारी की भविष्यवाणी अपनी किताब “द बटरफ्लाई डिफेक्ट : हाउ ग्लोबलाइजेशन क्रिएट्स सिस्टमिक रिस्क एंड वाट टू डू अबाउट इट” में पहले ही कर दी थी। उन्होंने विभा वार्ष्णेय से वैश्वीकरण और महामारियों पर बात की-
क्या यह महामारी बताती है कि हमें वैश्वीकरण पर विचार करना चाहिए?
मैं लंबे समय से महसूस कर रहा हूं कि वैश्वीकरण पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। दरअसल, हम सोचते हैं कि वैश्वीकरण बहुत अच्छा है क्योंकि यह लोगों को गरीबी से बाहर निकालता है, अवसर पैदा करता है, टीके और दवाइयां, नौकरियां और पैसे देता है। इसकी वजह से ही भारत ने कई अन्य विकासशील देशों की तरह तेजी से प्रगति की है। इतना ही नहीं वैश्वीकरण के चलते विचारों, प्रौद्योगिकियों, कौशल, वस्तुओं एवं सेवाओं और अन्य देशों के साथ वित्तीय आदान-प्रदान होता है। लेकिन यह बहुत खतरनाक भी है और इसका डरावना पक्ष भी है। मैं वैश्वीकरण को अच्छा और बुरा दोनों मानता हूं। लेकिन इसका फायदा लेने के लिए जोखिमों के उचित प्रबंधन लिए भी तैयार रहना चाहिए। लेकिन हम देख रहे हैं कि लोग खतरों का प्रबंधन नहीं कर रहे हैं। इससे वैश्वीकरण खतरनाक बन रहा है। महामारियां इसी का नतीजा हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन का दबदबा, 140 करोड़ पर्यटक और हर साल दुनिया भर के व्यापारिक यात्री अच्छी चीजों के साथ बुरी चीजें भी फैला रहे हैं। इसे कोविड-19 जैसी महामारियों से समझा जा सकता है। मुंबई और वुहान जैसे शहरों में तेजी से विकास किया। यहां हवाई अड्डे हैं। अगर यहां कुछ होता है तो इसका असर केवल कुछ दिनों में पूरी दुनिया में दिखाई देगा। महामारी में भी हम यही देख रहे हैं। ऐसा प्रसार केवल महामारी में नहीं देखा गया बल्कि 2008 के वित्तीय संकट में यह हुआ था। दुनियाभर में फैले साइबर वायरस के रूप में भी यह देखा जा सकता है। तेजी से होते विकास के अनचाहे परिणाम जलवायु परिवर्तन और भूमंडलीकरण के रूप में दिख रहे हैं। इसका जवाब डी-ग्लोबलाइजेशन नहीं है। इसका जवाब ऊंची दीवारों का निर्माण भी नहीं है। भारत, चीन और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों में कोई दीवार इतनी ऊंची नहीं है जो भविष्य में बड़े खतरों से बचा सके। ये खतरे जलवायु परिवर्तन, महामारियों और वित्तीय संकट के हैं। ये ऊंची दीवारें केवल विचारों, प्रौद्योगिकियों, टीकों और वित्त को बाहर रख सकती हैं। वैश्वीकरण से जो चीज गायब है, वह है राजनीतिक वैश्वीकरण और मानव वैश्वीकरण। हमें यह जानने की जरूरत है कि दुनिया उतनी ही मजबूत है, जितनी इसकी सबसे कमजोर कड़ियां। दुनिया में ऐसे भी देश हैं जो संयुक्त राष्ट्र को पीठ दिखा रहे हैं। यह 21वीं सदी में ठीक नहीं है। वैश्विक एजेंसियां अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं, लेकिन उनके शेयरधारक, सरकारें उन्हें सुधार और सशक्त नहीं कर रही हैं। यही चुनौती है।
आपको भविष्य में ग्लोबलाइजेशन या डी ग्लोबलाइजेशन में से किसकी उम्मीद नजर आती है?
यह इस पर निर्भर करता है कि आप वैश्वीकरण को कैसे परिभाषित करते हैं और किस बारे में बात कर रहे हैं। यदि आप एशिया के संदर्भ में बात कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में तेज वृद्धि देखेंगे। महामारी खत्म होने के बाद ये अर्थव्यवस्थाएं उभर जाएंगी। हम अन्य स्थानों में भी वृद्धि देखेंगे, लेकिन यह वृद्धि धीमी होगी। हम डी-ग्लोबलाइजेशन की ओर नहीं जा रहे हैं, बस एक अलग प्रकृति के वैश्वीकरण में प्रवेश कर रहे हैं। हम विनिर्माण व्यापार में कमी, लेकिन सेवाओं के व्यापार में बढ़ोतरी देखेंगे। एशियाई देश वैश्वीकरण से लाभांवित होने की चाहत रखते हैं। इसमें बदलाव नहीं होने वाला। अगर बदलाव होता है तो यह हानिकारक होगा। इसमें शक नहीं है कि हमें वैश्वीकरण के जोखिमों के प्रबंधन के लिए नीतियों की भी आवश्यकता है।
हम भविष्य में यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि संक्रामक और जूनोटिक बीमारियां एशियाई देशों में महामारी का रूप न लें।
महामारियों को नियंत्रित करने के लिए देशों को निगरानी तंत्र और क्षमता विकसित करने की जरूरत है। जब सरकारें संसाधनों का आवंटन करती हैं तो सेना को स्वास्थ्य व महामारियों को रोकने से अधिक प्राथमिकता मिलती है। हमें इस प्रवृत्ति को बदलने और दुनिया के खतरों को समझने की जरूरत है। हमें निगरानी और संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। हमें साफ सफाई में निवेश और मलिन बस्तियों व अनधिकृत बस्तियों को भी दुरुस्त करना होगा। साथ ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में रिसर्च की भी जरूरत है। इसके लिए व्यवहार में बदलाव बहुत जरूरी है। उदाहरण के लिए लोगों को अपने चेहरे को ज्यादा नहीं छूना चाहिए। उन्हें बार-बार हाथ धोना चाहिए। इस तरह के उपाय संक्रामक रोगों के खतरे को कम कर सकते हैं। वर्तमान महामारी ने लोगों को इन उपायों के प्रति जागरूक किया है। मुझे उम्मीद है कि हम इस महामारी को सीखने के अवसर के रूप में लेंगे, ताकि भविष्य में हम अन्य महामारी से बच सकें। साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन जैसे जोखिमों का बेहतर प्रबंधन कर सकें।