मौन महामारी: आयोडीन वाला नमक बनाम लो-सोडियम नमक
नमक के संदर्भ में अनेक विमर्श हैं. यह गांधी के नमक सत्याग्रह से लेकर बाजारवाद के दौर में इसके 'नमक हो तो टाटा का’ जैसे विज्ञापनों से देखा-समझा जा सकता है। साहित्य में देखें तो मुंशी प्रेमचंद की ‘नमक का दारोगा’, नमक को सरकारी सेवा में सत्यनिष्ठा से जोड़कर देखने का एक बड़ा दस्तावेज है। ‘नमक का सैरियत चुकाना, जैसे मुहावरे तो संबंधों के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाने का सबसे प्रचलित तरीका रहा है। हासिये के समाज के अधिकारों की वकालत करने वाली लेखिका महाश्वेता देवी की कहानी 'नमक', नमक के बहाने ओरांव-कोल जनजातीय समाज के व्यथा की कथा है। यानि, नमक मात्र एक खाद्य पदार्थ नहीं, अपितु यह सामाजिक संरचना के ताने-बाने को बुनने वाली एक इकाई भी है, इसके बिना भारतीय समाज, संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती।
कुछ ही समय पहले आईसीएमआर-नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियॉलजी की नमक के सन्दर्भ में एक रिपोर्ट अहम् है, जो अधिक और गुणवत्ताहीन नमक के सेवन के चलते हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले वाले गम्भीर दुष्प्रभावों की तरफ ध्यान आकर्षित करती है।
उसके एक अंग 'नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियॉलजी' के अनुसार- "भारतीय लोग ज्यादा नमक का सेवन करते हैं, जो अब 'साइलेंट सॉल्ट एपिडेमिक' बन चुका है। इसके असंतुलित और अधिक मात्रा में सेवन करने से भारत के ज्यादातर लोग हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक, कार्डियो-वैस्क्युलर बीमारियों, गुर्दा रोगों एवं अन्य अनेक गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, खासकर बच्चे।"
पैरासेल्सस (1538) ने एक बात कही थी जो विष विज्ञान का मूलभूत सिद्धांत बना कि, "सभी वस्तुएं विष हैं, और कुछ भी विषविहीन नहीं है; यह वस्तु की मात्रा पर निर्भर करता है कि वह विष होगी या औषधि।" पैरासेल्सस की यह उक्ति नमक के सन्दर्भ में भी उचित प्रतीत होती है कि उसकी कितनी मात्रा मानव शरीर के लिए औषधीय गुण युक्त होगी. नमक जीवनदायी हैं, शरीरक्रिया को नियमित और नियंत्रित करने हेतु भी जरूरी हैं। हमारे खान-पान में सोडियम का सबसे प्रमुख स्रोत है। हमारे शरीर को कई तरह की प्रक्रियाओं के लिए सोडियम की ज़रूरत होती है। कोशिकाएं ठीक से काम करें।
शरीर में मौजूद फ़्लूइड्स (तरल पदार्थ) और इलेक्ट्रोलाइट्स संतुलित रहें और ब्लड प्रेशर संतुलित रहे, एसिड बेस-भार साम्य, हार्मोन की आवश्यक सामग्री, शारीरिक चुस्ती, आस्रवण अवस्था, एंजाइम सिस्टम, देह में सेल-मेम्ब्रेन और कैपिलरी पर्मियेबिलिटी आदि नियंत्रण में रहे, ये सब काम सोडियम की वजह से ही मुमकिन हो पाते हैं, लेकिन हमारे शरीर के लिये इतने महत्वपूर्ण तत्व के बारे में हम लोग कम जागरूक हैं। जिसके करण जिसे हम औषधि समझ कर खा रहे होते हैं वही विष जैसा प्रभाव उत्त्पन्न करती जा रही है।
'फार्च्यून बिज़नेस इनसाइट्स,' के अनुसार वैश्विक नमक का व्यापार वर्ष 2024 में 25.98 बिलियन डॉलर का था. वर्ष 2025 में इस आँकड़े के 26.92 बिलियन डॉलर तक पहुंचने और 2032 तक 36.13 बिलियन डॉलर होने की पूरी संभावना है। सोचिए दुनियाभर में लोग नमक को उद्योग धंधों, खाद्य प्रसंस्करण, केमिकल बनाने, जल शोधन, घरेलू उपभोग और अन्य कार्यों में कितना ज्यादा खपा रहे हैं।
भारत में अगर देखें तो सॉल्ट कमिश्नर के अनुसार देश में वर्ष 2022-23 में कुल 391.13 लाख टन उत्पादित नमक में से 74 लाख टन औसतन घरेलू और 125 लाख टन औद्योगिक उपयोग में खपाया गया। हमारा देश आयोडीन डेफिशिएंसी डिसऑर्डर्स(आईडीडी) के समूल उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है तथा यूनिवर्सल सॉल्ट आयोडाइज़ेसन और कंजम्पशन समेकित कंट्रोल प्रोग्राम की नीति का समर्थक भी है।
यह प्रयास नेशनल आयोडीन डेफिशिएंसी डिसऑर्डर्स के अंतर्गत है। आईसीएमआर-एनआईएन के तकनीकी सहयोग से नमक का 'डबल फोर्टीफिकेशन' (डीएफएस), जिसमें आयोडीन और आयरन दोनों को नमक के माध्यम से वितरित करके देश से 'आयरन डेफिशिएंट एनिमिया' को समाप्त करने में मदद मिली। भारत ने 1992 में यूनिवर्सल आयोडाइज़ेशन की योजना अंगीकार करते हुए 1997 में आयोडीन-विहीन नमक को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था।
एक शोध के अनुसार यह प्रयास जनस्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने और उनके शिक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किये गए थे। एक अन्य संस्था ब्लू वीव कंसल्टिंग' ने 2025 के अपने अध्ययन में बताया है कि भारत घरेलू औद्योगिक जरूरतों के लिए 12.5 मिलियन टन और 55 देशों को निर्यात करने के लिए 10 मिलियन टन समुद्री नमक का उत्पादन करता है।
इसका एक दूसरा भी रूप है- 'रॉक सॉल्ट'. भारत में रॉक सॉल्ट मार्केट वित्तीय वर्ष 2024 में 315 मीट्रिक टन का था जिसके वित्तीय वर्ष 2032 में 448.07 मीट्रिक टन होने की संभावना है। इसमें एक और रोचक पहलू यह है कि हम एक ओर तो नमक की खपत और उत्पादन को निरंतर बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प ले कर चल रहे हैं कि 2025 तक सोडियम के सेवन के स्तर को वर्ष 2010 के बेस लाइन डेटा की तुलना में 30% तक घटा देंगे।
यह कितना विरोधाभाषी है! न्यूजक्लिक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया 2025 तक सोडियम सेवन को 30 प्रतिशत तक कम करने के अपने वैश्विक लक्ष्य को हासिल करने से पीछे छूटती नजर आ रही है। उत्पादन, उपभोग, उपभोक्ता, बाज़ार, जनसंख्या, माँग-आपूर्ति सब बढ़ रहे हैं। नमक के तीनों रूपों- सफेद, काला, सेंधा नमक में बिकने की होड़-सी मची है. खूब प्रचार है. बाज़ार और भौतिकतावादी सोच की वजह से हम मानक से अधिक मात्रा में नमक का सेवन कर रहे हैं।
वैज्ञानिक सहमत हैं कि लोगों की तम्बाकू और पानमसाला खाने की प्रवृत्ति भी नमक के अधिक सेवन के लिए जिम्मेदार है। एक अन्य शोध के अनुसार इन दोनों ही नशीले पदार्थों की लत के कारण इंसानी टेस्ट बड्स नमक के स्वाद और उसकी मात्रा का सही-सही आकलन करने में असफल हो रही है।
इन सबके बीच सबसे दुखद पक्ष तो यह है कि नमक की गुणवत्तापूर्ण खपत आज भी भारत के एक बड़े हिस्से के लोगों के द्वारा नहीं की जाती. आईसीएमआर-एनआईई के एक रिपोर्ट के अनुसार, "सोडियम का कम सेवन रक्तचाप कम करने और समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है, जिससे कम सोडियम वाले विकल्प, खासकर उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए, एक सार्थक बदलाव बन जाते हैं।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया है कि सिर्फ़ 'लो-सोडियम सॉल्ट' (एलएसएस) पर लौटने से रक्तचाप औसतन 7/4 मिलीमीटर ऑफ मरकरी तक कम हो सकता है। देखने में यह एक छोटा-सा बदलाव है लेकिन इसका लोक-स्वास्थ्य पर व्यापक असर होता है।
‘एलएसएस’ सोडियम के खपत को नियंत्रण में रखने का यह एक बहुत ही प्रभावशाली तरीका हो सकता है, लेकिन जरूरी है कि यह आसानी से उपलब्ध हो। रिपोर्ट बताती है कि एलएसएस केवल 28 प्रतिशत खुदरा दुकानों में, 52 प्रतिशत तक सुपरमार्केट में तथा छोटे ग्रॉसर शॉप में केवल 4 प्रतिशत तक ही उपलब्ध है। रिपोर्ट इस तथ्य की तरफ़ भी इशारा करती है कि एलएसएस की कीमत सामान्य आयोडीन-युक्त नमक की तुलना में दोगुने से भी अधिक है जिसका शीघ्रता से निराकरण की आवश्यकता है।
देश की आधी से अधिक आबादी तक एलएसएस उपलब्ध करा पाना और आम जन, जो इसकी अधिक कीमत के कारण उपभोग नहीं कर पा रहे, उनतक इसे पहुंचाना राज्यों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है जिसपर सरकारों को गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसपर जागरूकता फ़ैलाने से लेकर इसकी सहज और सस्ती उपलब्धतता को सुनिश्चित करना भी सरकारों की एक बड़ी जिम्मेवारी है। इस प्रक्रिया में जनवितरण प्रणाली के द्वारा सस्ते और गुणवत्तापूर्ण नमक का वितरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। नमक जैसे पदार्थ को बाजारू शक्तियों के चंगुल से निकाल कर राज्यों को इसके उत्पादन और वितरण पर स्वय पहल करनी चाहिए ताकि जन-जन तक गुणवत्तापूर्ण और सस्ते नमक को पहुँचाया जा सके।
आभार: (यह आलेख इलाहाबाद विश्वविद्यालय की माननीया कुलपति प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव और उन तमाम शिक्षकों एवं शोधार्थियों को समर्पित है जो अपनी-अपनी विधा में लोक-स्वास्थ्य के प्रति अपने-अपने तरीके से अभियान चला रहें हैं)