कोविड-19 वायरस के खुद में बदलाव करने की दर जितनी सोची गई उससे 67 फीसदी अधिक है

वायरस अपने आपको कैसे बदलता है? यदि कोई मरीज कुछ हफ्तों से अधिक समय तक कोविड-19 से पीड़ित रहता है, तो शरीर में वायरस विकसित हो सकता है जो संभावित रूप से नए रूपों को जन्म दे सकता है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक कोविड-19 की वजह से बनने वाला वायरस सप्ताह में लगभग एक बार अपने आपको बदल या उत्परिवर्तन (म्युटेट) कर रहा है। यह पहले जैसा अनुमान लगाया गया था उस दर से काफी अधिक है। अध्ययन से पता चलता है कि नए वायरस के रूप पहले की तुलना में अधिक तेजी से उभर सकते हैं। यह अध्ययन बाथ और एडिनबर्ग विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया है।

सार्स-सीओवी-2 वायरस जो कोविड-19 को जन्म देता है, इसके बारे में पहले हर दो सप्ताह में एक बार रूप बदलने के बारे में सोचा गया था। हालांकि बाथ विश्वविद्यालय में मिलनर सेंटर फॉर इवोल्यूशन और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में एमआरसी ह्यूमन जेनेटिक्स यूनिट के नए शोध से पता चलता है कि इस तरह लगाए गए अनुमानों ने कई वायरस के अपने आप में किए गए बदलावों को नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन इसे कभी भी अनुक्रमित नहीं किया गया था।

वायरस नियमित रूप से अपने रूप में बदलाव करते हैं, उदाहरण के लिए जब वायरस अपने आप को दोहराता है उस दौरान जीनोम की कॉपी बनाने में गलतियां की जाती हैं। आमतौर पर जब हम प्राकृतिक चयन पर विचार करते हैं, तो हम नए बदलावों के बारे में सोचते हैं, जिनका लाभ और प्रसार होता है, जैसे कि कोविड-19 के अल्फा और डेल्टा वेरिएंट हैं। इसे डार्विनियन चयन या सकारात्मक चयन के रूप में जाना जाता है।

हालांकि, अधिकांश बदलाव वायरस के लिए हानिकारक होते हैं और इसके जीवित रहने की संभावना को कम कर देते हैं। इसे शोधन या नकारात्मक चयन कहा जाता है। ये नकारात्मक बदलाव रोगी में अनुक्रमित होने के लिए लंबे समय तक जीवित नहीं रहते हैं, इसलिए बदलाव की दर में इनकी गणना नहीं हो पाती है।

इन गायब हुए बदलावों के आधार पर टीम का अनुमान है कि वायरस में वास्तविक बदलाव या उत्परिवर्तन दर पहले की तुलना में कम से कम 49 से 67 फीसदी तक है। अध्ययन के निष्कर्ष, वायरस को रोकने के लिए संघर्ष करने वाले प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों को अलग करने की आवश्यकता को नियंत्रित करते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि यह वायरस बदलता कैसे है? यदि कोई मरीज कुछ हफ्तों से अधिक समय तक कोविड-19 से पीड़ित रहता है, तो वायरस विकसित हो सकता है जो संभावित रूप से नए रूपों को जन्म दे सकता है। अल्फा वैरिएंट के वायरस का विकास एक ऐसे व्यक्ति के भीतर हुआ माना जाता है जिसके शरीर से संक्रमण खत्म नहीं हो पा रहा था।

यह पूरी तरह से खराब नहीं है क्योंकि अधिकांश व्यक्तियों का शरीर वायरस में इतना अधिक बदलाव करने से पहले इसे फैलाते हैं और साफ करते हैं, जिसका अर्थ है कि एक रोगी के भीतर विकास की संभावना आमतौर पर उतनी अधिक नहीं होती है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि हालांकि बदलाव की दर के इस नए अनुमान से पता चलता है कि ऐसे व्यक्तियों के भीतर वायरस के विकास के लिए जितना हमने अनुमान लगाया था, उससे कहीं अधिक गुंजाइश है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि टीम यह भी पता लगा सकती है कि ये वायरस में हुए बदलाव क्यों गायब थे। प्रोफेसर हर्स्ट ने कहा सार्स-सीओवी-2 के बड़ी संख्या में जीनोम के साथ अब अनुक्रमित होने के बावजूद बदलावों की संख्या क्यों गायब हैं, इस तथ्य के बावजूद कि हम उनका पूरी तरह से अध्ययन नहीं कर सकते हैं, दोनों के बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं।

अध्ययनकर्ता ने वायरस के बदलाव और उसके गायब होने के बारे में एक उदाहरण देकर समझाया - द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका जर्मनी के ऊपर से उड़ान भरते हुए अपने बहुत से विमानों को लापता होते हुए देख रहा था। वे यह पता लगाना चाहते थे कि इन्हें बचाने के लिए, इनमें बुलेट प्रूफ सामग्री कहां लगानी चाहिए। उन्होंने यह देखने के लिए, लौटने वाले विमानों को देखा कि उन्हें कहां क्षतिग्रस्त किया गया था, यह तर्क देते हुए कि सही सलामत विमानों में गोली लगने वाली जगहें कमजोर थी। इन जगहों पर गोली लगने के कारण विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गए और इसलिए वे लौट नहीं पाए।

अध्ययनकर्ता ने कहा  इसी तरह हम सार्स-सीओवी-2 में वायरस के गायब रूपों की रूपरेखा तैयार करने के लिए उसी तरह की प्रक्रिया का उपयोग कर सकते हैं। अनुक्रमित जीनोम लौटने वाले विमान हैं। हम उन सभी विमानों के अनुपात पर काम कर सकते हैं जो वायरस में बदलाव एक तरह की गोली लगना है जिनमें से कुछ लौटते हैं और कुछ नहीं ऐसा क्यों हैं?

उन्होंने पाया कि अधिकांश नकारात्मक चयन अनुमानित कारणों से थे, वायरस में बदलाव करने वाले जीन को छोटा बनाते हैं या वे प्रोटीन बनाते हैं, जैसे स्पाइक प्रोटीन जो बहुत गलत तरीके से काम करते हैं। प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. अताहुल्पा कैस्टिलो मोरालेस ने कहा कि वायरस जो प्रोटीन बनाता है वह अमीनो एसिड से बना होता है। हमारे जीन की तरह, वायरस के जीन में निर्देश होते हैं कि किस अमीनो एसिड को एक साथ और किस क्रम में चिपकना है।

दिलचस्प बात यह है कि हमने पाया कि चयन ने उन बदलावों को पसंद किया जो अमीनो एसिड का उपयोग करते थे जो अधिक स्थिर होते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें बार-बार नहीं बनाना पड़ता है और आपूर्ति को बनाए रखने के लिए उतनी ऊर्जा खर्च नहीं होती है।

जीनोम बायोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि हमें लगता है कि हम इसे देख रहे हैं क्योंकि वायरस तेजी से दोहराने के लिए मजबूत चयनात्मक दबाव में है। इसलिए लंबे समय तक खुद के जीवन (शेल्फ-लाइफ) के साथ अमीनो एसिड का उपयोग करने का मतलब है कि आपको आपूर्ति के लिए इंतजार करने की संभावना कम है।

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