हम कोविड-19 वैश्विक महामारी के दसवें महीने में पहुंच गए हैं। लेकिन हम अब तक अपने जीवन पर पड़ने वाले इसके तमाम प्रभावों को नहीं समझ पाए हैं। हम केवल स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले इसके तात्कालिक प्रभावों को ही ठीक से जान रहे हैं, क्योंकि हम प्रत्यक्ष रूप से इनसे प्रभावित होते हैं। इस अभूतपूर्व संकट ने हमारे जीवन के सभी पहलुओं पर असर डाला है। इस वायरस के कारण हम भविष्य को अनिश्चितताओं से भरा देख रहे हैं। यहां अक्सर कम पूछा जाने वाला एक सवाल यह उभरकर सामने आता है कि महामारी के दौरान जन्म लेने वाली पीढ़ी इस दौर को कैसे याद रखेगी? हम इस पीढ़ी को महामारी की पीढ़ी कह सकते हैं और इसमें वे बच्चे शामिल हैं जिनकी उम्र पांच साल तक है। इस पीढ़ी का महत्व इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 2040 तक यह देश के लगभग 46 प्रतिशत कार्यबल का हिस्सा होगी।
दुनियाभर में विकास की व्यापक असमानता के बावजूद महामारी की पीढ़ी ने एक दुनिया में जन्म लिया है जो किसी भी समय से अधिक संपन्न और स्वस्थ है। हम जैसी वयस्क पीढ़ी के विपरीत हाल ही में पैदा हुई पीढ़ी के जेहन में महामारी के दुखते घाव नहीं होंगे। क्या इसका मतलब है कि यह पीढ़ी के इतिहास की पाठ्यपुस्तक में महामारी के बारे में जानेगी? ठीक वैसे ही जैसे हमें किताबों से 1918-20 में फैली स्पेनिश फ्लू महामारी के बारे में पता चला था।
इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमें इतिहास में झांकना होगा। वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो बच्चे 1918 के दौरान पैदा हुए या गर्भ में थे, उन्होंने कम शिक्षा प्राप्त की और वे गरीब भी रहे। 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान गर्भवती माताओं ने कम वजन वाले शिशुओं को जन्म दिया, खासकर उन परिवारों में जहां गरीबी थी। 1998 में अल नीनो इक्वाडोर में विनाशकारी बाढ़ का कारण बना। इस अवधि के दौरान पैदा हुए बच्चों का वजन कम था और उनमें स्टंटिंग 5 से 7 साल तक जारी रही। इन तमाम प्रभावों का एक सामान्य निष्कर्ष यह निकलता है कि आपदाओं के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर होने का असर कई रूपों में सामने आता है।
इसलिए ऊपर पूछे गए प्रश्न का उत्तर डरावना है। प्रारंभिक संकेत बताते हैं कि महामारी में पैदा होने वाली पीढ़ी की स्थिति पुरानी पीढ़ियों से भिन्न नहीं होगी। हाल में जारी और विश्व बैंक द्वारा तैयार वैश्विक ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स (एचसीआई) बताता है कि महामारी की पीढ़ी इसकी सबसे बुरी शिकार होगी। 2040 में वयस्क होने वाली यह पीढ़ी अविकसित (स्टंटेड) होगी और ह्यूमन कैपिटल के मामले में पिछड़ जाएगी। हो सकता है कि दुनिया के लिए यह विकास की सबसे मुश्किल चुनौती बन जाए।
एचसीआई में उस मानव पूंजी को मापा जाता है जिसे आज जन्म लेने वाला बच्चा अपने 18वें जन्मदिन पर पाने की उम्मीद रखता है। इसमें स्वास्थ्य और शैक्षणिक योग्यता शामिल होती है। ये बच्चे के भविष्य की उत्पादकता पर असर डालती हैं।
कोविड-19 पुरानी महामारियों की तरह गर्भवती मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर ही असर नहीं डालेगा, बल्कि महामारी के आर्थिक प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चों सहित इस पीढ़ी को लंबे समय तक परेशान करेंगे। इसका मुख्य कारण यह है कि इन बच्चों के परिवार स्वास्थ्य, भोजन और शिक्षा पर अधिक खर्च नहीं कर पाएंगे। इससे शिशु मृत्युदर बढ़ेगी और जो बचेंगे वे अविकसित रहेंगे। इसके अलावा लाखों बच्चे और गर्भवती महिलाएं बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम होंगे।
एचसीआई के अनुमानों के मुताबिक, कम और मध्यम आय वाले 118 देशों में शिशु मृत्युदर 45 प्रतिशत बढ़ जाएगी। विश्लेषण बताता है कि सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने से शिशु मृत्युदर में 4.5 प्रतिशत गिरावट आती है। विभिन्न अनुमान बताते हैं कि महामारी के कारण अधिकांश देश जीडीपी में भारी नुकसान से जूझ रहे हैं। इससे संकेत मिलता है कि आगे शिशु मृत्युदर की क्या स्थिति होगी।
यही वह समय है जब दुनिया कुपोषण और गरीबी दूर करने के लिए गंभीर प्रयास कर सकती है। नया इंडेक्स स्पष्ट करता है कि भले ही महामारी एक अस्थायी झटका है, लेकिन यह नई पीढ़ी के बच्चों पर गहरा असर डालने वाला है। दुनिया को इस समय जन्म लेने वाली पीढ़ी के लिए गंभीर हो जाना चाहिए।