डेल्टा के खिलाफ बचाव में मददगार साबित होगा ओमिक्रॉन वेरिएंट!

नए अध्ययन के अनुसार, जो लोग ओमिक्रॉन वेरिएंट के संक्रमण से उबर चुके हैं, वे डेल्टा वेरिएंट से बाद के संक्रमणों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं
फोटो: विकास चौधरी
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ओमिक्रॉन वेरिएंट डेल्टा के खिलाफ बचाव में मदद कर सकता है। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। यह अध्ययन दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अफ्रीका स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने किया है। 

दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में किए गए इस नए अध्ययन के अनुसार जो लोग नए ओमिक्रॉन कोरोनावायरस के संक्रमण से उबर चुके हैं, वे डेल्टा वेरिएंट से बाद के संक्रमणों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं।

यदि इस अध्ययन के आगे के प्रयोग उक्त निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं तो भविष्य में इस महामारी से बचने के लिए एक संभावित विकल्प का मिलना संभव है। ध्यान रहे कि थोड़े समय के लिए ओमिक्रॉन मामलों में वृद्धि होने से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं और स्वास्थ्य देखभाल की प्रणालियों पर भारी दबाव बन गया है। 

लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि भविष्य में ओमिक्रॉन का संक्रमण बढ़ता है तो भी अस्पतालों में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या कम रह सकती है। यही नहीं यह डेल्टा वेरिएंट से होने वाली मौतों की संख्या को भी कम कर सकती है।

दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अफ्रीका हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट में इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले वायरोलॉजिस्ट एलेक्स सिगल ने कहा कि वास्तव में इस अध्ययन से पता चलता है कि ओमिक्रॉन भविष्य में डेल्टा के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म कर सकता है।

वह आगे कहते हैं कि डेल्टा को बाहर करना वास्तव में एक अच्छी बात है और हम कुछ ऐसा देख रहे हैं जिसके साथ हम अधिक आसानी से रह सकते हैं और जो हमें पिछले वेरिएंट की तुलना में कम नुकसान पहुंचाएगा। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार संस्थान की वेबसाइट पर प्रकाशित यह अध्ययन अभी तक किसी भी वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है।

विश्व के स्वतंत्र वैज्ञानिकों के समूह ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीकी प्रयोगशाला का यह प्रयोग अपनी प्रारंभिक निष्कर्ष में तो काफी सकारात्मक और अच्छा संकेत दे रहा है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के महामारी विज्ञानी कार्ल पियर्सन ने कहा कि यह निष्कर्ष तो इंग्लैंड में वर्तमान में जो घट रहा है उसी के अनुरूप है।

उन्होंने कहा कि ओमिक्रॉन आता है और तेजी से बढ़ता है लेकिन उसके इस प्रकार से आने के बाद यह पता चलता है कि डेल्टा की प्रवृत्ति में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है।

वहीं दूसरी ओर येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के महामारी विज्ञानी नाथन ग्रुबॉघ ने कहा कि हम देख रहे हैं कि ओमिक्रॉन तेजी से बढ़ रहा है जबकि दूसरी ओर डेल्टा के मामले में लगातार गिरावट दर्ज की जा है। इससे मुझे पता चलता है कि ओमिक्रॉन संक्रमित व्यक्तियों के मामले में डेल्टा को पछाड़ रहा है।

जब लोग दो साल पहले कोरोनावायरस से संक्रमित होने लगे तो एंटीबॉडी और प्रतिरक्षा कोशिकाओं ने शरीर को सुरक्षा प्रदान की। परिणामस्वरूप आने वाले महीनों में किसी व्यक्ति का पुन: संक्रमित होना बहुत मुश्किल था।

लेकिन 2020 के अंत में नए कोरोनावायरस वेरिएंट सामने आए। उनमें से कुछ जैसे अल्फा में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) थे जो उसे तेजी से फैलने में सक्षम बनाते थे। डेल्टा (2021 की गर्मियों में प्रमुखता से आया था) में उत्परिवर्तन था जिससे इसके फैलने की क्षमता बेहतर होती थी। टीके अभी भी डेल्टा के खिलाफ प्रभावी रहे हैं लेकिन उतना नहीं जितना वे पहले महामारी में थे।

जब नवंबर,2021 में ओमिक्रॉन का संक्रमण हुआ, तो यह डेल्टा की तुलना में भी तेजी से फैल गया। इसका प्रमुख गुण था कि यह जल्दी से प्रसारित होने में सक्षम था और इसके अलावा यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अधिक आसानी से फैलता है। ओमिक्रॉन की सबसे खतरनाक बात जो थी वह थी कि यह वायरस टीके लगाए गए लोगों और उन लोगों को भी संक्रमित करने में सक्षम था जो पहले के वायरस से बीमार हो गए थे।

इस अध्ययन के पूर्व डॉ. सिगल की टीम के साथ-साथ कई अन्य शोध समूहों ने टीकों और पहले के वेरिएंट से एंटीबॉडी को चकमा देने के लिए ओमाइक्रोन की क्षमता की पुष्टि की है। ऐसा करने के लिए उन्होंने उन लोगों के रक्त का विश्लेषण किया जिन्हें या तो टीका लगाया गया था या जो कोविड से ठीक हो गए थे। 

समय-समय पर  एंटीबॉडी जो डेल्टा और अन्य वेरिएंट के खिलाफ बहुत शक्तिशाली थे, ओमिक्रॉन के खिलाफ कमजोर साबित हुए। इससे यह समझाने में मदद मिली कि इतने सारे टीकाकरण वाले और पहले से संक्रमित लोग किस प्रकार से ओमिक्रॉन से संक्रमित हो रहे हैं, हालांकि यहां एक बात थोड़ा लोगों को राहत देने वाली थी कि यह ओमिक्रॉन का संक्रमण, डेल्टा संक्रमणों की तुलना में हल्का था।

दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन के मामलों में भारी उछाल आया है, लेकिन डॉ. सिगल और उनके सहयोगी अब तक केवल 13 रोगियों का ही अध्ययन कर पाए हैं। उनका कहना था कि छुट्टियों की अवधि के कारण यह बहुत मुश्किल था। क्योंकि किसी का भी वास्तव में अलग-अलग स्थानों पर रहना और फिर कोई भी इस अध्ययन का हिस्सा नहीं बनना चाहता था।

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