जीवाणुरोधी दवाओं की संख्या हुई 97, डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट की जारी

एएमआर तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी पर दवाओं का असर नहीं होता है, जिससे लोग बीमार हो जाते हैं और संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है जिसका इलाज करना मुश्किल होता है
एएमआर मुख्य रूप से रोगाणुरोधी दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग के कारण होता है, फिर भी, दुनिया भर में कई लोगों के पास आवश्यक रोगाणुरोधी दवाओं तक पहुंच नहीं है।
एएमआर मुख्य रूप से रोगाणुरोधी दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग के कारण होता है, फिर भी, दुनिया भर में कई लोगों के पास आवश्यक रोगाणुरोधी दवाओं तक पहुंच नहीं है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया भर में नैदानिक और पूर्व नैदानिक विकास में एंटीबायोटिक सहित जीवाणुरोधी एंटीबायोटिक पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट जारी की। हालांकि नैदानिक जीवाणुरोधी एंटीबायोटिक की संख्या 2021 में 80 से बढ़कर 2023 में 97 हो गई है, लेकिन गंभीर संक्रमणों के लिए नए, एंटीबायोटिक की तत्काल जरूरत है। अत्यधिक उपयोग के कारण एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं हो रहा है, उनकी जगह नई दवाओं को शामिल करना जरूरी है।

डब्ल्यूएचओ द्वारा इस तरह की रिपोर्ट पहली बार 2017 में जारी की गई थी, वार्षिक रिपोर्ट इस बात का मूल्यांकन करती है कि क्या वर्तमान अनुसंधान और विकास के दौर में मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक खतरा पैदा करने वाले दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों का ठीक से उपचार करती है या नहीं।

इसका उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) के लगातार बढ़ते खतरे का बेहतर ढंग से मुकाबला करने के लिए जीवाणुरोधी अनुसंधान और विकास को आगे बढ़ाना है।

एएमआर तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी पर दवाओं का असर नहीं होता है, जिससे लोग बीमार हो जाते हैं और संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है जिसका इलाज करना मुश्किल होता है, बीमारी यहां तक की मृत्यु हो जाती है।

एएमआर मुख्य रूप से रोगाणुरोधी दवाओं के दुरुपयोग और अति प्रयोग के कारण होता है, फिर भी, दुनिया भर में कई लोगों के पास आवश्यक रोगाणुरोधी दवाओं तक पहुंच नहीं है।

रिपोर्ट के हवाले से डब्ल्यूएचओ के एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के सहायक महानिदेशक डॉ. युकिको नाकातानी ने कहा, "एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध बदतर होता जा रहा है, फिर भी हम सबसे खतरनाक और घातक बैक्टीरिया से निपटने के लिए जरूरी तेजी से नए अग्रणी उत्पाद विकसित नहीं कर रहे हैं।"

"नवाचार की बहुत कमी है, फिर भी जब नए उत्पादों को अधिकृत किया जाता है, तब भी पहुंच एक गंभीर चुनौती है। सभी आय स्तरों के देशों में जीवाणुरोधी एंटीबायोटिक उन रोगियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं जिन्हें उनकी सख्त जरूरत है।"

न केवल विकास के दौर में बहुत कम जीवाणुरोधी हैं, यह देखते हुए कि शोध और विकास के लिए कितना समय चाहिए और वहां विफलता की आशंका बनी रहती है, बल्कि पर्याप्त नवाचार भी नहीं है। बीपीपीएल संक्रमणों से निपटने के लिए विकास के तहत 32 एंटीबायोटिक दवाओं में से केवल 12 को ही नया माना जा सकता है।

इसके अलावा इन 12 में से केवल चार ही कम से कम एक डब्ल्यूएचओ भारी रोगज़नक़ के खिलाफ़ सक्रिय हैं - बड़े बीपीपीएल की शीर्ष जोखिम श्रेणी है, 'उच्च' और 'मध्यम' प्राथमिकता से ऊपर है। पुरी श्रेणी में कमी है, जिसमें बच्चों के लिए उत्पाद, बाहरी रोगियों के लिए अधिक सुविधाजनक खाई जाने वाली और बढ़ती दवा प्रतिरोध से निपटने के लिए एंटीबायोटिक शामिल हैं।

जो पारंपरिक नहीं हैं उन जैविक एंटीबायोटिक, जैसे कि बैक्टीरियोफेज, एंटीबॉडी, एंटी-वायरलेंस एजेंट, प्रतिरक्षा-माड्यूलेटिंग एजेंट और माइक्रोबायोम-माड्यूलेटिंग एजेंट, एंटीबायोटिक दवाओं के विकल्प के रूप में तेजी से खोजे जा रहे हैं। हालांकि, गैर-पारंपरिक एंटीबायोटिक का अध्ययन और नियमन करना आसान नहीं है।

इन उत्पादों के नैदानिक अध्ययन और मूल्यांकन को सुविधाजनक बनाने के लिए और प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि यह निर्धारित करने में मदद मिल सके कि इन एजेंटों का चिकित्सकीय रूप से कब और कैसे उपयोग किया जाए।

एक जुलाई 2017 से नए स्वीकृत जीवाणुरोधी दवाओं को देखते हुए, 13 नए एंटीबायोटिक्स ने विपणन प्राधिकरण हासिल किया है, लेकिन केवल दो एक नए केमिकल वर्ग से संबंधित हैं और उन्हें अभिनव कहा जा सकता है, जो बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी और मनुष्यों के लिए सुरक्षित नए जीवाणुरोधी दवाओं की खोज में वैज्ञानिक और तकनीकी चुनौती को उजागर करते हैं।

इसके अलावा तीन गैर-पारंपरिक एंटीबायोटिक को अधिकृत किया गया है, ये सभी वयस्कों में एंटीबायोटिक उपचार के बाद आवर्ती क्लॉस्ट्रिडियोइड्स डिफिसाइल संक्रमण (सीडीआई) को रोकने के लिए आंत माइक्रोबायोटा को बहाल करने के लिए मल-आधारित उत्पाद हैं।

पिछले चार सालों में कई गैर-पारंपरिक नजरियों के साथ प्रीक्लिनिकल उत्पाद सक्रिय रहे हैं। इन उत्पादों का लक्ष्य ग्राम-नेगेटिव रोगजनकों पर रहता है, जो अंतिम उपाय यानी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।

ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया में उपचार का विरोध करने के नए तरीके खोजने की क्षमता शामिल होती है और वे आनुवंशिक सामग्री को आगे बढ़ा सकते हैं जो अन्य बैक्टीरिया को भी दवा प्रतिरोधी बनने में मदद करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ही रोगजनक को निशाना बनाने वाले जीवाणुरोधी एजेंटों की ओर बदलाव रुक गया है। एक ही रोगजनक को निशाना बनाने वाले एजेंट व्यापक रूप से उपलब्ध और किफायती, तेज निदान की जरूरत को बढ़ाते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इलाज किए जाने वाले संक्रमणों में वह  बैक्टीरिया मौजूद हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, अधिक पारदर्शिता और नए लेकिन चुनौतीपूर्ण परियोजनाओं के आसपास सहयोग की सुविधा होगी, वैज्ञानिकों और दवा बनाने वालों की मदद होगी और नए जीवाणुरोधी एंटीबायोटिक के लिए दवा विकास के लिए अधिक रुचि और धन उत्पन्न होगा।

नए जीवाणुरोधी एंटीबायोटिक विकसित करने के प्रयासों के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है कि उन्हें समान रूप से सुलभ बनाया जा सके, खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में। संक्रमणों की रोकथाम, निदान और उपचार के लिए गुणवत्तापूर्ण और किफायती उपकरणों तक सबकी पहुंच, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर एएमआर के प्रभाव को कम करने के लिए जरूरी है।

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