अफ्रीका में 63 फीसदी बढ़े जूनोटिक डिजीज के मामले, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने किया आगाह

विशेषज्ञों के अनुसार 75 फीसदी से ज्यादा संक्रामक रोग, जंगली या घरेलु जानवरों के साथ साझा किए रोगजनकों के कारण फैलते हैं
इबोला के 14वें प्रकोप के खत्म होने की घोषणा के बाद भगवान को शुक्रिया अदा करता डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो का एक नागरिक; फोटो: विश्व स्वास्थ्य संगठन
इबोला के 14वें प्रकोप के खत्म होने की घोषणा के बाद भगवान को शुक्रिया अदा करता डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो का एक नागरिक; फोटो: विश्व स्वास्थ्य संगठन
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि अफ्रीका में जानवरों से इंसानों में फैलने वाले रोग यानी जूनोटिक डिजीज के मामले बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी ताजा विश्लेषण के अनुसार पिछले एक दशक (2012-2022) में इन बीमारियों के मामलों में 63 फीसदी की वृद्धि हुई है।   

अपने इस विश्लेषण में डब्लूएचओ ने 2001 से 2011 में आए जूनोटिक डिजीज के मामलों की तुलना 2012 से 2022 में सामने आए मामलों से की है। इस विश्लेषण में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि अफ्रीका अफ्रीका जूनोटिक बीमारियों के बढ़ते प्रकोप का सामना कर रहा है।

उदाहरण के लिए मंकीपॉक्स वायरस भी उनमें से एक है जो पहले जानवरों में सामने आया था, उसके बाद इंसान भी इसके मरीज बनते जा रहे हैं। देखा जाए तो यह वायरस सिर्फ अफ्रीका ही नहीं पूरी दुनिया में पैर पसार रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस बीमारी के अब तक 60 से भी ज्यादा देशों में 9,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। गौरतलब है कि कल भारत (केरल) में भी इसका पहला मामला सामने आया था। जो स्पष्ट तौर पर दुनिया भर में इन बीमारियों के तेजी से होते प्रसार की ओर इशारा करता है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका में क्षेत्रीय निदेशक मात्शिदिसो मोएती का कहना है कि 75 फीसदी से ज्यादा संक्रामक रोग, जंगली या घरेलु जानवरों के साथ साझा किए रोगजनकों के कारण फैलते हैं। उनके अनुसार यह पैथोजन बीमारी के भारी बोझ के लिए जिम्मेवार हैं, जिसके परिणामस्वरूप हर साल 100 करोड़ से ज्यादा लोग बीमार पड़ते हैं जबकि दुनिया भर में लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।

हर साल दुनिया भर में 33 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रहीं हैं यह बीमारियां

एक अनुमान के मुताबिक यह बीमारियां दुनिया भर में हर साल करीब 33 लाख लोगों की जान ले रही हैं, जबकि पिछले 100 वर्षों में इनकी वजह से 7 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी हैं। यदि पिछले 100 वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो औसतन हर साल करीब 2 वायरस अपने प्राकृतिक वातावरण से निकलकर इंसानों में फैल रहे हैं, लेकिन प्रकृति के विनाश की बढ़ती दर इनके फैलने के खतरे को भी और बढ़ा रही है।

विश्लेषण से पता चला है कि 2001 से 2022 के बीच अफ्रीकी में 1,843 मामले सामने आए थे जब बीमारियों ने बड़े पैमाने पर लोगों को अपना निशाना बनाया था। आंकड़ों की मानें तो इनमें से तीस फीसदी घटनाएं जूनोटिक बीमारियों से जुड़ी थी। वहीं पिछले दो दशकों में इनकी संख्या में तेजी से इजाफा देखा गया है।

विशेष रूप से 2019-2020 में इनमें अच्छी खासी वृद्धि दर्ज की गई थी। जब ऐसी घटनाओं में जूनोटिक बीमारियों की हिस्सेदारी बढ़कर 50 फीसदी पर पहुंच गई थी।देखा जाए तो 70 फीसदी प्रकोपों की वजह इबोला वायरस और रक्तस्रावी वायरल बुखार था। वहीं अन्य 30 फीसदी मामलों के लिए डेंगू, एंथ्रेक्स, प्लेग और  मंकीपॉक्स जैसी अन्य जूनोटिक बीमारियां जिम्मेवार थी।

मंकीपॉक्स से जुड़े यदि नवीनतम आंकड़ों को देखें तो उनके अनुसार अप्रैल 2022 के बाद अफ्रीका में इसके मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि मूल रूप से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और नाइजीरिया में देखी गई है। हालांकि इसके बढ़ते मामले अभी भी 2020 की तुलना में कम हैं, जब इस क्षेत्र में किसी महीने में मंकीपॉक्स के उच्चतम मामले सामने आए थे।

वहीं अफ्रीका में कोविड-19 की स्थिति के बारे में डॉक्टर मोएती का कहना है कि अफ्रीका में इस महामारी के मामले, पिछले सप्ताह कुछ कम तो हुए हैं, मगर कुल मिलाकर अभी भी संक्रमण का बढ़ना जारी है, जिसमें पीछे उत्तर अफ्रीका में लगातार आठवें सप्ताह मामलों की बढ़ोत्तरी का भी बड़ा हाथ है। इसकी वजह से उत्तरी अफ्रीका में पिछले सप्ताह की तुलना में नए मामलों में 17 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

कहीं न कहीं प्रकृति से बिगड़ते रिश्ते हैं इनके प्रसार के लिए जिम्मेवार

कुल मिलकर देखें तो 2021 को छोड़ दें तो 2017 के बाद से अफ्रीका में मंकीपॉक्स के मामलों में वृद्धि देखी गई है। आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी से 8 जुलाई 2022 के बीच अफ्रीका में मंकीपॉक्स के कुल 2,087 मामले सामने आए हैं, जिनमें से केवल 203 की पुष्टि हुई है। वहीं इनमें कुल मृत्युदर 2.4 फीसदी के करीब है। वहीं जिन 175 मामलों के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध है उनमें से 53 फीसदी पुरुष थे जिनकी उम्र 17 वर्ष से ज्यादा थी।

अफ्रीका में जूनोटिक डिजीज के बढ़ते मामलों के पीछे कई वजहें जिम्मेवार हैं। एक तो अफ्रीका की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है, इसके साथ ही वहां मांस, मुर्गी, अंडे सहित जानवरों से मिलने वाले आहार की मांग भी तेजी से बढ़ रही है।

बढ़ती जनसंख्या के कारण शहरों का दायरा बढ़ रहा है और वो वन्यजीवों के आवास पर अतिक्रमण का कारण बन रहा है। इसके साथ ही पूरे अफ्रीका में सड़क, रेल, नाव और हवाई संपर्क में भी सुधार आ रहा है जिसकी वजह से इन रोगों का दूर-दराज के क्षेत्रों में फैलने का खतरा भी बढ़ रहा है।

ऐसे में यदि हमें इन बीमारियों से बचना है तो हमें प्रकृति के साथ बिगड़ते अपने रिश्तों को सुधारना होगा। इसके साथ ही विश्लेषण के अनुसार अफ्रीका में एक ऐसी बहुक्षेत्रीय कार्रवाई की आवश्यकता है जिसमें मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञ शामिल हों और वो एक टीम के रूप में मिलकर स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम करें।

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