भारत में 2022 में टीबी के मामलों में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई : रिपोर्ट

दुनिया भर में टीबी के सभी मामलों में भारत का हिस्सा 28 प्रतिशत है, देश उन आठ देशों में शामिल है, जहां कुल टीबी रोगियों की संख्या दो-तिहाई से अधिक है
फोटो साभार :सीएसई
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तपेदिक या टीबी की बीमारी तब होती है, जब माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया शरीर पर हमला करता है। हालांकि बैक्टीरिया नियमित फेफड़ों पर हमला करते हैं, इसके अलावा टीबी के बैक्टीरिया शरीर के किसी भी हिस्से जैसे किडनी, रीढ़ और मस्तिष्क पर हमला कर सकता है।

अत्यधिक संक्रामक रोग होने के कारण, सक्रिय पल्मोनरी टीबी वाले लोग निकट संपर्क के कारण हर साल पांच से 15 लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। इसलिए, इसका उपचार ही इस पर लगाम लगाने का एकमात्र तरीका है।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी की गई इंडिया टीबी रिपोर्ट 2023 में कहा गया है कि, 2025 तक टीबी को खत्म करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरों और सामाजिक आर्थिक निर्धारकों को हल करने में बहुत अधिक काम करने की जरूरत है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में  2021 की तुलना में 2022 में तपेदिक के मामलों में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 और 2021 में टीबी के मामलों की जानकारी में थोड़ी गिरावट आई थी, लेकिन राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) ने 24.2 लाख मामले  दर्ज होने की जानकारी दी, जो 2021 की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि को देखता है।

रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रति एक लाख की जनसंख्या में लगभग 172 मामले हैं। 2021 में, भारत में 2020 की तुलना में नए और दोबारा तपेदिक के रोगियों में 19 प्रतिशत की वृद्धि देखी। 2022 में, राज्यों के बीच टीबी के मामले की दर देखें तो दिल्ली में प्रति एक लाख जनसंख्या में 546 थी और सबसे कम केरल प्रति एक लाख की जनसंख्या में 67 थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, कुल मामलों में से, लगभग 39 प्रतिशत महिलाएं थीं, 5.6 प्रतिशत छोटी आयु वर्ग,  14 वर्ष से कम या उसके बराबर के थे और 23.6 प्रतिशत 55 वर्ष या उससे अधिक के थे। 

2022 में दर्ज मामलों में इलाज शुरू करने की दर 95.5 प्रतिशत थी। 2019-2021 में, पुरुषों, कुपोषित, धूम्रपान, शराब के सेवन करने वालों  और मधुमेह रोगियों सहित वृद्धावस्था समूहों में पल्मोनरी टीबी का अधिक प्रसार पाया गया। यह भी पाया गया कि अधिकांश 64 प्रतिशत टीबी के लक्षण वाले व्यक्तियों ने अपने स्वास्थ्य देखभाल पर गौर नहीं किया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, पांच खतरनाक कारण जिनमें कुपोषण, मधुमेह, मानव इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी), शराब का सेवन और धूम्रपान जैसे कारणों से देश में तपेदिक के कुल मामलों का 44 प्रतिशत का हिस्सा है।

रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले साल लगभग 74 प्रतिशत टीबी के रोगियों की शराब के सेवन संबंधी जांच की गई थी, उनमें से 7.2 प्रतिशत लोगों द्वारा शराब के सेवन संबंधी जानकारी दर्ज की गई।

कुपोषण सक्रिय टीबी के संक्रमण को छह से 10 गुना तक बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है। विशेषज्ञों के मुताबिक केंद्र सरकार का पोषण अभियान राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) में अहम भूमिका निभा सकता है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में 2021 की तुलना में मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) या रिफैम्पिसिन-रेसिस्टेंट (आरआर)-टीबी मामलों की संख्या में 32 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। 2022 में जांच की गई रोगियों की कुल संख्या 63,801 थी। ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, 2021 में एमडीआर, आरआर-टीबी की अनुमानित घटना 119,000 थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, हर दिन 4,100 से अधिक लोग टीबी से मरते हैं। ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, दुनिया भर में टीबी के सभी मामलों में भारत का हिस्सा 28 प्रतिशत है। भारत उन आठ देशों में शामिल है, जहां कुल टीबी रोगियों की संख्या दो-तिहाई से अधिक है

भारत का लक्ष्य 2025 तक टीबी को खत्म करना है

हालांकि दुनिया भर में टीबी को खत्म करने का लक्ष्य 2030 तक हासिल किए जाने वाले सतत विकास लक्ष्यों में से एक है। भारत का टीबी को खत्म करने का लक्ष्य 2025 तक निर्धारित किया गया है। देश में टीबी से प्रभावित लोगों और उनके परिवारों को अतिरिक्त पोषण, जांच और व्यावसायिक सहायता देने के लिए प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान (पीएमटीबीएमबीए) की शुरुआत की गई है।

भारत ने टीबी के मामलों को ट्रैक करने के लिए ऑनलाइन नि-क्षय पोर्टल बनाया है। नि-क्षय मित्र टीबी रोगियों को गोद लेते हैं और उन्हें पोषण संबंधी सहायता प्रदान करते हैं। अब तक, कार्यक्रम के तहत, 71,460 से अधिक नि-क्षय मित्र 10 लाख टीबी रोगियों को गोद ले चुके हैं।

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