जरूरतमंदों की मदद में विफल रही है प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं, अपनी जेब से किया खर्च

लैंसेट के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लोगों को अक्सर अपनी जेब से भुगतान करना पड़ता है और इन प्रणालियों की जगह कहीं और देखभाल की तलाश करनी पड़ती है
जरूरतमंदों की मदद में विफल रही है प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं, अपनी जेब से किया खर्च
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हाल ही में लैंसट में प्रकाशित एक नए अध्ययन में फिर से इस बात को दोहराया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्राथमिक स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल के लिए बनाई प्रणालियां धन की भारी कमी का सामना कर रही हैं। साथ ही इनकी पहुंच भी जरूरतमंदों तक एक समान नहीं है। ऐसे में अक्सर मरीजों को उपचार और देखभाल के लिए अपने जेब से भुगतान करना पड़ता है।

जर्नल द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में 04 अप्रैल, 2022 को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सिस्टम उन लोगों की जरूरतों को पूरा करने में विफल रहे हैं जिनके लिए इन्हें बनाया गया था। देखा जाए तो अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों की तरह ही यह प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (पीएचसी) सम्बन्धी प्रणालियां भारत में भी स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। देश में इस सिस्टम को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा संचालित किया जाता है, जिसके लिए राज्य सरकारें धन की व्यवस्था करती हैं।

केंद्र सरकार ने राज्यों को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कई तंत्र स्थापित भी किए हैं। जिनमें प्रदर्शन और जवाबदेही का आकलन करना शामिल है। शोध से पता चला है कि 2008 से 2019 के बीच इन उपायों में सुधार आया है। हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक राज्य स्तर पर उत्तरदाता इससे इत्तेफाक नहीं रखते कि यह नीतियां आवश्यक रूप से धन के प्रभावी उपयोग को बढ़ाती हैं।

गौरतलब है कि 1978 में सबसे पहले अल्मा-अता घोषणा थी जो सार्वजानिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई थी। इस घोषणा में पहली बार प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को पहचान दी थी और माना था कि स्वास्थ्य लक्ष्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

वहीं इसके करीब चार दशक बाद 2018 में कज़ाकिस्तान के अस्ताना शहर में अस्ताना में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर हुए वैश्विक सम्मेलन में इसकी पुष्टि की गई थी। इस घोषणा में भारत सहित डब्लूएचओ के सभी 194 सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।

इस घोषणा ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के तीन प्रमुख घटकों पर जोर दिया था, जिसमें जीवन भर लोगों की स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने, स्वास्थ्य निर्धारकों को संबोधित करने के लिए बहु-क्षेत्रीय नीति और कार्रवाई का उपयोग करने और लोगों एवं परिवारों को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेवारी लेने पर जोर देने की बात कही थी।

लैंसेट ने अपने इस अध्ययन में पाया है कि अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपरोक्त किए गए वादों को पूरा करने में विफल रही है। जिसकी बदौलत लोग स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य साधनों पर निर्भर होने लिए मजबूर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार इसमें उपयोगकर्ताओं और प्रदाताओं दोनों की जरूरतों को नजरअंदाज कर दिया गया है। “यह एक ऐसा दुष्चक्र है जिसने पीएचसी को कमजोर कर दिया है। पता चला है कि सेवाओं के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं है। इन सेवाओं की गुणवत्ता खराब है और उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता। साथ ही वो उपयोगकर्ताओं के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।“ 

देखा जाए तो किस देश में कैसा शासन है इसके आधार पर प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को वित्त उपलब्ध कराने के दो तरीके हैं। एक केंद्रीकृत प्रणाली में, वित्त मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय को धन आबंटित करता है, इसके बाद वो तय करता है कि स्थान और देखभाल के स्तर के आधार पर प्रत्येक कार्यक्रम को कितना धन देना है।

वहीं दूसरी तरफ एक एक विकेन्द्रीकृत प्रणाली में, जैसा कि भारत में है, स्थानीय प्राधिकरण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को फंड देते हैं। हालांकि इसके अपने फायदे और लाभ हैं। शोध के मुताबिक “प्रणाली संसाधन आबंटन सम्बन्धी निर्णयों को स्थानीय जरूरतों, बीमारियों के पैटर्न और प्राथमिकताओं के अनुसार आकार देने का अवसर देती है।“

हालांकि, यह उन वित्तीय सेवाओं पर भी ध्यान केंद्रित कर सकती है जो लोकप्रिय या कहीं ज्यादा दृष्टिगोचर है, न कि जो ज्यादा बड़ी आबादी को स्वास्थ्य लाभ देती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसे में न्यायसंगत, व्यापक, एकीकृत और उच्च गुणवत्ता देखभाल प्रदान करने वाली सेवाओं पर ज्यादा और बेहतर निवेश इसका प्रमुख समाधान है।

ऐसे में लोगों पर केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देते हुए इसकी मदद से वित्त पोषण सम्बन्धी चार विशेषताओं को संबोधित किया जाना चाहिए। इनमें प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करना, जेब पर पड़ते भार को कवर करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योगदान, कर, स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम जैसे प्रीपेड फंड जमा करना जैसी पूलिंग व्यवस्था को अपनाना, पीएचसी व्यय में अंतर को पाटने के लिए संसाधनों के समान आबंटन और प्रति व्यक्ति के आधार पर प्रदाता भुगतान का मूल बनाना शामिल हैं।

इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए शोध पांच-आयामी दृष्टिकोण की सिफारिश करता है। इसमें एक "पर्याप्त रूप से वित्तपोषित स्वास्थ्य क्षेत्र" शामिल है। जिसमें सिस्टम में व्याप्त असमानताओं पर विशेष ध्यान दिया गया है।

मुफ्त सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए पूल्ड फंडिंग का उपयोग करना, सार्वभौमिक रूप से सुलभ प्रणाली को सक्षम करने के लिए उपलब्ध नीति उपकरणों का उपयोग करना, प्रदाताओं के लिए कैपिटेशन पर निर्मित मिश्रित भुगतान मॉडल को अपनाना, साथ ही इसमें एक पीएचसी के लिए जन-केंद्रित वित्त व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी दृष्टिकोण के साथ नीति के विकास और कार्यान्वयन के दौरान प्रत्येक देश की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की सूक्ष्म समझ भी जरुरी है।

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