एक नए अध्ययन के मुताबिक भारत के अधिकतर लोग बढ़ते पेट के मोटापे से जूझ रहे है। इस अध्ययन में साल 2019 से 2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि देश में पेट से संबंधित मोटापा बढ़ रहा है। अध्ययन में माप के लिए कमर की घेरे का उपयोग किया गया था।
क्या होता है मोटापा?
सरल शब्दों में मोटापे का मतलब शरीर में चर्बी या वसा का जमा होना है। मोटापे से जुड़े खतरे शरीर में वसा के पैटर्न और फैलने पर निर्भर करते हैं।
पेट का मोटापा, मोटापे के सामान्य प्रकारों में से एक है, जिसे केंद्रीय मोटापा और आंतों के मोटापे के रूप में भी जाना जाता है। चिकित्सकीय रूप से इसे वसा के फैलने के खतरनाक रूपों में से एक माना जाता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि, शरीर में वसा फैलने का अधिक खतरनाक रूप माना जाता है। क्योंकि यह लोगों को विभिन्न चयापचय संबंधी विकारों और बीमारियों का शिकार बनता है। अधिकतर भारतीयों में पेट का मोटापा और आंतों में चर्बी जमा होना पाया गया है, जिससे उन्हें इससे जुड़े स्वास्थ्य के खतरे अधिक होते हैं।
यह अध्ययन भारत के जयपुर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) यूनिवर्सिटी, अमेरिका के ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। अध्ययन भारत के सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 6,36,699 घरों, 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों से एकत्रित जानकारी पर आधारित है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि देश में 40 फीसदी महिलाएं और 12 फीसदी पुरुष पेट के मोटापे से जूझ रहे हैं। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि 30 से 49 साल की उम्र के बीच की 10 में से पांच से छह महिलाएं पेट के मोटापे से ग्रस्त हैं।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि वृद्धावस्था में महिलाओं के मोटे होने के आसार अधिक होते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा, महिलाओं में पेट के मोटापे का संबंध बड़ी आयु वर्ग, शहरी निवासियों, धनी वर्ग और मांसाहारियों में सबसे अधिक पाया गया है।
अध्ययन में कहा गया है कि, अधिक महिलाएं दक्षिण के राज्यों केरल में 65.4 फीसदी और तमिलनाडु में 57.9 फीसदी और उत्तरी राज्यों पंजाब में 62.5 फीसदी और दिल्ली में 59 फीसदी मोटापे से ग्रस्त पाई गई हैं। जबकि झारखंड 23.9 फीसदी और मध्य प्रदेश में 24.9 फीसदी सबसे कम महिलाओं में मोटापा पाया गया।
धर्मों में मोटापे की बात करें तो, अध्ययन में पाया गया कि बौद्ध और जैन महिलाओं में मोटापे कम था, जबकि सिख और ईसाई महिलाओं में यह अधिक पाया गया। लेकिन पुरुषों में यह अंतर बहुत स्पष्ट नहीं था।
अध्ययनों से पता चला है कि, 1990 के बाद से भारत और अन्य देशों में मोटापे का चलन तेजी से बढ़ रहा है। 2016 तक, 2 अरब से अधिक वयस्क, जो दुनिया भर की वयस्क आबादी के 44 फीसदी हैं, अधिक वजन वाले या मोटे थे।
इस अध्ययन में पाया गया कि जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनमें सामान्य मोटापे की तुलना में पेट का मोटापा आसानी से बढ़ जाता है।
भारत में 15 से 19 आयु वर्ग में, 12.7 फीसदी महिलाएं पेट के मोटापे से ग्रस्त थीं जबकि 20 से 29 आयु वर्ग की 32.2 फीसदी महिलाएं इससे जूझ रहीं थी। वहीं 30 से 39 साल की महिलाओं में मोटापा 49.3 फीसदी था, जबकि 40 से 49 आयु वर्ग की महिलाओं में यह सबसे अधिक 56.7 फीसदी देखा गया।
कैसे पता चलेगा कि आपको पेट का मोटापा हैं?
मोटापे का अंदाजा कमर की परिधि या घेरे के आधार पर लगाया जाता है। महिलाओं में कमर का घेरा 80 सेमी और पुरुषों में 94 सेमी से अधिक होना पेट का मोटापा कहा जाता है।
मोटापे से किसी मनुष्य को क्या खतरे हो सकते हैं?
पेट का अधिक मोटापा हृदय रोगों, टाइप-दो मधुमेह और अन्य चयापचय संबंधी विकारों से जुड़ा हुआ है।
अधिक वजन होने से स्वास्थ्य को उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त कोलेस्ट्रॉल, दिल की धमनी का रोग, आघात, पित्ताशय का रोग, पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस, स्लीप एप्निया, सांस लेने की समस्या, नैदानिक अवसाद, शरीर के काम करने की क्षमता कम हो सकती है।
कैसे घटाएं मोटापा?
मोटापे के खतरे को कम करने के लिए सबसे पहले वजन कम करना होता है और ऐसा करने के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहने और सही भोजन करने की जरूरत होती है।
तनाव हमारे शरीर पर भारी असर डालता है। हमें तनाव को प्रबंधित करना सीखना होगा। तनाव के दौरान खाने से वजन घटाने में बाधा आती है। तनाव भूख को बंद कर सकता है।
भोजन में, हमेशा मौसमी खाद्य पदार्थों का उपयोग करना और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप अतिरिक्त कैलोरी नहीं ले रहे हैं, कैलोरी सेवन और कैलोरी बर्न या खत्म होने पर हमेशा नजर रखनी चाहिए।
स्वस्थ भोजन जैसे साबुत अनाज, फल और सब्जियां, स्वस्थ वसा और प्रोटीन स्रोत मोटापे को रोक सकता है, जबकि परिष्कृत अनाज और मिठाई, आलू, रेड मीट, प्रोसेस्ड मीट और शक्कर युक्त पेय का सेवन आप में मोटापे को बढ़ा सकता है।
हमें पैदल चलने, साइकिल चलाने, सीढ़ियां चढ़ने और तैरने जैसी कम प्रभाव वाली शारीरिक गतिविधियों से शुरुआत करनी चाहिए।
हमें ऐसी गतिविधियों में कटौती करनी होगी जिनमें शारीरिक श्रम कम या न के बराबर है, जैसे टीवी देखना, इंटरनेट ब्राउजिंग करने जैसी गतिविधियां कम कर देनी होंगी। यह अध्ययन लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।