मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में बढ़ रहे हैं सिकल सेल एनीमिया के मरीज, लेकिन प्रशासन गंभीर नहीं

सिकल सेल एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है
सिकल सेल अनीमिया से पीड़ित प्रशांत। फोटो: राजेंद्र जोशी
सिकल सेल अनीमिया से पीड़ित प्रशांत। फोटो: राजेंद्र जोशी
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राजेन्द्र जोशी

"मेरा बेटा पुलिस अफसर बनना चाहता था, बेटी शिक्षिका बनना चाहती थी। लेकिन, होनी को कौन टाल सकता है? उन्हें बचाने के लिये अपनी एक एकड़ सिंचित खेती बेच दी और डेढ़ एकड़ खेती आज भी गिरवी रखी हु्ई है। 9 से 10 लाख रुपये खर्च करने के बाद भी मैं अपने दोनों बच्चों को मौत के मुंह से नहीं बचा पाया।" यह कहना है मध्य प्रदेश के  बडवानी जिले के सेंधवा विकासखंड के ग्राम छोटी जुलवानिया निवासी संजय का, जिनके पुत्र-पुत्री दोनों सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित थे।

हाल ही में अपने 8 वर्षीय पुत्र प्रशान्त को खो चुके 29 वर्षीय संजय बताते है कि एक साल पहले उन्होंने बेटी अर्चना को भी खो दिया। संजय ने बताया कि 5 साल की उम्र तक पता ही नहीं चल पाया कि बच्चों को आखिर बीमारी क्या है? 3 साल तक मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के विभिन्न अस्पतालों में इलाज करवाने के बाद भी नकारात्मक पंरिणाम ने पूरे परिवार को तोड़ दिया था। पेशे से अस्थाई ड्राइवर संजय लॉक डाउन के बाद से नियमित कार्य नहीं कर पा रहे हैं।

सिकल सेल एनीमिया वह बीमारी है जिससे पीड़ित व्यक्ति को मौत के बाद ही छुटकारा मिलता है। अगर पीड़ित शादीशुदा है तो उसकी संतान में भी उसका असर देखने को मिल सकता है। दिन प्रतिदिन मौत के नजदीक जाने वाली इस बीमारी के पीड़ितों को भी यह जानकारी नहीं है कि उन्हें यह बीमारी कैसे लगी।

मध्य प्रदेश में यह बीमारी 22 जिलों में, अधिकांशतः आदिवासी समाज में फैली हुई है। ज्यादातर पीड़ितों को सरकारी इलाज और जांच सुविधा की जानकारी नहीं है। आधुनिक जांच मशीनें प्रदेश के चुनिन्दा जिला अस्पतालों में ही मौजूद है।

मध्‍यप्रदेश के पिछड़े एवं आदिवासी बाहुल्य जिले बडवानी के दूरस्थ पाटी विकासखंड के ग्राम लिम्बी के मसान्या फल्या में रहने वाले किसान नहारसिंह पिता भीमला ने बताया कि उनकी सात संतानों में सबसे छोटे पुत्र सुनील को सिकल सेल एनिमिया की बीमारी है। छुटपन से उसके पेट में दर्द और बुखार की शिकायत रहती थी। जरुरत पड़ने पर निजी डॉक्टरों को दिखाकर इलाज करवाते रहे।

बडे़ होने पर एक बार उसके बेहोश होने के बाद जिला मुख्यालय स्थित एक निजी डॉक्टर को दिखाने पर विभिन्न प्रकार की जांचों से पता चला कि वह सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है। अभी भी उसे दवाइयों की जरुरत पड़ती है और उसका शारीरिक विकास भी अन्य भाई बहनों के मुकाबले कमजोर है। परिवार के किसी अन्य सदस्य ने सिकल सेल की जांच नहीं करवाई है।

वहीं पाटी विकासखंड के ग्राम बमनाली के सरकारी कर्मचारी विनेश पिता दलिया (परिवर्तित नाम) की कहानी दु:खभरी है। सिकल सेल एनीमिया से इनका पूरा परिवार पीड़ित है और इनकी एक 12 साल की बेटी को सिकल सेल एनीमिया ने लील लिया है।

वहारिया सोलंकी बताते है कि उन्हें यदि पहले पता होता कि वे और उनकी पत्नी सिकल सेल एनीमिया पाजीटिव हैं तो वे संतान ही उत्पन्न नहीं करते। बड़ी बेटी नीट (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) की तैयारी कर रही है, उसे हाल ही में ब्लड चढ़ाया गया है जबकि छोटा पुत्र मिडिल का विघार्थी है। पूरा परिवार नियमित दवाई खाता है।

मध्य प्रदेश के हालात

सिकल सेल एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी के कारण फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है। यह आपातकालीन स्थिति पैदा कर सकता है जैसे छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ बच्चों को बुखार होना आदि।

हंसिए के आकार रक्त कोशिकाओं द्वारा रक्त–वाहिकाओं को बाधित करने के कारण तेज दर्द उठ सकता है। आमतौर पर पेट, छाती और हड्डियों के जोड़ों में तेज चुभने वाला दर्द होता है। दर्द शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है।

इस बीमारी में डिहाइड्रेशन, बुखार, शरीर के तापामान में उतार-चढ़ाव, तनाव आदि भी हो सकता है। बच्चों में ये सभी लक्षण कुछ दिनों से लेकर सप्ताह भर तक नजर आ सकते हैं। बच्चे में इनसे लक्षण अलग भी हो सकते हैं। सिकल सेल एनीमिया का इलाज - दुर्भाग्यवश इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है। बच्चों के लक्षणों को देखकर उसका इलाज किया जाता है।

स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेन्टर (छत्तीसगढ़) के पूर्व निदेशक (2014-2020) डॉ. प्रबीर चटर्जी ने बताया कि उन्‍होंने अपने कार्यकाल में यह सुनिश्चित करवाया कि हीमोग्लोबीन की कमी वाली प्रत्येक गर्भवती महिला की सिकल सेल एनीमिया की जांच हो।

किसी महिला के सिकल सेल पाजीटिव होने पर अन्य परिजनों की भी जांच करवाई जाती थी। उन्‍होंने भी स्‍वीकार किया कि सिकल सेल एनीमिया की जांच की संख्‍या जितनी बढ़ाई जाएगी पीड़ितों की पहचान आसान होगी। राज्‍य सरकारों को यह काम करना चाहिए।

मप्र सरकार ने सिकल सेल से पीड़ित मरीजों को विकलांग मान लिया है और जो मरीज 40 प्रतिशत से अधिक सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित है उनके विकलांगता प्रमाण पत्र बनाए जा रहे हैं। सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित मरीज और परिजन सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली नि:शुल्क सुविधाओं के बारे में अनजान हैं।

इसी कारण वे निजी जांच केन्द्रों और निजी चिकित्सकों से इलाज में हजारो रूपये खर्च कर देते हैं, जबकि सरकारी जिला अस्पतालों में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित मरीजों को जांच और दवाइयाँ निशु:ल्क मिलती है। मध्य प्रदेश के 45 में से 22 जिले सिकल सेल बेल्ट के अंतर्गत आते हैं और एचबीएस की व्यापकता 10 से 33 प्रतिशत के बीच है। 

आदिवासी जिलों में सरकारी स्वास्थ सेवाओं के हाल में पहले की तुलना में सुधार तो हुआ है लेकिन सिकल सेल एनीमीया को उतनी गम्भीर बीमारी नहीं माना जा रहा है जितनी यह गम्भीर है।

मप्र के ही आदिवासी जिले धार के के सुदूर विकासखंड डही में स्थित सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र में सिकल सेल एनीमिया की प्रारम्भिक जांच सुविधा उपलब्ध तो है लेकिन लम्बे समय से सिकल सेल टेस्ट किट नहीं है। आश्चर्यजनक है कि यहां मरीजों के गाँव तथा संपर्क नंबर तक से संबंधित कोई डाटा संधारित नहीं किया जाता है। केवल इतना ही नहीं, सामुदायिक केन्द्र होने के बावजूद ऑन रिकार्ड कोई भी बात करने को तैयार नहीं है।

यही हाल सिविल अस्पताल कुक्षी के हैं जहाँ पर मरीजों की सूची और सम्पर्क नम्बर तो है लेकिन सिकल सेल जांच की एचपीएलसी मशीन नहीं है। लम्बे समय से यहां जांच किट भी उपलब्ध नहीं है नहीं है। उपलब्ध सुविधाओं और कमियों के बारे में जिम्मेदार ऑन रेकार्ड बात करने को तैयार नहीं है।

खरगोन जिले में सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित मरीजों को आंकडा 6,492 है तो बडवानी जिले में यह आंकडा 5,794 है आलीराजुपर में 5,055 खंडवा में 133 छिंदवाडा में 88 तो बालाघाट 702 मरीज, बैतूल में 290 छिन्दवाडा में 90 खंडवा में 133, झाबुआ में 800, शहडोल में 75 मरीज दर्ज है।

जिलों से प्राप्त जानकारी अनुसार कुल मरीजों की संख्या 19,519 है। प्रदेश के इन्हीं जिलो में निजी चिकित्सकों से इलाज करवाने वाले मरीजों के आंकड़े इनमें शामिल नही है, जिनकी संख्या सरकारी आंकडो से कई गुना ज्यादा हो सकती है। 

जबकि मप्र के स्वास्थ विभाग के 2020-21 के वार्षिक प्रतिवेदन में सम्पर्ण मप्र में सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित मरीजों की संख्या मात्र 6,649 बताई गई है। वहीं दूसरी और इन्हीं जिलों में विकासखंड स्तर के सामुदायिक स्वास्थ केन्द्रों पर लेबोरेटरी की सुविधा जरूर है लेकिन वहां पर सिकल सेल एनीमिया की जांच किट न होने से मरीजों को पहचान नहीं हो पा रही है। (17 दिसम्बर 2021 के अनुसार)

सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित अधिकांश मरीजों को सरकारी सुविधाओं की जानकारी नहीं है जिस कारण वे निजी तौर पर जांच करवाते हैं और दवाई खरीदते हैं।

पीड़ित व्यक्ति को प्रति माह 400 से 500 रूपये की दवाई खरीदनी पडती है। इसके अलावा सिकल सेल की तीनों तरह की जांच 200 रूपये से लगाकर 1,200 रूपयों तक की होती है।

सिकल सेल के गंभीर मरीजों को ब्लड चढ़ाना पड़ता है जिसका निजी अस्पतालों में 3,000 रूपये यूनिट का खर्च पडता है। जबकि सरकारी जिला अस्पताल में यह सुविधा निःशुल्क है। अगर डोनर निकट संबंधी हो तो उसका ब्लड इस्तेमाल किया जाता है। सिकल सेल प्रमाणीकरण के लिये एक बार जांच की जरुरत होती है जबकि नियमित रूप से हीमाग्लोबीन की जांच करवाई जाती हैं ।

मप्र सरकार के साथ मिलकर काम करने वाली सामाजिक संस्था जन स्वास्थ सहयोग के को -आर्डिनेटर राहुल सिंह के अनुसार सरकार को बहुत गंभीरता से पंचवर्षीय योजना बनाकर काम करना चाहिये भले ही परिणाम 50 साल बाद आये।

उनके अनुसार सिकल सेल एनीमिया पर नियंत्रण के लिए सरकारी अस्पतालो में 1) स्क्रीनिंग ज्यादा होनी चाहिये 2) सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र तक एचपीएलसी और एचबी इलेक्टोफोरोसिस मशीनों द्वारा जांच होनी चाहिये 3) पीड़ित की काउंसलिंग होनी चाहिये 4) इलाज में गुणवत्ता हो 5) गर्भावस्था में जांच की सुविधा कम से कम जिले स्तर पर हो 6) सिकल सेल एनीमिया के ब्लड सेंपल अंगुली की जगह नाड़ी से सीरिंज के द्वारा निकाला जाना चाहिये। साथ ही जिला अस्‍पतालों में उपलब्‍ध सिकल सेल एनीमिया की दवाईयाँ प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍दों तक उपलब्‍ध करवाई जानी चाहिए।

सिकल सेल एनीमिया के इलाज व पीड़ितों के बारे में मप्र के राज्यपाल मंगूभाई पटेल विगत 06 माह से काफी मुखर होकर सार्वजनिक मंचो से बोल रहे हैं। दिसम्बर माह में भोपाल में मानव अधिकार आयोग के कार्याक्रम में सिकल सेल पीड़ितों से कहा कि वे आपस में विवाह न करे, माँ के गर्भ के समय ही जांच हो तो माँ-बाप को समझाकर गर्भपात करवा लेना चाहिये |

मप्र सरकार के द्वारा प्रदेश के झाबुआ,आलीराजपुर जिलो में सिकल सेल एनीमिया उत्थान हेतु पायलट प्रोजेक्ट योजना प्रारम्भ की है। राज्यपाल ने फरवरी 22 के अंतिम सप्ताह में सिकल सेल एनीमिया जांच हेतु मोबाइल वेन सुविधा का शुभारम्भ अलीराजपुर में किया ।

सिकल सेल एनीमिया संबंधी उपलब्‍ध सुविधाओं के बारे में हमने पर सरकारी पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन जिम्‍मेदारों ने या तो जवाब ही नहीं दिया या फि‍र टाल दिया। म.प्र. सरकार की स्वास्थ विभाग की उपसंचालक (मेटरनिटी) डॉ. अर्चना मिश्रा और राष्ट्रीय स्वास्थ मिशन की एमडी प्रियंका दास ने न तो फोन रिसीव किया और न ही वाट्सप पर पूछे गये सवालों का कोई जवाब दिया। संचलनालय स्वास्थ सेवाएं में उपसंचालक (लेब सेल) डॉ. रूबी खान ने प्रभावित जिलों में दवाईयों और मशीनों पर किए गए खर्च संबंधी जानकारी जिला और विकासखण्‍ड स्‍तर से प्राप्‍त करने को कह दिया।

सिकल सेल से संबंधित आँकड़े जुटाने के लिये सूचना का अधिकार कानून के अन्तर्गत मप्र सरकार के प्रमुख सचिव (स्वास्थ) सहित सिकल सेल प्रभावित 22 जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ अधिकारियों से माँगी गयी पर मात्र 10 जिलों से जानकारी संबंधी सूचना दी है जबकि यह जानकारी न तो गोपनीय है न ही किसी की व्यक्तिगत जानकारी है। प्रदेश के स्वास्थ महकमे के प्रमुख सचिव कार्यालय ने भी इस बीमारी से पीड़ितों की संख्‍या और उन्‍हें उपलबध करवाई जा रही सुविधाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

(यह स्टोरी स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एन एफ आई) की मीडिया फेलोशिप के तहत रिपोर्ट की गई है )

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